पिता बनाना चाहते थे डॉक्टर
पिता भुवनेश्वरी प्रसाद सिन्हा तथा माता श्यामा देवी के बेटे शत्रु के पिता पेशे से चिकित्सक थे, इस वजह से उनकी इच्छा थी कि बेटा शत्रु भी डॉक्टर बने. लेकिन शॉटगन को ये मंजूर नहीं था. भारतीय फ़िल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे से स्नातक शत्रुघ्न की इच्छा बचपन से ही फ़िल्मों में काम करने की थी. अपने पिता की इच्छा को दरकिनार कर वे फ़िल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे में प्रवेश लिया. वहाँ से ट्रेनिंग लेने के बाद वे फ़िल्मों में कोशिश करने लगे. लगभग चार दशकों में शत्रुघ्न सिन्हा ने कम से कम 200 हिन्दी फ़िल्मों में काम किया है. सिन्हा फ़िल्मों में अपने नकारात्मक चरित्र के लिए जाने गये. अभिनय के अलावा उन्होंने ‘कशमकश’, ‘दोस्त’ और ‘दो नारी’ जैसी फ़िल्मों में गाने में भी हाथ आजमाया.
देवानंद के कहने पर नहीं करायी सर्जरी
शत्रुघ्न सिन्हा को कटे होंठ के कारण शुरुआती दिनों में फिल्में नहीं मिल रही थी. ऐसे में वे प्लास्टिक सर्जरी कराने की सोचने लगे. तभी देवानंद ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था. उनके चेहरे के एक गाल पर कट का लम्बा निशान है. यह निशान उनकी खलनायकी का प्लस पाइंट बन गया. शत्रुघ्न ने अपने चेहरे के एक्सप्रेशन में इस ‘कट’ का जबरदस्त इस्तेमाल कर अभिनय को प्रभावी बनाया है. बिहारी बाबू उर्फ शॉटगन उर्फ शत्रुघ्न सिन्हा की एंट्री जब हिन्दी सिनेमा में होती है, यह वह दौर था जब बहुलसितारा (मल्टी स्टारर) फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धन बरसा रही थीं. अपनी ठसकदार बुलंद, कड़क आवाज और चाल-ढाल की मदमस्त शैली के कारण शत्रुघ्न जल्दी ही दर्शकों के चहेते बन गए.
हीरो बनने से पहले बन गये नंबर वन विलेन
आए तो थे वे हीरो बनने, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें खलनायक बना दिया. उन्होंने पचास-साठ के दशक में केएन सिंह, साठ-सत्तर के दशक में प्राण, अमजद ख़ान और अमरीश पुरी से अलग अपनी एक छवि तैयार की. खलनायकी के रूप में छाप छोड़ने के बाद वे हीरो भी बने. शत्रुघ्न की पहली हिंदी फ़िल्म डायरेक्टर मोहन सहगल निर्देशित ‘साजन’ (1968) के बाद अभिनेत्री मुमताज़ की सिफारिश से उन्हें चंदर वोहरा की फ़िल्म ‘खिलौना’ (1970) मिली. इसके हीरो संजीव कुमार थे. बिहारी बाबू को बिहारी दल्ला का रोल दिया गया. शत्रुघ्न ने इसे इतनी खूबी से निभाया कि रातों रात वे निर्माताओं की पहली पसंद बन गए.
अमिताभ के साथ की कई फिल्में
उस दौर के एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन के साथ शत्रुघ्न की एक के बाद एक अनेक फ़िल्में रिलीज होने लगीं. 1979 में यश चोपड़ा के निर्देशन की महत्वाकांक्षी फ़िल्म ‘काला पत्थर’ आई थी. इसके नायक अमिताभ थे. यह फ़िल्म 1975 में बिहार की कोयला खदान चसनाला में पानी भर जाने और सैकडों मज़दूरों को बचाने की सत्य घटना पर आधारित थी. आगे चलकर अमिताभ-शत्रुघ्न फ़िल्म दोस्ताना (निर्देशक- राज खोसला), शान (निर्देशक- रमेश सिप्पी) तथा नसीब (निर्देशक- मनमोहन देसाई) जैसी फ़िल्मों में साथ-साथ आए.
राजनीति में भी निभाये दोनों किरदार
शत्रुघ्न सिन्हा का राजनीतिक सफर भी काफी सफल रहा है. राजनीति में भी उनकी एक अलग पहचान रही है और यहां भी उन्होंने पक्ष और विपक्ष दोनों भूमिका अदा की है. भाजपा से अपनी राजनीतिक शुरुआत करनेवाले शत्रुघ्न सिन्हा आज भाजपा की धुर विरोधी तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं. शत्रुघ्न सिन्हा बॉलीवुड से निकलने वाले पहले नेता हैं, जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री बनाये गये. मौजूदा समय में वह बंगाल के आसनसोल क्षेत्र से लोकसभा सदस्य हैं.
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