World Menstrual Hygiene Day: बिहार में माहवारी स्वच्छता की स्थिति अभी भी चिंताजनक है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 58% महिलाएं माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए उचित तरीकों का उपयोग नहीं करती हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि 15-19 साल की 42 फीसदी और 20-24 साल की 41 फीसदी युवतियां ही सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं. स्वच्छ तरीके वाले में यह आंकड़ा 59 और 58 फीसदी का है. ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में इस आयु वर्ग को देखें, तो इसमें काफी अंतर आ जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में 38 तो शहरी में 59 फीसदी आधी आबादी सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग करती हैं. स्वच्छ तरीके वाले में शहरी में 74 तो ग्रामीण में 56 फीसदी का आंकड़ा है. 10 से 11 साल की 52 फीसदी बच्चियां सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं. स्वच्छ तरीके के उपयोग वाले में 10-11 साल की 72 फीसदी, 12 और इससे अधिक वाले में 82 फीसदी बच्चियां हैं.
बेहतर हो मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10-19 वर्ष की आयु को किशोरावस्था माना जाता है, जो बचपन और वयस्कता के बीच का परिवर्तन समय है. यह एक बच्ची के जीवन में एक महत्वपूर्ण शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और जैविक विकास का चरण है. यह हर बच्ची के जीवन में एक विशेष अवधि है, जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है. लेकिन दुर्भाग्य से मासिक धर्म की तैयारी और प्रबंधन के बारे में जानकारी की कमी या शर्मिंदगी के कारण बालिकाओं की स्थिति और भी खराब हो जाती है. इसलिए मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन को संबोधित करने के लिए रचनात्मक प्रयास की आवश्यकता है.
वक्त की जरूरत, मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे
28 मई को पूरी दुनिया में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है. 2014 में जर्मनी के ‘वॉश यूनाइटेड’ नाम के एक एनजीओ ने इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी. इसका मुख्य उद्देश्य है लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता रखने के लिए जागरूक करना. तारीख 28 इसलिए चुनी गयी क्योंकि आमतौर पर महिलाओं के मासिक धर्म 28 दिनों के भीतर आते हैं.
इन्होंने न सिर्फ लड़कियों को जागरूक किया, बल्कि हाइजीन का तरीका भी बताया
- नव अस्तित्व फाउंडेशन: स्वच्छता व जागरूकता की बनी मिसाल
अमृता सिंह और पल्लवी सिन्हा ने 2012 में नव अस्तित्व फाउंडेशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मेंस्ट्रूअल हाइजीन को लेकर जागरूकता फैलाना था. उन्होंने स्लम इलाकों में महिलाओं को सैनेटरी नैपकिन के प्रयोग और माहवारी के दौरान स्वच्छता के महत्व के बारे में बताया. 2017 में उन्होंने ‘स्वच्छ बेटियां, स्वच्छ समाज’ अभियान शुरू की और सैनेटरी वेंडिंग मशीनें स्थापित कीं. इनकी मेहनत का ही नतीजा था कि शहर में पहला सैनेटरी वेंडिंग मशीन पटना जंक्शन में लगाया गया. जिसके बाद स्कूलों व विभिन्न पब्लिक प्लेस में वेंडिंग मशीन को स्थापित किया गया. इनके द्वारा पैडबैंक की भी स्थापना की गयी, जहां से महिलाएं पासबुक के माध्यम से हर महीने सेनेटरी नैपकिन ले सकती हैं. अब तक बिहार के 250 से अधिक गांवों में 10 लाख से ज्यादा महिलाएं व किशोरियां माहवारी के प्रति जागरूक हो चुकी हैं.
