संवाददाता, देवघर : 13 दिनों तक चलने वाले मधुश्रावणी महोत्सव को रविवार को शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समापन हो गया. यह व्रत खासकर मिथिला क्षेत्र में मनाया जाता है. देवघर में भी बड़ी संख्या में नवविवाहित वर-वधू रविवार सुबह से ही पूजा में जुटे रहे तथा पूजा के बाद इसका समापन किया गया. इस व्रत की विशेषता है कि नवविवाहित यह व्रत मायके में ही रहकर मनाती हैं और व्रत या पूजा का खर्च उसके ससुराल से आता है. पूजा के दौरान शिव-पार्वती से जुड़ी कथा सुनी जाती है. महिला पुरोहित या अनुभवी महिलाएं द्वारा प्रतिदिन कथा सुनायी जाती हैं. एक दिन पूर्व डाली में सजाये गये फूल, ससुराल से आयी पूजन सामग्री, दूध-लावा व अन्य सामग्री से विषहर की भी पूजा की जाती है. माना जाता है कि इस प्रकार पूजा-अर्चना से पति के दीर्घायु का वरदान मिलता है. कथावाचिका रानी देवी ने बताया कि यह पूजा एक तपस्या के समान है. नाग-नागिन, हाथी, गौरी-शिव आदि की प्रतिमा बनाकर नित्य कई तरह के फूलों, मिठाइयों व फलों से पूजन किया जाता है. पूजा के दौरान दौरान मैना पंचमी, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, पतिव्रता, महादेव कथा, गौरी तपस्या, शिव विवाह, गंगा कथा, बिहुला कथा तथा बाल वसंत की कथा सहित 14 खंडों में कथा का श्रवण किया जाता है. प्रतिदिन संध्याकाल में महिलाएं आरती, सुहाग गीत और कोहबर गीत गाती हैं. परंपरा के अनुसार रविवार को पूजा के अंतिम दिन विवाहिता को टेमी दागने की परंपरा का निर्वहन किया गया.
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