सरकार के सहयोग से बढ़ सकता है कारोबार
बताया जा रहा है कि निरसा प्रखंड के इन क्षेत्रों में आधुनिक केज कल्चर का प्रचलन बढ़ा है. यहां लोग मत्स्य पालन की ओर आकर्षित हो रहे हैं. लोगों का कहना है कि अगर सरकार का सहयोग मिले तो वृहद पैमाने पर इस कारोबार से कई लोग जुड़ सकते हैं. इससे स्वरोजगार का भी सृजन होगा, जिससे राज्य के युवा आत्मनिर्भर बनेंगे. मत्स्य पालन करने वाले लोग रेहू, कतला सहित अन्य प्रजाति की मछलियों को निरसा, धनबाद और आसनसोल की मंडियों में भेजकर अच्छी राशि कमा लेते है.
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कैसे होता है मत्स्य पालन का कारोबार
मत्स्य पालन के लिए डोमभुई मत्यजीवी सहयोग समिति लिमिटेड द्वारा बराकर नदी के किनारे रघुनाथ घाट पर नदी घाट के पास मछली केज चलाया जा रहा है. इसकी अध्यक्ष रूपलाल मरांडी और सचिव शिवनाथ सोरेन का कहना है कि राज्य सरकार के द्वारा हम लोगों को 90% का अनुदान मिलता है. हमें अपनी तरफ से 10% लगाना पड़ता है.
पिछले साल 2024 में हम लोगों को तीन केज दिया गया था. एक केज की लागत करीब तीन लाख रुपया पड़ता है. कुल मिलाकर 9 लाख रुपया इसकी लागत आयी है. अलग से जाल, नेट, नाव, लाइफ जैकेट दिया जाता है. हमारे समिति में कल 30 लोग प्रतिदिन सीधे तौर पर काम करते हैं, जिसमें आठ महिलायें भी हैं. छह माह के अंदर मछली का चारा लगभग एक किलो हो जाता है. इसके बाद बाजार में इसे बेचकर ग्रुप के सभी सदस्यों में उस राशि को बांट दिया जाता है.
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