Bihar Cabinet: मुंगेर के सीताकुंड मेला को मिला राजकीय दर्जा, नीतीश कैबिनेट बैठक में दी गयी मंजूरी

Bihar Cabinet Meeting: बिहार कैबिनेट बैठक में मुंगेर के सीताकुंड मेले को राजकीय दर्जा देने की मंजूरी दे दी गयी. इसकी मांग लंबे समय से हो रही थी. सीताकुंड को अब पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की भी तैयारी शुरू हो गयी है.

By ThakurShaktilochan Sandilya | July 29, 2025 1:00 PM
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Bihar Cabinet Meeting: मुंगेर जिले के सदर प्रखंड में ऐतिहासिक सीताकुंड मेला लगता है. इस मेले की ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यता है. दूर-दराज से लोग आकर इस मेले का गवाह बनते हैं. अब बिहार सरकार ने इस मेले को राजकीय मेला का दर्जा देने का फैसला ले लिया है. मंगलवार को सीएम नीतीश कुमार की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में इससे जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी है.

मुंगेर के सीताकुंड का मेला है बेहद प्रसिद्ध

मुंगेर जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर है सीताकुंड. जिसका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है. इस परिसर में करीब एक महीने तक माघ मेला लगता है. आसपास के जिलों से भी लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोग सीताकुंड के जल को अपने ऊपर छिड़ककर माता सीता का आशीर्वाद भी लेते हैं.

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पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी

मुंगेर के प्रसिद्ध सीताकुंड को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी भी पर्यटन विभाग शुरू कर चुका है. इसके लिए साढ़े तीन करोड़ रुपए भी पूर्व में ही स्वीकृत किए जा चुके हैं. इसके लिए डिजाइन तैयार करने के लिए एजेंसी भी पिछले महीने मुंगेर पहुंची थी और सीताकुंड जाकर सर्वे किया था. सीताकुंड को रामायण सर्किट से जोड़ा गया है. हाल में ही मुंगेर के डीएम ने सीताकुंड मेले को राजकीय मेला का दर्जा देने की अनुशंसा की थी. जिसे प्रमंडलीय आयुक्त ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को भेजा था. विधानसभा में भी इसका मुद्दा उठ चुका था.

क्या है सीताकुंड की मान्यता

सीताकुंड का संबंध सीधे रामायण काल से जुड़ा है. यहां के बारे में यह मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम रावण वध करके माता सीता के साथ अयोध्या लौट रहे थे तो मुगदल ऋषि के दर्शन के लिए यहां पहुंचे थे. मुगदल ऋषि के आदेशानुसार, इसी जगह पर मां सीता ने अग्नि परीक्षा संपन्न की थी.प्रज्वलित अग्नि में अपने ललाट का पसीना मां सीता ने अर्पित किया था. जिससे अग्नि के रूप में जल की उत्पत्ति हुई थी. आज भी यह जल स्रोत खौलता रहता है. कहा जाता है कि साल में करीब 9 महीने तक इस सीताकुंड का पानी खौलता रहता है. जबकि तीन महीने तक पानी सामान्य स्थिति में रहता है. जो इस स्थान की पौराणिकता और चमत्कारी स्वरूप को दर्शाता है.

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