Navratri: कुलदेवी की पूजा में महिला गुरुओं का दबदबा, महाअष्टमी पर तंत्र का बीज मंत्र देने में अभी भी पुरुषों से आगे

Navratri: तंत्र दीक्षा में भी पुरुषों की हिस्सेदारी महिला के मुकाबले बेहद कम है. तंत्र दीक्षा में 10 में से आठ गुरु महिला है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि देवी उपासना की साक्त परंपरा में नारी को सबसे बड़ा स्थान दिया गया है.

By Ashish Jha | October 10, 2024 6:45 AM
an image

Navratri: पटना. सनातन धर्म के शाक्त संप्रदाय में महिला पुरोहितों और गुरुओं का दबदबा आज भी कायम है. पूरे पूर्वोत्तर भारत में कुलदेवी (गोसाउन) की पूजा का विधान अधिकतर जगहों पर महिला के हाथों में ही देखने को मिलता है. तंत्र दीक्षा में भी पुरुषों की हिस्सेदारी महिला के मुकाबले बेहद कम है. तंत्र दीक्षा में 10 में से आठ गुरु महिला है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि देवी उपासना की साक्त परंपरा में नारी को सबसे बड़ा स्थान दिया गया है. यहां तो पिता, मातामह यानी नाना, सोदर भाई, उम्र में छोटा व्यक्ति, शत्रु की ओर रहने वाला व्यक्ति, से आगम की दीक्षा लेने की मनाही है. साथ ही पति अपनी पत्नी को, पिता अपनी पुत्री तथा पुत्र को और भाई अपने भाई को दीज्ञा न दे सकता है.

पितुर्मन्त्रं न गृह्णीयात् तथा मातामहस्य च।
सोदरस्य कनिष्ठस्य वैरपक्षाश्रितस्य च।
न पत्नीं दीक्षयेद् भर्ता न पिता दीक्षयेत् सुताम्।
न पुत्रं च तथा भ्राता भ्रातरं च न दीक्षयेत्।।

माता से दीक्षा लेना श्रेष्टकर

सनातन की शाक्त परंपरा में माता से दीक्षा का सबसे अधिक श्रेष्ट माना गया है. उसके बाद पितामही, चाची या कोई ज्येष्ठ स्वगोत्री नारी से दीक्षा लेने का विधान है. माता से अतिरिक्त अन्य किसी भी नारी से दीक्षा लेने पर उस बीज मन्त्र का दस हजार जप कर उसे सिद्ध करना पड़ता है, लेकिन माता से दीक्षा लेने में मान्यता है कि इस चरण से दीक्षित को गुजरना नहीं पड़ता है. माता से लिया गया तंत्र का बीज मन्त्र स्वयंसिद्ध होता है. इसलिए माता से ली गयी दीक्षा को आठ गुणा फलदायी माना गया है. स्वप्न में बीज मन्त्र मिल जाए तो उसे सबसे महत्त्वपूर्ण माना गया है. आगम-कल्पद्रुम में कहा गया है-

स्त्रियो दीक्षा शुभा प्रोक्ता मातुश्चाष्टगुणाः स्मृताः।
स्वप्नलब्धा च या विद्या तत्र नास्ति विचारणा।।

दीक्षा के बाद ही संभवन है देवी उपासना

सनातन की शाक्त परंपरा में महिला गुरु के महत्व पर कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ पंडित शशिनाथ झा कहते हैं कि नारी को गुरु के रूप में इस प्रकार महत्त्व सनातन के शाक्त परम्परा को छोड़कर अन्य किसी धर्म, पंथ या संप्रदाय में नहीं देखा जा सकता है. अनेक शाक्त-ग्रन्थों में तो इतना तक कहा गया है कि अपनी माता देवी जगन्माता तक पहुँचने की पहली सीढ़ी है. धर्मशास्त्री पंडित भवनाथ झा का कहना है कि जिस तरह वैदिक परम्परा में उपनयन संस्कार का महत्त्व है, उसी तरह आगम की परम्परा में गुरुमुख होने या दीक्षा लेने का महत्त्व है. चाहे वैष्णव हों या शाक्त या शैव-दीक्षा लेने के बाद ही वे उपासना की परम्परा के पालन करने के अधिकारी हो सकते हैं.

Also Read: यूपी में भी बहुत सरल थी दुर्गापूजा की 250 साल पुरानी पद्धति, बिना वैदिक मंत्र के पूजा करने का था विधान

संन्यासी गुरु से गृहस्थ का दीक्षा लेना शास्त्रविरुद्ध

पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि मनुष्य की पहली गुरु उसकी माता होती है, यह धारणा शाक्त परंपरा की ही देन हैं. पुस्तक में पढ़कर या टीवी पर उपदेश सुनकर जो लोग बिना दीक्षा लिए तंत्र के बीच मंत्रों का जप करते हैं, उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलेगा. कई मामलों में अनिष्ट होने का भी खतरा रहता है. इस प्रकार के मंत्र का गुरुमुख होना सबके लिए आवश्यक होता है. यही कारण है कि आगम शास्त्र के सभी ग्रन्थों में गुरु की योग्यता का वर्णन है. इसी क्रम में यह बात भी आयी है कि गृहस्थ को गृहस्थ गुरु से तथा संन्यासी को संन्यासी गुरू से दीक्षा लेनी चाहिए. आजकल संन्यासी गुरु से गृहस्थ दीक्षा लेने लगे हैं, जो शास्त्रविरुद्ध है. शक्तियामल तंत्र में कहा गया है कि पिता से, संन्यासी से, वनवासी से तथा विरक्त लोगों से ली गयी दीक्षा से कल्याण नहीं होता है-

पितुर्दीक्षा यतेर्दीक्षा दीक्षा च वनवासिन।
विरत्काश्रमिणो दीक्षा न सा कल्याणदायिका।।

Also Read: Navratri: सनातन धर्म के साक्त परंपरा में बलि का है खास महत्व, अनुष्ठान से पहले रखें इन बातों का ध्यान

दो प्रकार की होता है दीक्षा

सनातन की शाक्त परंपरा में दीक्षा दो प्रकार की होता है. कौलिक तथा अँटौआ. इस संबंध में ज्योर्ति वेद विज्ञान संस्थान के निदेशक आचार्य डॉ राजनाथ झा ने कहा कि जिस परिवार में कौलिक मंत्र है, वहाँ तो पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही मंत्र की दीक्षा दी जाती है, लेकिन जिस परिवार में ऐसा कोई कौलिक विधान नहीं है, वहाँ उस व्यक्ति का नाम, राशि, नक्षत्र आदि के आधार पर मंत्र का निर्धारण किया जाता है. यह गणना पूरी तरह ज्योतिष शास्त्र के आधार पर होती है. मिथिला में तो यह परम्परा भी रही है कि यदि एक ही परिवार में संयोग से सात पीढ़ी तक एक ही अँटौआ मंत्र आ जाये, तो उसके बाद वही कौलिक मन्त्र बन जाता है.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

यहां पटना न्यूज़ (Patna News) , पटना हिंदी समाचार (Patna News in Hindi), ताज़ा पटना समाचार (Latest Patna Samachar), पटना पॉलिटिक्स न्यूज़ (Patna Politics News), पटना एजुकेशन न्यूज़ (Patna Education News), पटना मौसम न्यूज़ (Patna Weather News) और पटना क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर.

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version