पति की मौत के बाद सौतेली बेटियों को प्रॉपर्टी में हिस्सा देने के लिए पत्नी एग्जीक्यूटर नहीं बने तो क्या करें?

Prabhat Khabar Legal Counseling: प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप कुमार सिन्हा ने लोगों के सवालों के जवाब दिए. अधिवक्ता बोकारो के भुनेश्वर कुमार के सवाल का जवाब दे रहे थे. उन्होंने पूछा था कि पति की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी अपनी सौतेली बेटियों को प्रॉपर्टी में हिस्सा देने के लिए एग्जीक्यूटर नहीं बनना चाहती है. इस मामले में क्या करना चाहिए?

By Guru Swarup Mishra | June 15, 2025 9:46 PM
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Prabhat Khabar Legal Counseling: धनबाद-वसीयत को लागू करवाने की जिम्मेदारी एग्जीक्यूटर की होती है, जिसे मृतक ने नियुक्त किया होता है, लेकिन अगर एग्जीक्यूटर इसके लिए तैयार नहीं है, तो उसे इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. ऐसे में वसीयत के लाभुकों को सिविल कोर्ट जाना चाहिए और वसीयत अमल में लाने के लिए रिट दायर करना चाहिए. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप कुमार सिन्हा ने दिया. अधिवक्ता बोकारो के भुनेश्वर कुमार के सवालों का जवाब दे रहे थे. उन्होंने पूछा था कि एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी अपनी सौतेली बेटियों को प्रॉपर्टी में हिस्सा देने के लिए एग्जीक्यूटर नहीं बनना चाहती है. इस मामले में क्या करना चाहिए ?

टुंडी के जयकुमार दत्ता ने पूछा ये सवाल


टुंडी के जयकुमार दत्ता का सवाल : तोपचांची में मेरे दादाजी ने एक प्रॉपर्टी खरीदी थी. उन्होंने अपने निधन से पहले अपने पुत्रों के बीच इसका बराबर – बराबर बंटवारा कर दिया था. उन्होंने यह बंटवारा स्टांप पेपर के माध्यम से किया था. इसके बाद मेरे पिताजी ने अपने हिस्से की जमीन पर घर बनाया था. लेकिन अब चचेरे भाई लोगों ने मेरा घर तोड़ दिया है. मैंने इसकी शिकायत की थी. लेकिन कोई सुन नहीं रहा है. मुझे अब क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : आपके इस मामले में आपको फौजदारी (क्रिमिनल) और दीवानी (सिविल) दोनों कानूनी रास्ते अपनाने होंगे. आपके दादाजी द्वारा स्टांप पेपर पर किया गया, बंटवारा एक वैध कानूनी दस्तावेज है. इसकी प्रति के साथ ही घर को तोड़े जाने की शिकायत तोपचांची थाना में दर्ज करवाएं. साथ ही इसकी प्रति धनबाद एसएसपी को एक्नॉलेजमेंट लगाकर रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजें. इसका उल्लेख थाना में की गयी शिकायत में अवश्य करें. ऐसे में थाना आपकी शिकायत को लेने से इनकार नहीं कर सकता है. वहीं इसके साथ ही आप अपने वकील के माध्यम से सिविल कोर्ट में “स्वामित्व की पुष्टि और कब्जे की बहाली के लिए सूट दायर करें और जिससे स्थायी इंजंक्शन मिल सके.
बोकारो थर्मल से सुमित महतो का सवाल : बोकारो थर्मल प्रोजेक्ट के लिए मेरी करीब 18 एकड़ पुश्तैनी जमीन का अधिग्रहण 1970 के दशक में किया गया था. लेकिन आज तक अधिग्रहण से संबंधित कोई भी नोटिस हमारे परिवार को नहीं दिया गया है. इसके लिए मैंने बोकारो उपायुक्त और भूमि अधिग्रहण विभाग से लगातार पत्राचार किया, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिल रहा है. आरटीआइ भी लगाया था, लेकिन अबतक कोई जवाब नहीं मिला है. मुझे अपनी जमीन वापस हासिल करने के लिए क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : जब प्रशासन जवाब नहीं दे रहा है, तो आपके पास अब हाइकोर्ट जाने के अलावा कोई प्रभावी रास्ता नहीं बचता है. अब आपको झारखंड हाइकोर्ट में एक रिट याचिका दायर करनी चाहिए. इसमें आपको अपने जिले के उपायुक्त, जिला भू-अधिग्रहण अधिकारी और बोकारो थर्मल को पार्टी बनना चाहिए.
बोकारो से प्रवीण सिंह का सवाल : मेरे परिवार ने पलमा राजा से 70 साल पहले हुकुमनामा के जरिये एक प्लॉट खरीदा था. इस प्लॉट का 2022 तक हम लोगों रसीद कटवाया है. अब इस जमीन का एक दावेदार सामने आ गया है. इस जमीन पर हमें खेती नहीं करने दे रहा है. हमने सिविल शूट भी फाइल किया है, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है. इस मामले में अब हमें क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता की सलाह : 2022 तक आप लोग लगातार रसीद कटवाते आ रहे हैं, यानी भूमि पर प्रशासनिक स्वामित्व आपके पास है, यह इस बात प्रमाण है. यह मामला सिविल सूट नहीं है. आपको इस मामले में क्रिमिनल केस करना होगा. आप जमीन से संबंधित सभी दस्तावेज के साथ कोर्ट में रंगदारी का सीपी केस करें. वहां आप जमीन पर दखल दिलाने की प्रार्थना करें. कोर्ट इस मामले में पुलिस को आपको उस जमीन दखल दिलाने का निर्देश दे सकती है.

