अखिलेश चंद्रा/ Bihar News: पूर्णिया. बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत आनेवाले कृषि कॉलेज के मखाना वैज्ञानिकों ने मखाने में एक खास जैव-सक्रिय यौगिक की खोज की है. इससे एक तरफ जहां मेडिकल और न्यूट्रास्यूटिकल उद्योग में क्रांति आएगी, वहीं मखाना उत्पादक किसानों की तकदीर भी बदल जाएगी. दरअसल, बदलते दौर में मखाना के कटोरा के रूप में पूर्णिया व कोसी का इलाका विकसित हुआ है, जो देश को 70 फीसद मखाना दे रहा है. यहां पिछले एक दशक से चल रहे मखाना वैज्ञानिकों की मेहनत और उनकी खोज को एक नया आयाम मिल गया है. वैज्ञानिकों ने मखाना में एक खास जैव-सक्रिय यौगिक की खोज की है. खोज के दौरान इसमें आयोडोफनिल मीथेन जैसे तत्व मिले हैं, जो कैंसर और संक्रमणों से लड़ने की क्षमता रखते हैं. इस नयी खोज के आधार पर इसे भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय से दो जुलाई को 20 वर्षों के लिए पेटेंट मिल चुका है. मखाना वैज्ञानिक अनिल कुमार बताते हैं कि यह यौगिक पहली बार किसी प्राकृतिक स्रोत में मिला है. अब तक यह केवल प्रयोगशाला में तैयार किया जाता था. वैज्ञानिकों को यह यौगिक मखाना के पेरीस्पर्म यानी बीज के बाहरी हिस्से में मिला है. इसका औसत आणविक भार 297.110 डॉल्टन है. वैज्ञानिकों के अनुसार, यह यौगिक हाइड्रोजन और हैलोजन बॉन्ड बनाकर जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है. इसमें एंटीमाइक्रोबियल और कैंसररोधी गतिविधियां दिखाने की पूरी संभावना है.
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