गर्म टोपी और गले में मफलर लगा निकले नीतीश कुमार
मिथिला का यह इलाका मेरे लिये खास परिचित था. निकट के दो गांवों में मेरी नजदीकी रिश्तेदारी थी तो कुछ दूर आगे के गांव में मेरा नानी घर था. सो, यहां रात्रि-विश्राम में कोई परेशानी नहीं हुई. हमने निकट के धेरुष गांव में भोजन और रात्रि विश्राम किया. इसके पहले बहेड़ा में भी भोजन का उत्तम प्रबंध था. सुबह की सैर में हम मुख्यमंत्री के टेंट में पहुंचे तो वह करीब-करीब तैयार हो चुके थे. मुख्यमंत्री निकले, पड़ोस का अल्पसंख्यक बहुल नवटोल गांव था. सर्दी की सुबह मुख्यमंत्री के सिर पर गर्म टोपी और गले में मफलर लगा था. हमलोगों को चूंकि भाग-दौड़ करनी थी तो सुबह में ही जो कपड़ा पहना, वहीं देर रात तक तन पर रहता था. रास्ते में मुख्यमंत्री ने जानना चाहा कि रात्रि में कोई दिक्कत तो नहीं हुई. हमने बताया कि बगल के गांव में मेरी बहन रहती है, वहीं चला गया था. मुख्यमंत्री खुश हुए, कहा, चलिये दोनों काम हो गया.
दिव्यांग बच्चे को देख नियम में बदलाव की सीख
दरभंगा के उस गांव में मुख्यमंत्री को एक बच्ची मिली. “स्कूल जाती हो.? मुख्यमंत्री ने पूछा
– “हां. मदरसे में.” जवाब मिला.
– “आज नहीं गयी?”
बच्ची चुप रही.
मुख्यमंत्री ने कहा, “खूब पढ़ो, स्कूल जाओ.”
थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर करीब 13 साल का शमीम मिला. शमीम के परिजनों ने मुख्यमंत्री को बताया कि यह बच्चा विकलांग है. लेकिन, सरकार की किसी भी योजना का लाभ इसे नहीं मिलता. ऐसा अकेला शमीम ही नहीं है. कई बच्चे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा– “रास्ता निकालेंगे, इसे भी लाभ मिलेगा.” साथ चल रहे अधिकारी को उन्होंने विकलांगता का प्रमाण पत्र जारी करने के मौजूदा नियमावली को बदल कर नया सरल तरीका लागू करने का निर्देश दिया. इस तरह शमीम के बहाने मुख्यमंत्री ने विकलांग बच्चों के जीवन में एक नया उत्साह पैदा किया.
Also Read : नीतीश की यात्राएं-4 : विकास का नीतीश मॉडल 2005 में ही था तैयार, ऐसे बना था सुशासन का फर्मूला