बिहार के अरूही गांव के हैं मनीष
अरूही गांव में लोगों ने बताया कि मनीष रंजन के पिता मंगलेश मिश्र बंगाल के इंटर कॉलेज में शिक्षक थे. इसलिए तीनों भाइयों की पढ़ाई बंगाल के झालदा में ही पूरी हुई. नौकरी लगने के बाद तीनों भाई अपने परिवार के साथ अलग-अलग जगहों पर रहने लगे. मनीष बड़ा होने के नाते परिवार के सभी सदस्यों का ख्याल रखते थे. मनीष का शव परिजनों के पास मालदा लाया जायेगा. वहां उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा. मनीष रंजन पहले रांची मे कार्यरत थे, फिर हैदराबाद मे ट्रांसफर हो गया. मनीष रंजन के दादा पारसनाथ मिश्रा भी प्रधानाध्यापक रह चुके है, जो रिटायर होने के बाद मे सासाराम में रहते थे.
अरूही गांव में मचा कोहराम
मनीष रंजन की हत्या से अरूही गांव में कोहराम मचा है. पूरा गांव ग्रामीण और आक्रोशित है. हर ग्रामीण की आखें नम थी. लोगों ने एक स्वर से दोषी आतंकियों और उनके आका पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है. अरूही गांव में रहनेवाली मनीष रंजन की चाची आरती देवी के चेहरे पर मनीष की मौत का गम साफ झलक रहा था. लेकिन, उन्होंने अपने आंसू पोछते हुए मोदी सरकार से आतंकियों और उनके आकाओं को जड़ से समाप्त करने की मांग की.
साल में एक बार गांव जतर आत थे मनीष
मनीष रंजन के पिता भले ही अपनी पूरी जिंदगी बंगाल के मालदा में गुजार दी, लेकिन मनीष को अपने पैतृक गांव अरूही से बहुत लगाव था. छुट्टी के दिनों में वह पिता मंगलेश मिश्र, माता आशा देवी, पत्नी जया देवी, दोनों बच्चे और दोनों भाइयों के साथ अरूही जरूर आते थे. 2024 मे अंतिम बार वह अपने गांव एक परिवार के सदस्य के घर गृह प्रवेश में आये थे. ग्रामीणों के अनुसार, मनीष का स्वभाव काफी मिलनसार था. वह बगैर भेदभाव के गांव के सभी लोगों से मिलते-जुलते थे.
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