Raksha Bandhan 2025: शहर की महिलाओं के हाथ से बनी राखियों का जबरदस्त डिमांड, हाथों-हाथ बिक रहीं हैंडमेड राखियां

Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन का पर्व इस वर्ष नौ अगस्त दिन शनिवार को मनाया जायेगा. बाजार भी रंग-बिरंगी राखियों से सज चुका है, लेकिन ट्रेडिशनल हैंडमेड राखियों की मांग बढ़ी हैं. ये राखियां न सिर्फ भाई-बहन के प्रेम को दर्शाती हैं, बल्कि कई महिलाओं की आजीविका का जरिया भी बन गयी हैं. शहर की कई महिलाएं और युवतियां अपने हुनर से राखियां तैयार कर आत्मनिर्भर बन रही हैं और घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही हैं. खरीदार भी लोकल प्रोडक्ट्स को तरजीह देकर इनका हौसला बढ़ा रहे हैं. हैंडमेड राखियां तैयार करने वाली महिलाओं पर पेश है खास रिपोर्ट...

By Radheshyam Kushwaha | July 22, 2025 10:00 PM
an image

Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के बीच प्रेम और रिश्ते को मजबूत करने का अवसर है, लेकिन इस साल यह पर्व महिलाओं की आर्थिक सशक्तीकरण और स्थानीय संस्कृति के संवर्धन का भी प्रतीक बन गया है. नौ अगस्त को मनाये जाने वाले रक्षाबंधन के मौके पर बाजार रंग-बिरंगी और खूबसूरत हैंडमेड राखियों से सजा हुआ है, और बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए खरीदारी भी कर रही हैं. पिछले कुछ वर्षों से हैंडमेड राखियों की लोकप्रियता में काफी वृद्धि देखी गई है, और यह बदलाव विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक अवसर बन गया है, जो इसे खुद तैयार कर अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद कर रही हैं. महिलाएं अपने घर पर अलग-अलग प्रकार की राखियां बनाकर ऑफलाइन व ऑनलाइन सेल करती है. इससे महिलाओं को रोजगार भी मिल जाता है. कई ग्राहकों ने बताया कि हाथ से बनी राखियां बेहद पसंद आ रहा है. शहर की कई महिलाएं कमाल की राखी बनाती हैं.

इन महिलाओं की आजीविका का सहारा बन रही हैंडमेड राखियां

दिल्ली, लखनऊ से अब तक मिला है पांच हजार ऑर्डर: गीतांजलि चौधरी, टिकुली कलाकार

पटना सिटी की गीतांजलि चौधरी टिकुली कलाकार हैं, जो पिछले 26 वर्षों से टिकुली आर्ट पर आधारित राखियां तैयार करती आ रही हैं. पारंपरिक रूप से सजी इन राखियों की खासियत है कि इन्हें ज्वेलरी के रूप में भी पहना जा सकता है. एथनिक फैशन वर्ल्ड एसएचजी ग्रुप से जुड़ी गीतांजलि के साथ 25 महिलाएं और युवतियां इस कला को जीवित रखे हुए हैं. हर राखी को बनाने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है, क्योंकि टिकुली की पेंटिंग को कई बार सुखाना होता है. इस बार उन्हें दिल्ली, लखनऊ, बेंगलुरु समेत लोकल संस्थानों से 5000 राखियों का ऑर्डर मिला है, जिनकी कीमत 50 से 250 रुपये तक है. यह राखियां न केवल कला को जीवित रख रही हैं, बल्कि महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता का मार्ग भी बना रही हैं.

पारंपरिक व कस्टमाइज्ड राखियां रोजगार को दे रहे नये अवसर: ममता भारती, मधुबनी आर्टिस्ट

दानापुर की ममता भारती मधुबनी पेंटिंग की पारंपरिक राखियां पिछले 22 वर्षों से बना रही हैं. वे बताती हैं कि यह कार्य पूरी एकाग्रता और धैर्य से किया जाता है. इस बार उन्होंने दो तरह की राखियां तैयार की हैं – पारंपरिक और कस्टमाइज्ड. ममता कहती हैं, पारंपरिक राखियों की एक दिन में 20 यूनिट बन जाती हैं, जबकि कस्टमाइज्ड के लिए दो दिन लगते हैं. इस तरह की राखियों की कीमत 20 से 500 रुपये तक है. खास बात यह है कि ममता मौली और रेशम जैसे सांस्कृतिक धागों का प्रयोग करती हैं, जिससे राखी और भी पावन बनती है. वे अन्य महिलाओं को भी इस कला में प्रशिक्षित कर रही हैं ताकि यह परंपरा जीवित रहे और महिलाओं को रोजगार के नये अवसर मिलें.

