Waqf Bill: वक्फ संशोधन बिल पर केंद्र सरकार को समर्थन देना जनता दल यूनाइटेड (JDU) के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है. इस फैसले के बाद पार्टी के भीतर नाराजगी खुलकर सामने आने लगी है. पार्टी से अब तक आधा दर्जन से ज्यादा नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है.
इस्तीफा देने वाले नेताओं में कासिम अंसारी, नदीम अख्तर, शाहनवाज मल्लिक, राजू नैय्यर, तबरेज सिद्दीकी और नवादा के जिला सचिव फिरोज खान शामिल हैं. इन सभी ने वक्फ संशोधन बिल का विरोध करते हुए पार्टी की मौन सहमति पर नाराज़गी जाहिर की है.
विपक्ष का हमला तेज
इस पूरे घटनाक्रम पर विपक्षी दलों ने भी JDU और BJP को घेरना शुरू कर दिया है. पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने नीतीश कुमार और BJP पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि यह बिल अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन है और JDU इस षड्यंत्र में बराबर की भागीदार है. राजद नेताओं ने भी सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि वक्फ संपत्तियों पर केंद्र की नजर है और सहयोगी दल आँख मूंदे बैठे हैं.
JDU का पलटवार
इधर JDU ने इस्तीफा देने वाले नेताओं को पार्टी के लिए ‘अमहत्वपूर्ण’ करार देते हुए पूरे विवाद को हल्का करने की कोशिश की है. केंद्रीय पंचायती राज मंत्री और JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि जिन लोगों के इस्तीफे की चर्चा हो रही है, वे पार्टी में कभी भी प्रभावी भूमिका में नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे नेता चुनाव में मुश्किल से कुछ सौ वोट ही जुटा पाते हैं, इसलिए इनका जाना पार्टी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा.
‘वोट भी नहीं मिलते और बनते हैं नेता’- ललन सिंह
ललन सिंह ने RJD पर भी तंज कसते हुए कहा कि जिन लोगों को वक्फ बोर्ड की मूलभूत जानकारी नहीं है, उन्हें इस मुद्दे पर बोलने का कोई हक नहीं है. उन्होंने लालू प्रसाद यादव के पुराने भाषणों की याद दिलाते हुए कहा कि RJD केवल बयानबाज़ी की राजनीति करती है, जबकि JDU जमीनी स्तर पर काम करने वाली पार्टी है.
JDU ने दिखाई एकजुटता
JDU प्रवक्ता राजीव रंजन और विधायक विजय चौधरी ने भी कहा कि पार्टी में संगठनात्मक मजबूती है और इन छोटे नेताओं के जाने से कोई अंतर नहीं पड़ेगा. गोपाल मंडल जैसे वरिष्ठ नेताओं ने भी कहा कि इन चेहरों की कोई राजनीतिक हैसियत नहीं थी.
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फिलहाल पार्टी इस मुद्दे को तूल देने से बचना चाह रही है, लेकिन लगातार हो रहे इस्तीफे यह संकेत दे रहे हैं कि JDU को वक्फ बिल पर समर्थन देने की राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है, खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के बीच.
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