Shahadat Diwas: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बिहार से विशेष लगाव था. चंपारण आंदोलन से लेकर पटना के गांधी आश्रम तक बापू की कई यादे जुड़ी हैं. आज भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार हमें आगे बढ़ने और कुछ अच्छा करने की हमेशा प्रेरणा देते हैं. पटना में गांधी से जुड़ी कई स्मृतियां हैं. इन स्मृतियों में बापू टावर का नाम भी जुड़ गया है.
10 अप्रैल 1917 को गांधी जी पटना पहली बार आये थे. ये कोलकाता से रेलगाड़ी के तृतीय श्रेणी में बैठकर पटना पहुंचे थे. उस वक्त पटना जंक्शन को बांकीपुर जंक्शन के नाम से जाना जाता था. यह पहला मौका था, जब गांधी जी ने बिहार की धरती पर पहली बार कदम रखे थे. चंपारण सत्याग्रह, बिहार विद्यापीठ को स्थापना और आजादी की घोषणा के बाद बिहार में हुए दंगे आदि को लेकर बापू का लगातार पटना आना-जाना लगा रहा.
पंडित राजकुमार शुक्ल के साथ पहली बार पटना आये थे बापू
बिहार सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष चंद्र भूषण ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी व चंपारण के रहने वाले पं राजकुमार शुक्ल की जिद पर बापू पटना आये थे. गांधी के पटना आने का समाचार मालूम होने के बाद उनके पुराने मित्र मौलाना मजहरूल हक साहब अपनी मोटरगाड़ी से उन्हें फ्रिजर रोड स्थित अपने घर ‘सिकंदर मंजिल’ ले गये.
चंपारण सत्याग्रह बिहार विद्यापीठ की स्थापना व आजादी की घोषणा के बाद बिहार में हुए दंगे आदि को लेकर बापू का लगातार पटना आना-जाना लगा रहा. अंग्रेजों का रेसकोर्स कहा जाने वाला आजादी के पूर्व बांकीपुर लॉन को आज लोग गांधी मैदान के नाम से जानते हैं. लगभग 60 एकड़ में फैला मैदान अंग्रेजी हुकूमत में काफी वर्षों तक रेसकोर्स था. 1942 में बापू यहां हर रोज प्रार्थना सभा करते थे.
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दरभंगा हाउस में हुई थी बैठक
पटना में गांधीजी ने तीन जून 1917 को पीरबहोर के दरभंगा हाउस में एक गोपनीय बैठक में भाग लिया. बैठक में मौलाना मजहरूल हक, मदन मोहन मालवीय हबुआ के महाराज बहादुर राय बहादुर कृष्ण शाही, मोहम्मद मुसा युसुफ, राम गोपाल चौधरी, एक्सप्रेस के प्रबंधक कृष्णा प्रसाद, दरभंगा महाराज के आप्त सचिव बैठक में थे. वे सात जून 1917 को रांधी से पटना लौटे थे.
मजहरूल हक से मिले थे गांधी जी
तीसरी बार पटना एक दिसंबर 1920 को आये थे. इस दौरान वे सदाकत आश्रम में मौलाना मजहरूल हक के साथ आश्रम में रहे फिर इसी सात दो दिसंबर को फुलवारीशरीफ गये और फिर तीन दिसबर को आश्रम में रहे थे.
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