धनबाद से वीरेंद्र साहू का ये था सवाल


धनबाद से वीरेंद्र साहू का सवाल : हमारे परिवार का पड़ोसी से झगड़ा हुआ था. उसने हमारे ऊपर एससी एसटी एक्ट के तहत केस किया था. इसमें हमारे परिवार के कई सदस्यों को लोअर कोर्ट में दो वर्ष की सजा हो गयी है. इस मामले में सभी गवाह पड़ोसी के परिवार से ही हैं. क्या हमें हाइकोर्ट में इस केस में राहत मिल सकती है और यह केस कितना लंबा चल सकता है?
अधिवक्ता की सलाह : आपके मामले में सभी गवाह एक पक्ष से हैं. ऐसे में हाइकोर्ट से राहत मिल सकती है. लेकिन कोर्ट में पैरवी के लिए एक जानकार वकील रखें. इस मामले में आपके पक्ष में फैसला आने के बाद भी आपके पड़ोसी के पास यह अधिकार है कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे. हालांकि इस मामले में अगर आपको हाइकोर्ट राहत मिल जाता है, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि आपके परिवार को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत मिल जाये .
झरिया से रोहन कुमार का सवाल : झारिया में सरकारी रानी तालाब पर दबंग लोग चहारदीवारी बना कर कब्जा कर रहे हैं. इसकी शिकायत कहां करुं.
अधिवक्ता की सलाह : आपको इस मामले में नगर विकास मंत्री, नगर विकास सचिव और धनबाद के उपायुक्त को रजिस्टर्ड डाक से शिकायत करें. पोस्ट के साथ एक्नॉलेजमेंट अवश्य संलग्न करें. इससे इस मामले में जरूर कार्रवाई होगी.
धनबाद से नंदलाल का सवाल : मैं नाई जाति से हूं, लेकिन मेरे जाति प्रमाणपत्र में जाति के स्थान पर हजाम लिखा हुआ है. कर्मचारी इसे मानने को तैयार नहीं, वह कह रहे हैं हजाम कोई जाति नहीं है. इससे मुझे पिछड़े वर्ग का लाभ नहीं मिल रहा है. इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : आप पहले शपथपत्र के जरिये यह बताएं कि नाई और हजाम एक ही जाति है. इस शपथ पत्र को पहले कर्मचारी को दें. अगर इसके बाद भी नहीं मानता है, तो शपथ पत्र के साथ कर्मचारी की भी शिकायत करें. यहां से आपको राहत मिलने की पूरी संभावना है.

राजधनवार से लक्ष्मण कुमार का ये था सवाल


राजधनवार से लक्ष्मण कुमार का सवाल : हम चार भाई हैं, पिताजी ने हम चारों भाइयों के बीच पुश्तैनी जमीन -बराबर बराबर बांट दिया था. लेकिन अब मेरे तीन भाई आपस में मिल गये हैं. तीनों मिलकर मापी में मुझे कम जमीन दे रहें है. अब मुझे क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता की सलाह : यदि आपके भाई जमीन पर कब्जा कर चुके हैं और आपके पिताजी द्वारा किये गये बंटवारे को स्वीकार नहीं कर रहें तो आप अपने जिला के सिविल कोर्ट में ‘सूट फॉर पार्टीशन’ (बंटवारे का वाद) दायर करें. इसमें आप यह भी मांग सकते हैं कि कोर्ट आपके हिस्से की जमीन को सीमांकन कराकर अलग कर दे.
गिरिडीह के दशरथ महतो का सवाल : मेरे दादाजी ने अपनी खरीदी हुई जमीन पर तालाब खुदवाया था. दादाजी के निधन के बाद मेरी दादी ने बिना हमलोगों को सूचना दिये तालाब को बेच दिया है. मैं यह जानना चाहता हूं, क्या मेरी दादी को हम लोगों की सहमति के बिना वह तालाब बेचने का अधिकार है, क्या हमारा इस तालाब में हिस्सा नहीं है, अगर है तो हमें क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : अगर वह जमीन आपके दादाजी की स्वयं की खरीदी हुई संपत्ति थी और उन्होंने उसके बारे में कोई वसीयत नहीं बनायी थी, तो ऐसी स्थिति में, दादाजी की मृत्यु के बाद उस संपत्ति में उनके सभी वैधानिक उत्तराधिकारी का बराबर का अधिकार बनता है. इसलिए, दादी पूरी संपत्ति की अकेली मालकिन नहीं हैं. उन्हें संपत्ति बेचने के लिए सभी उत्तराधिकारियों की सहमति और सह-हस्ताक्षर की जरूरत थी. यदि यह नहीं हुआ है, तो वह बिक्री कानूनी रूप से चुनौती देने योग्य है.
तेनुघाट से एसआर यादव का सवाल : मैं एक संबद्ध कॉलेज के साथ ही एक एनजीओ में काम करता था. जब मैं दोनों जगह सेवानिवृत्त हुआ था, तो मुझे एनजीओ से ग्रेच्युटी का भुगतान मिला था. लेकिन अब कॉलेज मुझे ग्रेच्युटी नहीं दे रहा है. कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि मैंने एक जगह से ग्रेच्युटी का लाभ ले लिया है. श्रमायुक्त ने मेरे पक्ष में फैसला दिया था. लेकिन फिर भी कॉलेज ग्रेच्युटी नहीं दे रहा है, मुझे कॉलेज से ग्रेच्युटी लेने के लिए क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : ग्रेच्युटी पर आपका कानूनी अधिकार है. अगर इस मामले में आपका कॉलेज लगातार आदेश का उल्लंघन कर रहा है, तो आप अपने वकील के माध्यम से हाइकोर्ट में रिट पिटीशन दायर कर सकते हैं.

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