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Bokaro News : महास्नान के बाद 15 दिनों के लिए एकांतवास में चले जायेंगे प्रभु जगन्नाथ

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Bokaro News : महास्नान के बाद 15 दिनों के लिए एकांतवास में चले जायेंगे प्रभु जगन्नाथ

बोकारो, बोकारो शहर के सेक्टर चार स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर में 11 जून को महाप्रभु जगन्नाथ का महास्नान होगा. इसके बाद 15 दिनों के लिए भगवान एकांतवास में चले जायेंगे. रथ यात्रा के एक दिन पूर्व 26 जून को नेत्रोत्सव अनुष्ठान होगा. प्रभु जगन्नाथ, भगवान बलभद्र व देवी सुभद्रा भक्तों को पुन: दर्शन देंगे. मंदिर परिसर से 27 जून को भव्य ऐतिहासिक रथ यात्रा निकलेगी. इसे लेकर मंदिर में तैयारियां जोरों पर है. 11 को मंदिर से प्रभु जगन्नाथ की स्नान यात्रा निकाली जायेगी. मंगल आरती की जायेगी.

108 घड़ों से स्नान के बाद बीमार हो जाते हैं प्रभु

रथयात्रा के पहले प्रभु को महास्नान कराया जाता है, जिसे एक धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है. इस दिन जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र और देवी सुभद्रा को स्नान मंडप पर लाकर 108 घड़ों से स्नान कराया जाता है. इस दौरान, मूर्तियों को सार्वजनिक दृश्य से दूर रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि महास्नान के बाद महाप्रभु बीमार हो जाते हैं. इस कारण अगले 15 दिनों तक भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं. मंदिर के कपाट बंद रहते हैं.

जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा का जड़ी-बूटियों से होगा इलाज

इस दौरान मंदिर के अणसर गृह में प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा का जड़ी-बूटियों से इलाज किया जाता है. इस 15 दिनों के समय को अनासारा काल भी कहा जाता है. नेत्रोत्सव कार्यक्रम रथ यात्रा के एक दिन पूर्व होने वाला महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है. नेत्रोत्सव को ‘नव यौवन दर्शन’ के रूप में भी जाना जाता है. यह अनासरा अवधि के अंत और देवताओं के स्वस्थ होने का प्रतीक माना जाता है.

प्रभु के एकांतवास के बाद पहली झलक को दर्शाता है नेत्रोत्सव

नेत्रोत्सव शब्द का अर्थ है आंखों का त्योहार, जो देवताओं के एकांतवास की अवधि के बाद उनकी पहली झलक को दर्शाता है. इस दौरान विग्रहों का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है. विग्रहों को नये कपड़े और आभूषण से सजाया जाता है, जो उनके नये यौवन और जोश का प्रतीक हैं. अनासार काल के बाद भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का पहला सार्वजनिक दर्शन है ‘नव यौवन दर्शन’.

नेत्रोत्सव व एकांतवास का आध्यात्मिक महत्व

‘नव यौवन’ यानी जो देवताओं के कायाकल्प और युवा स्वरूप को दर्शाता है. यह अनुष्ठान रथ यात्रा में गहन आध्यात्मिक महत्व रखता है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के शाश्वत चक्र का प्रतीक है. नेत्रोत्सव व एकांत वास ‘अनासार काल’ का आध्यात्मिक महत्व है. रथ यात्रा से पूर्व यह अनुष्ठान आयोजन की महत्वपूर्ण प्रस्तावना हैं. महाप्रभु जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को उनकी यात्रा के लिए तैयार करते हैं.

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