Smart Meter: पटना में इन लोगों के यहां नहीं लगेंगे स्मार्ट प्रीपेड मीटर, पोस्टपेड पर ही रहना होगा निर्भर
Smart Meter: स्मार्ट प्रीपेड मीटर की तकनीकी विशिष्टताओं और क्षमताओं के अनुसार, केवल वे उपभोक्ता ही स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगवा सकेंगे जिनका विद्युत कनेक्शन 60 एम्पियर या 19 केवी तक है, क्योंकि स्मार्ट प्रीपेड मीटर इससे अधिक विद्युत भार लेने के लिए निर्मित नहीं किया जाता है
By Anand Shekhar | October 6, 2024 4:29 PM
Smart Meter: पटना समेत पूरे बिहार में जहां ज्यादातर सरकारी और निजी उपभोक्ताओं के यहां स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का काम तेजी से चल रहा है, वहीं कुछ ऐसे उपभोक्ता भी हैं जिनके यहां यह मीटर नहीं लगेगा. जिन उपभोक्ताओं का बिजली कनेक्शन 19 केवी से ज्यादा है, उनके लिए यह तकनीकी रूप से संभव नहीं है. स्मार्ट प्रीपेड मीटर की मौजूदा क्षमता 60 एम्पियर या 19 केवी तक के कनेक्शन तक ही सीमित है, इससे ज्यादा पर यह काम नहीं कर सकता. ऐसे में इससे ज्यादा लोड वाले उपभोक्ताओं के यहां स्मार्ट मीटर नहीं लगेगा.
19 केवी से अधिक वाले उपभोक्ताओं के लिए पोस्टपेड मीटर ही विकल्प
एलटीसीटी पोस्टपेड मीटर उन उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराए गए हैं जिनका विद्युत भार 19 केवी से 70 केवी के बीच है. जबकि, एचटी पोस्टपेड मीटर उन उपभोक्ताओं के लिए उपयोग किए जाते हैं जिनका विद्युत भार 70 केवी से अधिक है. इन मीटरों के लिए ऑटो रीडिंग सुविधा पहले से ही उपलब्ध है, इसलिए तकनीकी कारणों से इन्हें स्मार्ट प्रीपेड मीटर में नहीं बदला जा सकता है.
स्मार्ट मीटर का इंस्टॉलेशन 92% उपभोक्ताओं तक ही सीमित
सिंगल फेज के उपभोक्ताओं के लिए तो यह और भी कम है और यहां स्मार्ट प्रीपेड मीटर की क्षमता 7 केवी तक ही है. थ्री-फेज में यह 5 से 19 केवी के बीच में है. पटना जिले में करीब 92 फीसदी उपभोक्ताओं के यहां 19 केवी से कम बिजली लोड है, इसलिए स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का काम तेजी से किया जा रहा है. लेकिन जिन उपभोक्ताओं का बिजली कनेक्शन 19 केवी से ज्यादा है, उनके यहां स्मार्ट मीटर नहीं लगाया जाएगा.
तकनीकी सीमा की वजह से उच्च खपत वाले उपभोक्ता रहेंगे पोस्टपेड मीटर पर
यह स्पष्ट है कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर तकनीकी रूप से सीमित बिजली भार वाले कनेक्शनों के लिए ही उपलब्ध हैं. इससे अधिक बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं के लिए पोस्टपेड मीटर ही एकमात्र विकल्प होगा. इन उपभोक्ताओं में बड़े सरकारी, औद्योगिक और वाणिज्यिक संस्थान शामिल हैं, जो अपने बिजली भार के कारण इस नई तकनीक से नहीं जुड़ पाएंगे.
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