- चुप्पी तोड़ो पदयात्रा: खुलकर बोलने व स्वच्छता के प्रति कर रही जागरूक
विशेखानंद (विशु) ने पिछले तीन वर्षों से माहवारी पर जागरूकता फैलाने के लिए ‘चुप्पी तोड़ो पदयात्रा’ शुरू की. उन्होंने 5000 से ज्यादा महिलाओं को हर महीने मुफ्त सैनेटरी नैपकिन बांटे और पोस्टर के जरिए डोनेशन अपील की. उनकी पहल को अब बिहार के 25 गांवों में पहले पीरियड्स पर ‘पीरियड डे’ मनाने के रूप में सराहा गया है. 28 मई 2024, अंतरराष्ट्रीय माहवारी दिवस के दिन उन्होंने पटना से ‘चुप्पी तोड़ो पदयात्रा’ की शुरुआत की. अब तक वे पांच राज्यों-बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली-में 7000 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं. इस दौरान वे सैकड़ों स्कूल, कॉलेज व बस्तियों में जाकर हजारों महिलाओं और किशोरियों को माहवारी पर खुलकर बोलने व स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हैं. ‘पीरियड डे’ मनाने की इस अनोखी पहल को सांसद डिंपल यादव, अभिनेत्री राखी सावंत जैसे कई चर्चित हस्तियां सराहना कर चुकी हैं.
पहली माहवारी पर इन्होंने मनाया उत्सव
- यह एक प्राकृतिक देन है, कोई अभिशाप नहीं : खुशी
13 वर्ष की उम्र में जब खुशी कुमारी ने अपनी पहली माहवारी अनुभव की, तो उनके पिता अनिल चौधरी ने इसे एक विशेष दिन के रूप में मनाने का निर्णय लिया. पिता ने बताया, माहवारी एक स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है, और हमें इसे एक उत्सव के रूप में मनाना चाहिए. यही कारण है कि खुशी के पहले पीरियड के दिन, उन्होंने अपनी बेटी के साथ मिलकर इस पल को सेलिब्रेट किया. इस अवसर पर उन्होंने माहवारी के बारे में जागरूकता फैलाने वाले अपने मित्र, विशु भैया को भी आमंत्रित किया, जो इस विषय पर गांव भर में जागरूकता अभियान चला रहे हैं. खुशी की यह शुरुआत उनके जीवन में एक नयी पहचान लेकर आई है, और उनका मानना है कि इस तरह के सकारात्मक रुझानों से माहवारी के प्रति समाज की सोच में बदलाव आयेगा. - केक काटकर मनाया गया था माहवरी उत्सव : जन्नती
हज भवन स्थित स्लम बस्ती में रहने वाली जन्नती परवीन कहती हैं, हमारी बस्ती में माहवारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विशु भैया ने एक अभियान शुरू किया है. उनका मुख्य उद्देश्य यह है कि हर महिला और लड़की को माहवारी के दौरान साफ-सफाई और पैड के सही इस्तेमाल के बारे में जागरूक किया जाये. पहली माहवारी को मनाना सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण जीवन के चरण की शुरुआत है. जब मैंने पहली बार माहवारी का अनुभव किया था, तब विशु भैया ने पूरे बस्ती के साथ मिलकर ‘माहवारी उत्सव’ मनाया था और केक भी काटा गया था. यह घटना न केवल मेरे लिए बल्कि पूरी बस्ती के लिए एक प्रेरणा बन गयी.
जाने- आजकल क्यों आ रहे कम उम्र में बच्चियों को पीरियड्स
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ मीना सामंत का कहना है कि सामान्यतः लड़कियों में पीरियड्स आने की उम्र 10 से 15 साल के बीच होती है, लेकिन अब यह देखा जा रहा है कि बहुत छोटी उम्र की बच्चियों, यहां तक कि 6-9 साल की उम्र में भी पीरियड्स शुरू हो रहे हैं. इसका मुख्य कारण बदलती लाइफस्टाइल और बढ़ता प्रदूषण है. इसके अलावा, आजकल के आहार में मौजूद केमिकल्स और प्रिजर्वेटिव्स भी हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों के शरीर में हार्मोनल बदलाव जल्दी होने लगते हैं, और पीरियड्स भी पहले शुरू हो जाते हैं. हालांकि, 11 से 15 साल के बीच पहली बार पीरियड्स आना भी नॉर्मल माना जाता है. लेकिन, 10 साल की उम्र से कम में पीरियड्स आना सही नहीं है. आजकल कई लड़कियों को आठ-नौ साल की उम्र में ही पहली बार पीरियड आ जाते हैं. इसे नॉर्मल न समझें. पीरियड शुरू होने का मतलब है कि शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ने काम करना शुरू कर दिया है. इसलिए डॉक्टर से मिलें और उनसे परामर्श ले.
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