Nitish Kumar Yatra: पतिलार में देर रात तक मेला का आलम था. गांव के करीब करीब सभी दालान मेहमानों से पटे थे. जो थोड़े बहुत संपन्न घर थे, उनके दालानों को सरकारी मुलाजिमों ने कब्जा कर लिया था. कुछेक दरवाजों पर पत्रकारों को भी ठौर मिली थी. देर रात तक गांव में रतजगा का आलम था. पतिलार में रात गुजारने के बाद सुबह की सैर के लिए मुख्यमंत्री पड़ोस के गांव मिश्रोलिया पहुंचे.
भाई के लिए मांग ली साइकिल
मिश्रोलिया के एक घर का दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला तो सामने एक 13-14 साल की लड़की खड़ी थी. दरवाजे पर सरकार यानी मुख्यमंत्री को देख वह चौक पड़ी.
“स्कूल जाती हो?” मुख्यमंत्री ने पूछा.
—“हां.” उत्तर मिला.
—“साइकिल मिली?”
— “हां.”
अब लड़की की बारी थी, लगे हाथ भाई के लिए भी साइकिल की मांग कर दी. कहा उसे नहीं मिला. सीएम मुस्कुराये और कहा— “मिलेगा.” मुख्यमंत्री आगे बढ़े. नौजवानों की आंखों में उम्मीदों की किरण थी. मुख्यमंत्री आगे बढ़ते हैं, लोगों की भीड़ घेर रही है.
उद्घाटन पर आने का किया वादा
नीतीश कुमार कहते हैं, जब हम आये थे तो 25 लाख स्कूली बच्चे स्कूल से बाहर थे. अब इनकी संख्या मात्र 10 लाख रह गयी है. विकास और मुहब्बत का पैगाम लेकर आये हैं. छपवा की सभा में मुख्यमंत्री ने हरसिद्धि को नगर पंचायत का दर्जा देने का एलान किया. यहां आदर्श उच्च विद्यालय प्रांगण में आयोजित सभा में मुख्यमंत्री ने दस करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया. सिकरहना नदी के जाटव घाट पर पुल बनाने की घोषणा की. इस पुल की वर्षों से मांग की जा रही थी. मुख्यमंत्री ने कहा पुल का उद्घाटन करने भी हम ही आयेंगे. लोगों ने उनके इस घोषणा का ताली बजाकर स्वागत किया.
विकास और मुहब्बत का पैगाम
यहां मुख्यमंत्री ने अपनी यात्रा का उद्देश्य बताते हुए कहा कि वह विकास और मुहब्बत का पैगाम लेकर आये हैं. निचले स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं का विकास हुआ है. गरीबों की शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर करना चाहते हैं. लोगों के मन से भय समाप्त हुआ है और प्रदेश में कानून का राज स्थापित हुआ है. मुख्यमंत्री सुबह की सैर के दौरान नंदनगढ़ बौद्धस्तूप पहुंचे. हम पत्रकारों की टोली भी उनके साथ थी. कई चीजें यों ही बिखरी पड़ी थी. मुख्यमंत्री घूम रहे थे. उनके मन में एशिया के इस सबसे बड़े बौद्ध स्तूप को लेकर कई जिज्ञासा थी.
बौद्ध स्तूप के रखरखाव को लेकर हुए चिंतित
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के मातहत इस बौद्ध स्तूप के रखरखाव को लेकर नियुक्त एक कर्मी मिला. जब मुख्यमंत्री ने उनका पद जानना चाहा तो कर्मी ने बताया कि वह चतुर्थ श्रेणी का स्टाफ है. मुख्यमंत्री के चेहरे पर राज्य के इस अनमोल खजाने के प्रति लापरवाही की चिंता की रेखाएं उभर रही थी. कहा, एशिया के सबसे बड़े इस स्तूप के रखरखाव को लेकर गंभीर प्रयास नहीं किया गया. वो बोले, केंद्र सरकार से इसके लिए मदद ली जायेगी. वह पत्र भी लिखेंगे. ब्रिटिश काल में सर अलेकजेंडर कनिंघम ने नंदनगढ़ के इस स्तूप की खोज की थी. बाद में गेरिक ने इसके ऊपरी परत की खुदाई करायी थी. आज वह बदहाल स्थिति में था. जगह-जगह पर चाहरदीवारी भी टूटी पड़ी थी.
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