Dhanbad News : एक ही आधार पर निचली अदालत किसी मामले को री-स्टोर नहीं कर सकती

प्रभात खबर के लीगल काउंसेलिंग में आये लोन व जमीन संबंधित अधिकांश मामले, बोलीं वरिष्ठ अधिवक्ता जया कुमार

By NARENDRA KUMAR SINGH | April 28, 2025 4:53 AM
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भूमि, संपत्ति और पारिवारिक विवादों को कानूनी रास्ता अपनाने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. कई बार ऐसे मामले केवल बातचीत और समझौते से हल हो सकते हैं. अदालतों के चक्कर में पड़ने से समय और धन दोनों की हानि होती है. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता जया कुमार ने दिया. उन्होंने कहा कि पहले आपसी संवाद और मध्यस्थता के माध्यम से समस्याओं का समाधान तलाशने का प्रयास करना चाहिए. इससे न केवल मानसिक शांति बनी रहती है, बल्कि आर्थिक नुकसान से भी बचाव होता है.

धनबाद से आरएम शर्मा का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

निचली अदालत ने यदि किसी प्रॉपर्टी विवाद में आपके पक्ष में फैसला दे दिया है, तो सामान्यतः विरोधी पक्ष को उसी मुद्दे पर बार-बार मुकदमा बहाल (री-स्टोर) कराने का अधिकार नहीं होता. कानून में ””””रेस जुडीकेटा”””” का सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि जिस मुद्दे पर एक बार अदालत ने फैसला दे दिया, उसे दोबारा उसी आधार पर उसी अदालत में नहीं उठाया जा सकता. यदि विरोधी पक्ष बार-बार ऐसा कर रहा है, तो यह न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का मामला बनता है. आप इस विषय को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं.

धनबाद से शांति देवी का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

बैंक के उच्चाधिकारियों को लिखित में निवेदन करें कि आप किश्तों में बकाया राशि चुकाना चाहते हैं. बैंक अक्सर लिखित अनुरोध पर पुनर्विचार करता है. यदि बैंक समाधान नहीं देता, तो आप आरबीआइ के बैंकिंग लोकपाल के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकते हैं. अपने सभी दस्तावेज, जैसे लोन पत्राचार, लोक अदालत की कार्यवाही और बैंक से हुई बातचीत का रिकॉर्ड सुरक्षित रखें. सही संवाद और कानूनी विकल्पों के सहारे समाधान संभव है.

धनबाद से पंकज कुमार का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

चेक बाउंस के मामले में अदालत में नियमित रूप से उपस्थित रहें. यदि आरोपी समझौते या भुगतान का प्रस्ताव देता है, तो वह अदालत में रिकॉर्ड किया जायेगा. दोषी पाये जाने पर अदालत उसे राशि का दोगुना लौटाने का आदेश दे सकती है. साथ ही सिविल अदालत में ””””रिकवरी सूट”””” दाखिल कर जल्दी निर्णय लिया जा सकता है. थाना में दर्ज 420 के केस से आमतौर पर खास लाभ नहीं होता, क्योंकि ऐसे मामलों में अदालत ज्यादा महत्व नहीं देती.

राजगंज से राजेंद्र शर्मा का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

आपको अदालत में एक औपचारिक ””””विड्रॉल एप्लिकेशन”””” दाखिल करना होगा. इसमें स्वेच्छा से केस वापस लेने का उल्लेख करें. सामान्यतः एक-दो सुनवाई में मामला समाप्त हो जायेगा.

बोकारो से संजय वर्मा का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

दरभंगा कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करें और रिकॉर्ड तलाशने का आग्रह करें. यदि आदेश नहीं मिलता है और इससे वास्तविक नुकसान हो रहा है, तो आप हर्जाने के लिए सिविल सूट भी दाखिल कर सकते हैं.

पीरटांड़ से बालदेव महतो का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

तत्काल ”इनजंक्शन सूट” दायर करें. इसके साथ ही क्रिमिनल केस भी दर्ज करायें. एसडीओ या डीसी को आवेदन देकर अवैध कब्जे और निर्माण रोकवाने का अनुरोध करें और राजस्व विभाग से जांच की मांग करें.

धनबाद से विनय कुमार का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

अगर आपको को झूठे दुष्कर्म के मामले में फंसाने का प्रयास किया गया हो और आप अदालत से बाइज्जत बरी हो गये हो, तो वह अपने मान-सम्मान की रक्षा के लिए विरोधी पक्ष के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं. आप कोर्ट में मानहानि का आपराधिक मुकदमा कर सकते हैं. इसके साथ ही दीवानी अदालत में क्षतिपूर्ति (मुआवजा) के लिए भी मुकदमा कर सकते हैं.

गिरिडीह से संजीत मंडल का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

सिविल कोर्ट में ”पोसेशन सूट” दायर करें और अंतरिम स्थगन आदेश (इंटरिम इनजंक्शन) की मांग करें. साथ ही एसडीओ या डीसी के समक्ष शिकायत करें.

बाघमारा से

कुमार का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

सबसे पहले, यह सुनिश्चित करें कि बंटवारे का कोई लिखित दस्तावेज या रजिस्टर्ड समझौता है. उसमें रास्ते का उल्लेख नहीं है, तो आपको रास्ता नहीं देना होगा. इसे कोर्ट में प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे आपके हिस्से का अधिकार साबित होता है. दूसरी बात इस तरह के मामलों में पुलिस रास्ता देने का दबाव नहीं बना सकती हैं. क्योंकि ऐसे मामले उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं.

बरवाअड्डा से राजनाथ शर्मा का सवाल :

अधिवक्ता की सलाह :

यदि आपने किसी व्यक्ति को ट्रांसपोर्ट सर्विस दी है, लेकिन वह किराया नहीं चुका रहा है और आपके पास सर्विस के साक्ष्य मौजूद हैं, तो आपको इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है. सबसे पहला कदम यह है कि आप उस व्यक्ति को एक कानूनी नोटिस भेजें. इसमें आप उसे भाड़ा देने की अंतिम तारीख बताएं और उसे कानूनी तौर पर सूचित करें कि यदि वह भाड़ा नहीं चुकाता है, तो आप कानूनी कदम उठाएंगे. अगर नोटिस भेजने के बाद भी वह व्यक्ति भाड़ा चुकता नहीं करता है, तो आप सिविल कोर्ट में धन वसूली का मुकदमा दायर कर सकते हैं.

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