National Parents Day: आज ‘नेशनल पैरेंट्स डे’ है, जिसे हर साल जुलाई के चौथे रविवार को मनाया जाता है. इस मौके पर हम मिलवाते हैं शहर की कुछ ऐसी वर्किंग मदर्स से, जो न सिर्फ मां की भूमिका को बखूबी निभा रही हैं, बल्कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनते हुए प्रोफेशनल जिम्मेदारियों को भी निभा रही है.
घर-ऑफिस दोनों मोर्चों पर डटी रहती हैं ये महिलाएं
बच्चों को सही संस्कार मिले, मेरी पहली प्राथमिकता होती है: अमृता सिंह, सीनियर मैनेजर, गेल इंडिया
बोरिंग रोड की रहने वाली अमृता सिंह गेल इंडिया में सीनियर मैनेजर हैं और दो बच्चों की मां हैं. वह बताती हैं, पिछले 15 वर्षों से मैं नौकरी कर रही हूं. वर्क लाइफ और पैरेंटिंग को संतुलित करना आसान नहीं होता, लेकिन समय प्रबंधन से सब मुमकिन है. अमृता सुबह बच्चों को स्कूल भेजने से लेकर शाम को पढ़ाई में मदद करने तक पूरी जिम्मेदारी निभाती हैं. उनके पति की जॉब शिफ्ट में होने से उन्हें थोड़ा राहत मिलती है, लेकिन कभी-कभी ऑनलाइन मीटिंग व बच्चों की जरूरतों के बीच तालमेल बैठाना चुनौती बन जाता है. वह बताती हैं कि बच्चों को संस्कार देना, उनमें संवेदनशीलता और अनुशासन जगाना उनकी पहली प्राथमिकता है. वीकेंड्स को पूरी तरह बच्चों के नाम करती हैं, ताकि उनके साथ क्वालिटी टाइम बिता सकें. अमृता मानती हैं कि एक मां को हर दिन की जिम्मेदारी एक नये समर्पण के साथ निभाना पड़ता है.
काम और मातृत्व के बीच संतुलन बनाना पड़ता है: ओजस्विता देवांशी, कर्मचारी, पटना जीपीओ
जगनपुरा की रहने वाली ओजस्विता पटना जीपीओ में पोस्टल विभाग की पीटी डिविजन में कार्यरत हैं. दो बच्चों की मां ओजस्विता बताती हैं, सुबह बच्चों को तैयार करना, घर संभालना और फिर ऑफिस जाना. यह एक तय दिनचर्या है. शाम को जब घर लौटती हूं और बच्चों की आंखों में स्नेह देखती हूं, तब महसूस होता है कि यह सब उनके भविष्य के लिए जरूरी है. वह मानती हैं कि ससुराल वालों का सहयोग उन्हें इस सफर में मजबूती देता है. ऑफिस से लौटकर वह बच्चों के साथ समय बिताती हैं, उनके दिनभर के अनुभव सुनती हैं और उनकी एक्टिविटी में शामिल होती हैं. ओजस्विता के लिए बच्चों के साथ बिताया हर पल अनमोल है. वह कहती हैं, मां होने के नाते मेरी कोशिश रहती है कि बच्चों को समय, संस्कार और आत्मविश्वास मिले. नौकरी और मां का दायित्व साथ निभाना चुनौती है, लेकिन वह इसे गर्व से जी रही हैं.
वर्कप्लेस पर सहयोग की कमी, फिर भी पैरेंटिंग में नहीं आने देती कमी: डॉ शुभमश्री, आइजीआइएमएस
बेली रोड की डॉ शुभमश्री आइजीआइएमएस में मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर हैं और दो बेटियों की मां हैं. वह कहती हैं, इन-लॉज बुजुर्ग हैं, इसलिए बच्चों की देखभाल मेड करती है, लेकिन मां के प्यार की जगह कोई नहीं ले सकता. डॉ शुभमश्री बताती हैं कि वर्कप्लेस पर अधिकांश सीनियर पुरुष हैं और बच्चों की बीमारी या इमरजेंसी में छुट्टी मांगने पर अक्सर सहयोग नहीं मिलता. क्रेच या डे केयर की सुविधाएं भी नहीं हैं, जिससे कामकाजी माताओं को मुश्किल होती है. वह कहती हैं, जब शाम को बच्चियों के पास जाती हूं, तो कोशिश करती हूं कि उन्हें अच्छे संस्कार दूं और बताऊं कि मां होने के साथ भी करियर को कैसे जिया जा सकता है. वह चाहती हैं कि उनकी बेटियां उनसे यह सीखें कि एक महिला किस तरह दोनों भूमिकाओं को पूरी ईमानदारी और गरिमा से निभा सकती है.
मां बनना सौभाग्य है, लेकिन जिम्मेदारी 24×7 की होती है: कीर्ति चौधरी, सहायक प्रोफेसर, पटना वीमेंस कॉलेज
एसके नगर की कीर्ति चौधरी पटना वीमेंस कॉलेज में फिलॉसफी विभाग की हेड हैं और दो बच्चों की मां हैं. वह बताती हैं, मां बनना अनमोल अनुभव है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं होती. जब पहला बच्चा हुआ था, तो छह महीने बाद ही कॉलेज फिर से ज्वाइन किया. दूसरा बच्चा कोविड के दौरान हुआ, जब वर्क फ्रॉम होम और घरेलू जिम्मेदारियां एक साथ थीं. वह कहती हैं कि बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, मनोरंजन, स्कूल पीटीएम- हर पहलू को ध्यान में रखना पड़ता है. कभी लगता है कि बच्चे सब समझेंगे या नहीं, लेकिन फिर सोचती हूं कि शायद एक दिन वे मुझ पर गर्व करेंगे. कीर्ति मानती हैं कि एक वर्किंग मां की ड्यूटी 24×7 होती है, लेकिन वह अपने बच्चों को यही सिखाना चाहती हैं कि समर्पण, मेहनत और आत्मविश्वास से कोई भी लक्ष्य पाया जा सकता है.
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