इको-फ्रेंडली राखी बना दे रही परंपरा व पर्यावरण का संदेश: छाया तिवारी, कलाकार

पटना की छाया तिवारी इस बार भी इको-फ्रेंडली राखियों के जरिए रक्षाबंधन को खास बना रही हैं. वे चावल, दालें, तीसी, मिलेट्स और कॉर्न के वेस्ट पत्तों से सुंदर राखियां तैयार करती हैं. ये न केवल जैविक हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी. वे कहती हैं, एक राखी बनाने में लगभग एक घंटा लगता है. 20 दिन पहले उन्होंने राखी निर्माण का काम शुरू किया था. उनकी राखियां 120 से 350 रुपये तक की रेंज में उपलब्ध हैं. इस बार उन्हें सभी ऑर्डर ऑनलाइन मिले हैं, जिनमें पटना, केरल, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहर शामिल हैं. छाया का प्रयास दर्शाता है कि किस तरह रचनात्मकता और पर्यावरण चेतना के संगम से महिलाओं को नयी पहचान मिल रही है.

सीमित संसाधनों में भी अपने हुनर से बनी आत्मनिर्भर : रीना कुमारी, कलाकार

भूतनाथ रोड की रीना कुमारी पिछले दो वर्षों से राखी निर्माण कर रही हैं. पिछले साल उन्होंने रेजिन से राखियां बनायी थीं, जबकि इस बार वे फैब्रिक से तैयार कर रही हैं. फैब्रिक को एमडीएफ बोर्ड पर चिपकाकर उस पर मोती, बीड्स और जरी से सुंदर डिजाइन बनायी जाती है. उन्हें इस बार बल्कि ऑर्डर भी मिले हैं और सावन महोत्सव में स्टॉल लगाने की भी तैयारी कर रही हैं. कुछ राखियां पहले से तैयार कर ली गयी हैं, ताकि त्योहार के समय मांग पूरी हो सकें. मोती, बीड्स से बनी इन राखियों की कीमत 50 से 150 रुपये तक है. रीना की यह पहल दर्शाती है कि कैसे सीमित संसाधनों से भी महिलाएं अपने हुनर से आत्मनिर्भर बन सकती हैं.

सिल्क धागा व कलावा से तैयार हो रही पारंपरिक राखियां: निरुपमा श्रीवास्तव, कलाकार

मखनिया कुआं की निरुपमा श्रीवास्तव पारंपरिक राखियों को नयी पहचान दे रही हैं. पिछले दो वर्षों से वे सिल्क धागा, कलावा, नग और मोती से खूबसूरत राखियां बना रही हैं. उनका खुद का एक ब्रांड है, जिसके तहत वे राखियों का निर्माण करती हैं. इस बार 50 से अधिक राखियां उन्होंने 15 दिन पहले तैयार कर ली हैं, जिन्हें सावन महोत्सव में बिक्री के लिए रखेंगी. इनकी कीमत 30 रुपये है, जो हर वर्ग के लिए सुलभ है. निरुपमा की पहल न केवल पारंपरिक धरोहर को सहेज रही है, बल्कि अन्य महिलाओं को रोजगार के लिए प्रेरित भी कर रही है. वे महिला सशक्तिकरण की सशक्त मिसाल बन चुकी हैं.

Also Read: हाजीपुर में मृत व्यक्ति वृद्धा पेंशन लेने पहुंचा बैंक, नित्यानंद को जिवित देखकर मची खलबली

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

यहां पटना न्यूज़ (Patna News) , पटना हिंदी समाचार (Patna News in Hindi), ताज़ा पटना समाचार (Latest Patna Samachar), पटना पॉलिटिक्स न्यूज़ (Patna Politics News), पटना एजुकेशन न्यूज़ (Patna Education News), पटना मौसम न्यूज़ (Patna Weather News) और पटना क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर.

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version