Sawan 2025: देवों के देव महादेव की आराधना का महीना सावन कल से शुरू, जानें ज्योतिषाचार्य से जलाभिषेक का महत्व

Sawan 2025: 11 जुलाई 2025 दिन शुक्रवार से देवों के देव महादेव की आराधना का पावन महीना सावन शुरू हो रहा है, जो 9 अगस्त को पूर्णिमा के साथ सम्पन्न होगा. श्रावण मास की दस्तक के साथ ही राजधानी पटना में शिव भक्ति की गूंज सुनाई देने लगी है. शिवालयों में जहां तैयारियां जोरों पर हैं, वहीं बाजारों में भी श्रद्धा और आस्था का रंग चढ़ने लगा है. बाजार गेरुआ और हरे रंग की आभा से सराबोर है. कांवर यात्रा की तैयारी में जुटे श्रद्धालुओं के लिए त्रिशूल, गेरुआ वस्त्र, भोलेनाथ की तस्वीरों वाले साफी और टी-शर्ट्स की बिक्री ने रफ्तार पकड़ ली है. शिवभक्त ‘बोल बम’ के जयकारों के साथ शिव नगरी की ओर कूच करने को आतुर हैं.

By Radheshyam Kushwaha | July 10, 2025 5:30 AM
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Sawan 2025: सावन का पावन महीना शुरू होते ही राजधानी पटना का बाजार शिव भक्ति के रंग नजर आ रहा है. चारों ओर गेरुआ वस्त्रों, भगवान शंकर की छवि वाले साफी और कांवरियों के लिए जरूरी सामानों की बहार है. बाजार में गेरुआ टी-शर्ट, त्रिशूल, कमंडल, बेलपत्र, रुद्राक्ष माला, फूल-माला और शृंगार सामग्री की बिक्री जोर पकड़ रही है. महिलाएं हरे चूड़ी, बिंदी, साड़ी और मेहंदी की खरीदारी में जुटी हैं. शहर के प्रमुख शिवालयों को सजाने की तैयारियां भी तेज हो गयी हैं. कांवड़ यात्रा के लिए किट्स की मांग बढ़ने से दुकानदारों के चेहरे खिल उठे हैं. सावन के स्वागत में बाजारों की रौनक देखते ही बनती है. एक ओर आस्था की उमंग है, तो दूसरी ओर व्यापारियों को अच्छे कारोबार की उम्मीद.

गेरुआ वस्त्रों की हो रही खरीदारी

बाबा धाम गेरुआ वस्त्र पहन कर ही जाया जाता है. गेरुआ वस्त्र का अपना महत्व होता है, लिहाजा गेरुआ वस्त्रों की भी खरीदारी शुरू हो चुकी है. दुकानदारों का कहना है कि हालांकि इस बार महंगाई बढ़ने के कारण कपड़ों की कीमत में इजाफा हुआ है. बाजार में कांवरियों के लिए शिव और त्रिशूल बने टी शर्ट और सिर पर बांधने के लिए भगवान शंकर की छपी फोटो वाला पटना बाजार में पहुंच गया. इसे युवा शिव भक्त काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं महिलाओं के लिए कॉटन और सिंथेटिक साड़ी, स्ट्रेट पैंट, पटियाला, कुर्ती केसरिया और हरे रंगों में उपलब्ध है.

श्रद्धालुओं को खूब भा रहे हैं डिजाइनर कांवर

पटना के बाजारों में शिव भक्ति का उत्साह साफ झलक रहा है. न्यू मार्केट, कदमकुआं, खेतान मार्केट, कंकड़बाग, राजा बाजार और बोरिंग रोड जैसे प्रमुख बाजारों में कांवर यात्रा से जुड़ी वस्तुओं की भरमार है. कांवर, त्रिशूल, भगवा टी-शर्ट, साफी, गमछा, बेलपत्र, गंगाजल की बोतलें, धतूरा, भस्म, रुद्राक्ष और पूजा सामग्री की बिक्री चरम पर है. कांवरों की कीमत 800 रुपये से लेकर 3000 रुपये तक है. रेडीमेड कांवरों के साथ-साथ पीतल और लकड़ी से बने विशेष डिजाइन वाले कांवर भी श्रद्धालुओं को खूब भा रहे हैं. बाजार में देश के विभिन्न हिस्सों से लाये गये सामानों ने रौनक बढ़ा दी है.

पुरदिलनगर से मंगायी गयी हैं मोती व मालाएं

मुरादाबाद से गंगाजल, दिल्ली से रंग-बिरंगे सजावटी उत्पाद, जलेसर से घंटी-घुंघरू और पुरदिलनगर (यूपी)से मोती-मालाएं मंगायी गयी हैं, जिन्हें स्थानीय थोक और खुदरा दुकानदार बेच रहे हैं. महिलाएं सावन सोमवार और हरियाली तीज को ध्यान में रखते हुए हरे रंग की साड़ियों, लहरिया डिजाइन की चूड़ियों, हरे रंग की बिंदियों और मेहंदी की खरीदारी में व्यस्त हैं. बाजारों में ‘हरियाली थीम’ की मांग चरम पर है, जिससे पूरा माहौल त्योहारमय हो गया है.

रक्षाबंधन के साथ सम्पन्न होगा सावन

श्रावण मास भगवान शिव की आराधना का श्रेष्ठ समय माना जाता है. इस वर्ष यह 11 जुलाई (शुक्रवार) से शुभारंभ होकर 9 अगस्त (शनिवार) को रक्षाबंधन के साथ सम्पन्न होगा. आचार्य राकेश झा के अनुसार, इस मास में जलाभिषेक, व्रत और भक्ति से साधक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं.

चार होगा सोमवारी व्रत

  • 1 सोमवारी – 14 जुलाई
  • 2 सोमवारी – 21 जुलाई
  • 3 सोमवारी – 28 जुलाई
  • 4 सोमवारी – 4 अगस्त

शिव को प्रसन्न करना अत्यंत सहज

आचार्य झा बताते हैं कि सभी देवी-देवताओं में भगवान शिव की पूजा सबसे सरल मानी जाती है. केवल जल, बेलपत्र और सच्ची श्रद्धा से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं. शिव को आशुतोष कहा गया है, जो भक्तों की प्रार्थना शीघ्र स्वीकार करते हैं. सावन में ॐ नमः शिवाय, महामृत्युंजय मंत्र, रुद्राष्टक, शिव चालीसा आदि के पाठ से बाधाओं से मुक्ति और जीवन में शुभता आती है.

जलाभिषेक का पौराणिक महत्व

पंडित झा बताते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को जब भगवान शंकर ने ग्रहण किया, तब उनका कंठ नीलवर्ण हो गया और वे नीलकंठ कहे जाने लगे. विष के प्रभाव को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने उन्हें जल चढ़ाया. तभी से श्रावण मास में शिवलिंग पर जल अर्पण की परंपरा आरंभ हुई, जो आज भी अक्षुण्ण है.

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