संवाददाता, देवघर : श्रावणी मेला अब अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ चला है. शुक्रवार को बाबा नगरी में श्रद्धालुओं की भीड़ में थोड़ी कमी जरूर दिखी, लेकिन आस्था और समर्पण का जज्बा पहले जैसा ही अडिग रहा. बाबा बैद्यनाथ के दरबार में कांवरियों का तांता सुबह से ही लगा रहा. जलार्पण के बाद भक्तों ने मंदिर प्रांगण में नृत्य-गान के साथ श्रद्धा का इज़हार किया और बाबा के चरणों में दंडवत प्रणाम कर पूर्ण समर्पण का भाव प्रकट किया. शुक्रवार को पट बंद होने तक 165426 कांवरियों ने बाबा मंदिर में अरघा से जलार्पण कर मंगलकामना की. इसमें मुख्य अरघा, बाह्य अरघा व शीघ्रदर्शनम शामिल हैं श्रावणी मेले के 22वें दिन श्रद्धालुओं झूमते-नाचते बाबा मंदिर पहुंचते रहे. बाबा मंदिर में जलार्पण के बाद भक्त पहले माता पार्वती मंदिर तथा अन्य देवी-देवताओं के मंदिरों में पूजा-अर्चना करते दिखे. इसके बाद मंदिर प्रांगण में आरती के साथ पूजा का समापन करते हुए ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर नाचे. इसके बाद भक्त प्रांगण में दंडवत प्रणाम करते हैं. यह दंडवत प्रणाम बाबा बैद्यनाथ के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक माना जाता है. इस संदर्भ में बाबा नगरी के विद्वान पंडित संजय मिश्र बताते हैं कि पूजा के समापन के बाद दंडवत प्रणाम करना भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का सबसे बड़ा भाव है. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और इसे करने वाले श्रद्धालु अपने आप को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित कर देते हैं. विशेष रूप से दंडी बम जो सुल्तानगंज से दंडवत यात्रा करते हुए देवघर पहुंचते हैं, वे इस समर्पण भावना का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. उनका यह संकल्प ही दर्शाता है कि श्रद्धा और आस्था में कितनी ताकत होती है. पंडित श्री मिश्र ने कहा कि बाबा के प्रति ऐसा समर्पण भाव रखने वाले भक्तों की मनोकामनाएं जरूर पूर्ण होती हैं. यही कारण है कि प्रतिवर्ष श्रावण में लाखों की संख्या में कांवरिये बाबा नगरी पहुंचते हैं. इस वर्ष भी मेले की शुरुआत से ही भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है. शुक्रवार को अहले सुबह सुबह बाबा की दैनिक पूजा के बाद भक्तों के लिए पट खोला गया. इस दौरान कतार सरकार भवन चौक से शुरू हाे रही थी. वहीं सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक भक्तों को जलसार पार्क होते हुए मंदिर भेजा गया. उसके बाद मानसरोवर हनुमान मंदिर से ही मंदिर तक आने की व्यवस्था जारी रही. इस दौरान मुख्य अरघा से 108765, बाह्य अरघा से 48583 तथा शीघ्रदर्शनम कूपन से 8078 कांवरियों ने दर्शन-पूजा की. बाह्य अरघा दोपहर के बाद लगभग खाली रहा.
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