जुड़ शीतल में सतुआइन का महत्व
इस पर्व के पीछे फसल तंत्र और मौसम भी कारक है. मिथिला में सत्तू और बेसन की नयी पैदावार इसी समय होती है. इस पर्व में इसका बड़ा महत्व है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो इसके इस्तेमाल से बने व्यंजन को अधिक समय तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है, जिससे खाना बर्बाद न हो. आमतौर पर गर्मी के कारण खाने-पीने के व्यंजन जल्दी खराब हो जाते हैं. इससे बचने के लिए मिथिला क्षेत्र के लोग गर्मी सीज़न में सत्तू और बेसन का इस्तेमाल अधिक करते हैं. जुड़ शीतल त्योहार में सतुआइन के अगले दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है. ऐसे में सतुआइन के दिन अगले दिन का भी खाना तैयार किया जाता है. अगले दिन चूल्हा न जलने पर लोग सत्तू और बेसन से बना बासी खाना ही खाते हैं.
जुड़ शीतल का प्रकृति से सीधा संबंध
जुड़ शीतल का प्रकृति से सीधा संबंध है. इस पर्व के मौके पर बड़े बुजुर्ग अपने से छोटे लोगों के सिर पर बासी पानी डाल कर ‘जुड़ैल रहु’ का आशीर्वाद देते हैं. उनका मानना है कि इससे पूरी गर्मी सिर ठंडा रहता है. साथ ही मिथिला क्षेत्र में इस दिन संध्या को घर के सभी लोग पेड़-पौधों में जल डालते हैं, जिससे गर्मी के मौसम में भी पेड़-पौधे हरे भरे रहें और वे सूखें नहीं. मिथिला के लोगों का मानना है कि पेड़-पौधे भी उनके परिवार का हिस्सा हैं और वह भी हमारी रक्षा करते हैं. इस दिन लोग घर के हर छोटे बड़े चीजों पर भी बासी जल छिड़कते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि घर में सभी कुछ जुड़ा रहे, बना रहे.
ग्लोबल वार्मिंग से बचना है तो जुड़ शीतल मनाइये
पिछले कुछ दशकों में आधुनिकीकरण के कारण ग्लोबल वार्मिंग जैसी चीजें बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में पर्यावरण को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है. जुड़ शीतल त्योहार मुख्य रूप से प्रकृति से जुड़ा हुआ है. यह जरूरी है कि आज मिथिला क्षेत्र में प्रकृति पूजन की इस विधि को बढ़ावा दिया जाए और इसका प्रचार-प्रसार किया जाए. मिथिला क्षेत्र के अलावा अन्य जगहों के लोगों को भी वर्षों पुरानी इस परंपरा के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. ग्लोबल वार्मिंग के इस बढ़ते खतरे के बीच जुड़ शीतल जैसे त्योहार हमें प्रकृति के प्रति प्रेम, सद्भाव और संरक्षण की प्रेरणा देता है. लोगों को जागरूक कर न सिर्फ आज बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियों को भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बेहतर विकल्प दिया जा सकता है.