पहले संविधान संशोधन को लेकर आया जिक्र
राज्यसभा में संविधान पर चर्चा की शुरुआत करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंबेदकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बाद कामेश्वर सिंह का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि कामेश्वर सिंह जो संविधानसभा के सदस्य थे, उन्होंने नेहरू के पहले संविधान संशोधन को यह कहते हुए विरोध किया था कि यह अंतरिम सरकार है और इसे जनता का जनादेश इस काम के लिए नहीं मिला है. संविधान सभा के सदस्य कामेश्वर सिंह ने कहा था, ” यह संसद, एक अस्थायी है. यह लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित नहीं कर रही है. जिस तरह से संविधान चाहता है कि संसद इसे प्रतिबिंबित करे. इस तरह की सरकार या संसद के लिए जनता की राय का संदर्भ दिए बिना संविधान में इस तरह के मूलभूत परिवर्तन करना बेहद अनुचित है, और वह भी एक कठिन संसदीय सत्र के अंतिम चरण में और लगभग आम चुनाव की पूर्व संध्या पर.”
निरंकुशता के बीच बोने का आरोप
उपसभापति हरिवंश के आसन को संबोधित करते हुए निर्मला सीतारमन ने कामेश्वर सिंह के भाषण को आगे कोट करते हुए कहा कि कामेश्वर सिंह कहते हैं, “क्या वे संविधान के प्रति घोर उपेक्षा नहीं दिखाते जब वे इसमें संशोधन करने का प्रयास सिर्फ इसलिए करते हैं, क्योंकि कुछ कानूनों की आलोचना की गई है और न्यायपालिका द्वारा उन्हें अमान्य पाया गया है?” कामेश्वर सिंह आगे कहते हैं, ‘मैं यह कहने के लिए बाध्य हूं कि प्रधानमंत्री कार्यकारी निरंकुशता का बीज बो कर और पार्टी के फायदे के लिए संविधान की सर्वोच्चता के साथ खेलकर एक बुरी मिसाल कायम कर रहे हैं.इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं था कि संशोधन पार्टी, प्रधान मंत्री या सरकार की छवि के लिए लाया गया था.”
संजय झा ने भी किया कामेश्वर सिंह के भाषण का जिक्र
बहस में हिस्सा लेते हुए जदयू सांसद संजय झा ने भी नेहरू के इस कट्टर विरोधी को सदन में न केवल याद किया बल्कि उनकी बातों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह भी संविधान सभा के सदस्य थे और बाद में वो जीवन के अंतिम क्षण तक राज्य सभा के सदस्य रहे. कामेश्वर सिंह को कोट करते हुए संजय झा ने कहा, कामेश्वर सिंह ने कहा था, ” मैं यह स्पष्ट रूप से कहता हूं कि प्रधानमंत्री जी कार्यकारी सत्ता के अत्याचार के बीज बो रहे हैं और संविधान की सर्वोच्चता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, ताकि पार्टी की लाभ को प्राथमिकता दी जा सके. वह एक खराब मिशाल स्थापित कर रहे हैं और यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक रुझान है.
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