रांची : झारखंड के इतिहास में आजादी को लेकर कई जनजातीय विद्रोह हुए हैं जिसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है. हर विद्रोह अलग अलग नायक उभर कर आए लेकिन उनका नाम इतिहास के पन्नों में ही गुम हो गया. आज हम आपको ऐसे ही नायक की कहानी बतायेंगे जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंकते हुए लोगों में जोश भरा कि अगर अपनी जमीन में जीना है तो क्रांति और विद्रोह का रास्ता चुनना पड़ेगा. एक शख्स जिसे लेकर दो समुदाय को लोग आपस में भिड़ते रहते हैं. यह स्वतंत्रता सेनानी कोई और नहीं बल्कि चुआड़ विद्रोह का नेतृत्वकर्ता रघुनाथ महतो थे.
रघुनाथ महतो ने कब शुरू किया विद्रोह
सन 1765 की बात है जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने जंगलमहल जिले में आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन पर अपना अधिकार जमाने के लिए राजस्व वसूलना शुरू किया. आदिवासियों की जमीन छीनकर बंगाली जमींदारों के हाथों सौंपी जा रही थी और दूसरे क्षेत्रों से लोगों को बुलाकर बसाना शुरू किया जा रहा था और नए-नए टैक्स लगाए जा रहे थे. तब रघुनाथ महतो सामने आते हैं और अंग्रेजी हुकूमत के आगे सीना तानकर खड़ा हो जाता है. उन्होंने उस वक्त लोगों में जोश भरते हुए कहा कि अपनी जमीन में जीना है तो क्रांति और विद्रोह के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है… अंग्रेजों की गुलामी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
रघुनाथ महतो ने दिया था- ‘अपना गाँव, अपना राज, का नारा
रघुनाथ महतो ने आगे कहा कि हम अपनी जमीन का टैक्स नहीं देंगे. हमने खेत बनाया, गांव बसाया, राज अपना है… झारखंड के सरायकेला के नीमडीह गांव से कुछ ही दूरी पर एक विशाल मैदान में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन 1769 को अंग्रेजों के खिलाफ एक सभा बुलाकर विद्रोह का शंखनाद किया और नारा दिया ‘अपना गाँव, अपना राज, दूर भगाओ विदेशी राज‘ आज उसी जगह को रघुनाथपुर के नाम से जाना जाता है. उसके द्वारा शुरू किये गये इस आंदोलन को चुआड़ विद्रोह का नाम दिया गया.
जानिए आखिर इस विद्रोह का नाम चुआड़ विद्रोह क्यों पड़ा?
चुआड़ शब्द का मतलब होता है डाकू… जिसका इस्तेमाल अंग्रेज उस समय भूमिजों के लिए करते थे. बाद में इसका इस्तेमाल जमींदारी मिलिशिया और जंगल महलों में छापा मारने और लूटपाट करने वाले लोगों के लिए किया जाने लगा. ‘भारत का मुक्ति संग्राम’ नाम की किताब में अयोध्या सिंह लिखते हैं, रघुनाथ महतो बहुत जल्द ही जंगलमहल जिले में अंग्रेजों के खिलाफ एक सशक्त नेता के रूप में उभरे. किसानों का भारी समर्थन प्राप्त हुआ. जंगलमहल जिले में कुड़मी, संथाल और भूमिज आदिवासियों का वास है. चुआड़ विद्रोह के शुरुआती तीन साल तक कुड़मी आदिवासी मोर्चा लिये हुए थे और उसके बाद विद्रोह में संथाल और भूमिज आदिवासी भी शामिल होने लगे. उस दौरान रघुनाथ महतो का नेतृत्व नीमडीह, पातकोम से लेकर बराहभूम, धालभूम, मेदनीपुर की ओर बढ़ने लगा. फिर धालभूम से किचूंग परगना में (जो अब सरायकेला खरसावाँ जिला के प्रखंड सरायकेला, राजनगर, गम्हरिया क्षेत्र को कहा जाता है) विद्रोह की आग तेजी से लपटें लेने लगी. रांची से 55 किलोमीटर दूर सिल्ली प्रखंड के लोटा कीता गांव के पौराणिक शिव मंदिर के समीप गड़े पत्थर अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ाई लड़ने वाले चुआड़ विद्रोह के महानायक शहीद रघुनाथ महतो की वीरगाथा की कहानी बयां करती है.
कौन थे रघुनाथ महतो ?
रघुनाथ महतो का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा के दिन 1738 ई को वर्तमान जिला सरायकेला खरसावां के नीमडीह थाना अंतर्गत घुटियाडीह गांव में हुआ था. इनके पिता काशीनाथ महतो 12 मौजा के जमींदार परगनैत थे. उनकी लड़ाई शोषण और अन्याय के खिलाफ थी. बचपन से ही रघुनाथ महतो शोषण एवं अन्याय के खिलाफ थे. बताया जाता है कि एक बार एक अंग्रेज तहसीलदार रघुनाथ महतो के पिता काशीनाथ महतो से उलझ पड़े और उन्हें काफी अपमानित किया था. रघुनाथ महतो को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और तहसीलदार को मारते पीटते गांव से बाहर खदेड़ दिया. अंग्रेजों को जब रघुनाथ महतो के संबंध में जानकारी मिली तो उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस भेजी गई लेकिन वह पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सके. रघुनाथ महतो ने उन अंग्रेज पुलिस वालों को मारपीट कर खदेड़ दिया और खाली हाथ लौटने को मजबूर कर दिया. रघुनाथ महतो अंग्रेजों के सिर में लगातार दर्द पैदा कर रहे थे. अंग्रेजों ने भी उन्हें पकड़ने के लिए कई चालें चलीं. उनको पकड़वाने में मदद करने वालों के लिए अंग्रेजों ने पुरस्कार घोषित किए. लेकिन रघुनाथ महतो भी अंग्रेजों की चाल को भांप कर सतर्क हो गए और अपनी योजना के अनुसार अंग्रेजों को सबक सिखाने लगे. 1769 को अपने जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध नीमडीह में विशाल सभा बुलाई और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका. देखते ही देखते करीब एक हजार नौजवान उनके आंदोलन में शामिल हो गए और अंग्रेजों से लोहा लेने लगे.
क्यों भिड़ते हैं रघुनाथ महतो को लेकर दो समुदाय के लोग
हालांकि कई इतिहासकारों का दावा है कि उसका असली नाम रघुनाथ सिंह है. जब कई उन्हें रघुनाथ महतो कहते हैं. इस विवाद के कारण पिछले कुछ वर्षों से चुआर विद्रोह के नेता की पहचान को लेकर भूमिज समुदाय और कुड़मी-महतो (राज्य में लगभग पांच मिलियन की आबादी वाला एक कृषक समुदाय) के बीच तनाव बढ़ रहा है.