देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर में ऐसे हुई शिवलिंग की स्थापना, लंका पति रावण से जुड़ा है रोचक इतिहास

Baba Baidyanath Dham : राजधानी रांची से महज 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाबा की नगरी 'देवघर' में दुनिया के हर कोने से श्रद्धालु बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंचते है. भगवान शिव को समर्पित बाबा बैद्यनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. बाबा बैद्यनाथ में स्थापित शिवलिंग का लंका पति रावण से विशेष नाता जुड़ा है. कहा जाता है रावण की वजह से ही बाबा बैद्यनाथ में शिवलिंग की स्थापना हुई है.

By Dipali Kumari | April 20, 2025 5:23 PM
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Baba Baidyanath Dham : झारखंड राज्य में आस्था और श्रद्धा का एक ऐसा केंद्र, जहां सालों भर न केवल भारत बल्कि दुनियाभर के लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. राजधानी रांची से महज 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाबा की नगरी ‘देवघर’ में दुनिया के हर कोने से श्रद्धालु बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. भगवान शिव को समर्पित बाबा बैद्यनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. बाबा बैद्यनाथ में स्थापित शिवलिंग का लंका पति रावण से विशेष नाता जुड़ा है. कहा जाता है रावण की वजह से ही बाबा बैद्यनाथ में शिवलिंग की स्थापना हुई है.

बाबा बैद्यनाथ मंदिर में शिवलिंग स्थापना का इतिहास

देवघर में स्थित बाबाधाम मंदिर 1300 वर्ष पुराना है. बाबा बैद्यनाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना का रोचक इतिहास लंका पति रावण से जुड़ा है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक-एक कर अपना सिर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था. रावण अपना 9वां सिर शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद 10 वां सिर काटने वाला था, तभी भगवान शिव प्रकट हुए. उन्होंने रावण को वरदान मांगने को कहा. रावण ने भगवान शिव से अपने साथ लंका चलने का वर मांगा और वहीं स्थापित होने की प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान शिव उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गए और उन्होंने शिवलिंग का रूप धारण कर लिया. लेकिन भगवान शिव ने रावण के समक्ष एक शर्त रखी.

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महादेव ने रावण के समक्ष रखी शर्त

देवों के देव महादेव ने रावण के समक्ष शर्त रखी कि, अगर रावण उन्हें बीच रास्ते में भूमि पर रख देगा तो वह उसके साथ लंका नहीं जायेंगे. महादेव की शर्त को स्वीकार करते हुए रावण ने शिवलिंग को अपने कंधे पर उठाया और लंका की ओर आगे बढ़ने लगा. कुछ दूर आगे बढ़ते ही देवघर के पास रावण को लघुशंका की अनुभूति हुई. उसने वहां से गुजर रहे एक अहीर को शिवलिंग थमाया और शिवलिंग को भूमि पर न रखने का आदेश दिया.

महादेव ने दिखायी अपनी लीला

रावण के वहां से जाते ही भगवान शिव ने अपनी लीला दिखायी और शिवलिंग का वजन धीरे-धीरे बढ़ने लगा. जब अहीर से शिवलिंग का वजन नहीं उठाया गया तो विवश होकर उसने शिवलिंग जमीन पर रख दिया और रावण के क्रोध के डर से तुरंत वहां से भाग निकला. जब रावण वापस लौटा तो शिवलिंग जमीन पर देख हैरान रह गया. रावण ने पूरी ताकत से शिवलिंग को दोबारा उठाने का प्रयास किया लेकिन रावण शिवलिंग को हिला भी नहीं पाया. इसके बाद क्रोधित होकर रावण अपना अंगूठा शिवलिंग पर गढ़ाकर चला गया. रावण के लौटते ही ब्रह्मा, विष्णु समेत अन्य देवी-देवता वहां पहुंचे और शिवलिंग की पूजा की. और इस तरह बाबा बैद्यनाथ में शिवलिंग की स्थापना हुई.

बाबा बैद्यनाथ मंदिर में भगवान विष्णु ने की शिवलिंग की स्थापना

बाबाधाम में शिवलिंग की स्थापना पर ये भी कहा जाता है कि रावण को रास्ते में मिलने वाला अहीर और कोई नहीं बल्कि स्वयं विष्णु भगवान थे. इसी कारण ये भी कहा जाता है कि बाबाधाम में स्वयं भगवान विष्णु ने अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की है. बाबा बैद्यनाथ में शिवलिंग की स्थापना लंका पति रावण की वजह से ही हुई. इस कारण इसे रावणेश्वर भी कहा जाता है.

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