Sharda Sinha Death: लोकगायिका शारदा सिन्हा का कल होगा अंतिम संस्कार, परिजनों ने लिया फैसला

Sharda Sinha Death: छठ पूजा का महापर्व और उससे जुड़े गीत शारदा सिन्हा की मधुर आवाज के बिना अधूरे से लगते हैं. वे पिछले 11 दिनों से कैंसर जैसी बीमारी की वजह से दिल्ली के AIIMS में भर्ती थीं और मंगलवार की रात उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली. शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार 7 नवंबर को पटना में राजकीय सम्मान के साथ होगा.

By Anshuman Parashar | November 6, 2024 1:11 PM
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Sharda Sinha Death: बिहार की लोक संगीत की अमर धरोहर लोकगायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार रात दिल्ली के AIIMS अस्पताल में 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया. छठ पूजा का महापर्व और उससे जुड़े गीत शारदा सिन्हा की मधुर आवाज के बिना अधूरे से लगते हैं. वे पिछले 11 दिनों से कैंसर जैसी बीमारी की वजह से दिल्ली के AIIMS में भर्ती थीं और मंगलवार की रात उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली. शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार 7 नवंबर को पटना में राजकीय सम्मान के साथ होगा.

शारदा सिन्हा के शव को पटना लाकर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया

शारदा सिन्हा के निधन की खबर ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश को गमगीन कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के CM नीतीश कुमार ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया. सांसद और भोजपुरी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता मनोज तिवारी ने बताया कि शारदा सिन्हा के शव को दिल्ली से पटना लाकर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है, उनका अंतिम संस्कार पटना में राजकीय सम्मान के साथ होगा. शारदा सिन्हा के परिजनों ने फैसला लिया कि उनका अंतिम संस्कार 07 सितंबर को सुबह के 8:00 से 9:00 के बीच किया जाएगा.

शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत मैथिली गीतों से की थी

बिहार के सुपौल जिले में जन्मीं शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत मैथिली गीतों से की थी, लेकिन उनकी आवाज़ ने भोजपुरी और मगही सहित अन्य भाषाओं के लोकगीतों को भी अमर बना दिया. उन्होंने न केवल क्षेत्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि छठ जैसे पवित्र पर्वों से जुड़े गीतों के माध्यम से बिहार की संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाई.

पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित

शारदा सिन्हा को पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. उन्होंने अपने गीतों में गांव, संस्कृति और त्योहारों की महक भर दी थी. आज उनकी आवाज की कमी से बिहार के लोक संगीत में एक गहरा खालीपन महसूस हो रहा है, जिसे भर पाना शायद कभी मुमकिन नहीं होगा.

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