‘नो वर्क, नो पे’ का नोटिस जारी कर काट लिया वेतन, प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में छलका पीड़ित का दर्द

Prabhat Khabar Online Legal Counseling: धनबाद में रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम हर्षवर्धन ने लोगों के सवालों के जवाब दिए. उन्होंने कहा कि नो वर्क, नो पे सरकारी सेवा में एक स्थापित नियम है. इसके उल्लंघन पर वेतन कटता है. लीगल काउंसेलिंग के दौरान धनबाद, बोकारो, गिरिडीह और, जामताड़ा से कई लोगों ने कानूनी सलाह ली.

By Guru Swarup Mishra | July 20, 2025 8:37 PM
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Prabhat Khabar Online Legal Counseling: धनबाद-भूमि, संपत्ति, दुर्घटनाओं के लिए बीमा कंपनियों से क्लेम और पारिवारिक विवादों में कानूनी रास्ता अपनाने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. कई बार ऐसे मामले केवल बातचीत और समझौते से हल हो सकते हैं. अदालतों के चक्कर में पड़ने से समय और धन दोनों की हानि होती है. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम हर्ष वर्धन ने दिये. लीगल काउंसेलिंग के दौरान धनबाद, बोकारो, गिरिडीह और, जामताड़ा से कई लोगों ने कानूनी सलाह ली.

नो वर्क, नो पे के नोटिस पर क्या करें?


