Navratri: देवी के साथ नहीं होती है विष्णु की पूजा, पंच देवता के संबंध में क्या कहते हैं मिथिला के शक्ति उपासक
Navratri: मिथिला के लोग इन सभी देवों के प्रति समान श्रद्धा तथा विश्वास रखते रहे हैं. मैथिल वैष्णव व्रत भी रखते हैं, सूर्य की पूजा भी करते हैं, शिव मन्दिरों में भी जाते हैं, यहाँ तक कि बुद्ध भी हमारे यहाँ देवता माने जाते हैं. साथ ही, शक्ति-पूजन के दिनों बलिदान भी करते हैं.
By Ashish Jha | October 8, 2024 2:04 PM
Navratri: पटना. सनातन धर्म में आदि शक्ति मां दुर्गा के साथ विष्णु की पूजा नहीं होती है, लेकिन मिथिला के साक्त संप्रदाय के शक्ति उपासक सर्व संप्रदाय समभाव की गरिमा रखते हैं. मिथिला में बेशक पंच देवता की पूजा में विष्णु शामिल नहीं होते, लेकिन अलग से यहां विष्णु की पूजा का विधान रहा है. शक्ति उपासकों को लेकर पैदा हो रहे भ्रम की स्थिति पर साक्त परंपरा के जानकार पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि शक्ति उपासक भी विष्णु की पूजा कर सकता है. मिथिला की परम्परा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यहां पंचदेवता में सूर्य, गणेश, अग्नि, दुर्गा एवं शिव की उपासना एक साथ होती है. हां, विष्णु की पूजा अलग से स्वतंत्र रूप में की जाती है. मिथिला के लोग इन सभी देवों के प्रति समान श्रद्धा तथा विश्वास रखते रहे हैं. मैथिल वैष्णव व्रत भी रखते हैं, सूर्य की पूजा भी करते हैं, शिव मन्दिरों में भी जाते हैं, यहाँ तक कि बुद्ध भी हमारे यहाँ देवता माने जाते हैं. साथ ही, शक्ति-पूजन के दिनों बलिदान भी करते हैं. हमारे यहाँ सर्व संप्रदाय समभाव की गरिमा है. यह मिथिला का धार्मिक समन्वयवाद है.
नवरात्रि में होती दस महाविद्या की उपासना
इस विषय पर आचार्य राजनाथ झा कहते हैं कि देवी की उपासना ही मिथिला का मूल धर्म है. पंचदेवता के अंतर्गत दुर्गा का नाम लिया गया है. दुर्गा शक्ति-पूजन की समन्वित देवी हैं. शक्तिपूजन के अंतर्गत दश महाविद्याएँ हैं, जिनमें काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी एवं कमला की पूजा होती है. इनमें भी उग्र कोटि में काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, और बगलामुखी आती हैं. मिथिला की सामान्य जनता इन्ही दशों में से एक की दीक्षा लेकर उनकी उपासना करते हैं. उन्होंने कहा कि न केवल ब्राह्मण, अपितु प्रत्येक जाति की अपनी जो कुलदेवी हैं, उनके नाम भी इन्हीं से किसी एक के पर्याय होते हैं. लगभग 80 प्रतिशत कुलदेवी काली के रूप में हैं. इस पर अतीत में सर्वेक्षण भी हो चुके हैं.
पूजा पद्धति को लेकर देश में चल रहे बहस पर पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि केवल देवता और भगवती की आराधाना पद्धति में ही अंतर नहीं है, बल्कि सभी देवियों की उपासना पद्धति भी अलग-अलग हैं. कुछ में बलि की परम्परा है, तो कुछ में यह परंपरा नहीं भी है. लेकिन, इस उपासना-विधि की विविधताओं को लेकर धार्मिक स्तर पर कहीं कोई विवाद नहीं होता. न ही, शाकाहार को लेकर, न मांसाहार को लेकर. बहुत लोग ऐसे भी हैं, जो शाकाहारी हैं, फिर भी बलि के समय वे पूरी श्रद्धा के साथ नतमस्तक रहते हैं. मिथिला में उपासना-भेद तथा शाखा-भेद के बावजूद सबका सम्मान करते हैं. उन्होंने याज्ञवल्क्य स्मृति का उल्लेख करते हुए कहा कि धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो मिथिला व्यवहारतः. अर्थात जब धर्म को लेकर निर्णय लेने में दुविधा हो, तो मिथिला के व्यवहार को अपना लेना चाहिए.
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