Jharkhand: एकीकृत बिहार के निवासी को झारखंड में मिलेगा आरक्षण! सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

एकीकृत बिहार के एससी, एसटी और ओबीसी कोटि के लोगों को झारखंड में आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं, के बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट में दायर स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) पर सुनवाई हुई. इस दाैरान प्रार्थी, राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखा गया. सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया.

By Prabhat Khabar News Desk | August 1, 2021 1:15 PM
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एकीकृत बिहार के एससी, एसटी और ओबीसी कोटि के लोगों को झारखंड में आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं, के बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट में दायर स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) पर सुनवाई हुई. इस दाैरान प्रार्थी, राज्य सरकार और केंद्र सरकार की अोर से पक्ष रखा गया. सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उदय यू ललित व जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई. प्रार्थी की अोर से झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया ने पक्ष रखा. उन्होंने खंडपीठ को बताया कि वह एकीकृत बिहार के समय से रह रहे हैं.

15 नवंबर 2000 को बिहार के बंटवारे के बाद झारखंड का गठन किया गया. उसके बाद भी वह रांची, झारखंड में ही रह रहे हैं. नाैकरी भी यहीं कर रहे हैं. एकीकृत बिहार में जो सुविधाएं मिल रही थीं, वही सुविधाएं उन्हें झारखंड में भी मिलेंगी. लॉर्जर बेंच का फैसला सही नहीं है. उसे निरस्त करना चाहिए. झारखंड सरकार के अपर महाधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने बताया कि राज्य सरकार, झारखंड हाइकोर्ट के बहुमत के फैसले का समर्थन कर रहा है. झारखंड राज्य के जो निवासी हैं, उन्हें ही आरक्षण का लाभ मिलेगा. खंडपीठ ने सभी का पक्ष सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

लार्जर बेंच के आदेश को चुनौती दी : प्रार्थी पंकज कुमार ने एसएलपी दायर कर झारखंड हाइकोर्ट की लार्जर बेंच के 24 फरवरी 2020 के आदेश को चुनौती दी है. हाइकोर्ट ने 2:1 के बहुमत से दिये गये आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता बिहार व झारखंड दोनों में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता और वह राज्य सिविल सेवा परीक्षा के लिए आरक्षण का दावा नहीं कर सकता.

प्रार्थी का जन्म 1974 में हजारीबाग जिले में हुआ था. 15 वर्ष की आयु में वर्ष 1989 में वह रांची चले गये थे. 1994 में रांची की मतदाता सूची में भी नाम था. 1999 में एससी कैटेगरी में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए. सर्विस बुक में बिहार लिख दिया गया. बिहार बंटवारे के बाद उनका कैडर झारखंड हो गया. जेपीएससी में प्रतियोगिता परीक्षा में एससी कैटेगरी में आवेदन किया, लेकिन उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं देकर सामान्य कैटेगरी में रख दिया गया.

कैसे उठा मामला

सिपाही पद से हटाये गये प्रार्थियों व राज्य सरकार की ओर से दायर अलग-अलग अपील याचिकाओं पर जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ में सुनवाई में दो अन्य खंडपीठों के अलग-अलग फैसले की बात सामने आयी थी. वर्ष 2006 में कविता कुमारी कांधव व अन्य बनाम झारखंड सरकार के केस में जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. वहीं वर्ष 2011 में तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने मधु बनाम झारखंड सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ मिलेगा. मामले को लॉर्जर बेंच में भेजा गया.

Posted by: Pritish Sahay

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