गिरिडीह से गोपाल सिंह के सवाल : मैं कुछ समय तक ड्यूटी पर उपस्थित नहीं हो सका. उस अवधि को लेकर विभाग की ओर से सार्वजनिक रूप से “नो वर्क, नो पे” का नोटिस जारी किया गया और वेतन काट लिया गया. वेतन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना होगा?
अधिवक्ता की सलाह : ”नो वर्क, नो पे” सिद्धांत सरकारी सेवा में एक स्थापित नियम है. इसका उल्लंघन करने से वेतन कटता है. बावजूद इसके कुछ परिस्थितियों में आप अपने कटे हुए वेतन की पुनः बहाली की मांग कर सकते हैं. बशर्ते आपके पास उचित कारण, जैसे चिकित्सीय, पारिवारिक आपात स्थिति हो.
गिरिडीह से सीताराम रजक का सवाल : मेरे ससुर झारखंड बिजली बोर्ड में कार्यरत थे. 2008 में ड्यूटी के दौरान एक हादसे में करंट लगने से उनकी मृत्यु हो गयी थी. लेकिन अभी तक मेरी सास को उनका पूरा पावना नहीं मिला है. उन्हें क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता की सलाह : आप आरटीआइ के माध्यम से बोर्ड से आप जवाब मांगे कि आपके ससुर का अब तक कौन-कौन से भुगतान हुए हैं. क्या किसी प्रकार की फाइल पेंडिंग है. अनुकंपा नौकरी पर कोई निर्णय क्यों नहीं लिया गया. इसके बाद अगर कोई लाभ नहीं होता है, तो किसी वकील की सहायता से झारखंड हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर की जा सकती है. चूंकि मामला “सेवा के दौरान मृत्यु” से जुड़ा है, न्यायालय इसमें त्वरित कार्रवाई का आदेश दे सकता है.
धनबाद से आशीष कुमार का सवाल : हमारे परिवार का गोतिया से जमीन विवाद चल रहा है. इसको लेकर कोर्ट में मामला लंबित है. लेकिन गोतिया ने मेरे छोटे भाई और मुझे फंसाने के नियत से एक झूठा एफआइआर करवा दिया है. इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता की सलाह : यदि एफआइआर झूठी और दुर्भावनापूर्ण है, और उसमें प्रथम दृष्टया कोई आपराधिक कृत्य नहीं बनता, तो आप अपने वकील के माध्यम से हाईकोर्ट में एफआइआर रद्द कराने के लिए याचिका दायर कर सकते हैं. यदि पुलिस ने एफआइआर के आधार पर नामजद किया है और गिरफ्तारी की संभावना है, तो तुरंत जमानत स्थानीय कोर्ट में आवेदन करें.
राजगंज से कामता प्रसाद का सवाल : मैंने अपने एक दोस्त को कुछ रुपये उधार दिया था. इसके बदले उसने मुझे एक चेक दिया था. वह चेक 10 दिन पहले बाउंस कर गया है. मुझे क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : आप पहले बैंक से चेक बाउंस मेमो प्राप्त करें. इसके बाद मेमो पर दर्ज तारीख के 30 दिनों के भीतर अपने दोस्त को वकील के माध्यम से लीगल नोटिस भेजना होगा. यह नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट या स्पीड पोस्ट से भेजा जाये. उसकी रसीद व एक प्रति संभाल कर रखें. नोटिस भेजने के 15 दिनों के भीतर भी पैसे की वापसी नहीं होती है, तो आप धारा 138, एनआइ एक्ट के तहत केस दाखिल कर सकते हैं. साथ ही आप सिविल कोर्ट में पैसा वसूलने के लिए मनी सूट भी दायर सकते हैं.
बोकारो से वीरेंद्र कुमार सिंह का सवाल : मैं अपना एक प्लॉट बेचने के लिए 2023 में एक तीन महीने का एग्रीमेंट किया था. एग्रीमेंट में जमीन की कीमत 80 हजार रुपये प्रति डिसमिल तय थी. बाद में उस व्यक्ति ने सेल डीड बनवाया, उसमें जमीन की कीमत अधिक लिखी थी. अब मैं उसे जमीन नहीं बेचना चाहता हूं. मुझे क्या करना चहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : आपने तीन महीने के लिए एग्रीमेंट किया था. इसे समय सीमा के भीतर पूर्ण किया जाना था, और यदि समय सीमा के भीतर रजिस्ट्री न हो तो समझौता स्वतः रद्द माना जाएगा. अब समय सीमा पार हो चुकी है और दूसरी पार्टी ने कोई वैधानिक कदम नहीं उठाया है, तो आप यह कह सकते हैं कि एग्रीमेंट समाप्त हो चुका है. साथ ही अगर एग्रीमेंट के विपरीत सेल डीड में अधिक या अलग मूल्य दर्शाया गया है, और आपने उस पर सहमति नहीं दी है या हस्ताक्षर नहीं किया है, तो वह कानूनी रूप से मान्य नहीं है. अब आप जमीन बेचने के लिए बाध्य नहीं हैं. अगर आपको एडवांस में लिया पैसा लौटाना पड़े तो उसे चेक या बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से ही लौटायें.
धनबाद से जीवेश कुमार नापित का सवाल : मेरे दादाजी तीन भाई थे. आज भी इन तीनों भाइयों का परिवार साथ रहता है. लेकिन अब मैं अब अलग रहना चाहता हूं. लेकिन अन्य साथ नहीं दे रहा है. मुझे क्या अलग होने के लिए क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : सबसे पहले आप अपने अन्य पारिवारिक सदस्यों के साथ बातचीत करके आपसी सहमति से बंटवारे की कोशिश करें. आप सब मिलकर आपसी सहमति से पारिवारिक बंटवारा पत्र बना सकते हैं. इस पर सभी सदस्यों की हस्ताक्षर आवश्यक है. लेकिन अगर वे सहयोग नहीं करते, तो आप सिविल कोर्ट में पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे का दावा दायर करें.

एसडीओ कोर्ट से आदेश की नकल नहीं मिले तो क्या करें?


जामताड़ा से ललित पंडित सवाल : मैं जामताड़ा के एसडीएम कोर्ट से आदेश की नकल देने के लिए अनुरोध किया था, लेकिन वहां से मुझे नकल नहीं मिल रहा है. मुझे यह नकल हासिल करने के लिए क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : अगर आपको एसडीओ कोर्ट से आदेश की नकल नहीं मिल रही है, तो आपको कमिश्नर ऑफिस से उस आदेश की नकल देने की मांग करें. आपको वहां से नकल मिल जायेगी.
गिरिडीह से अनिता देवी का सवाल : मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है. मेरे ससुर भी नहीं हैं. अब मेरे देवर लोग मुझे और मेरे बच्चों को पुश्तैनी संपत्ति से बेदखल करने पर आमादा हैं. हमें पुश्तैनी घर में नहीं रहने दे रहे हैं ?
अधिवक्ता की सलाह : आपको सबसे पहले अपनी स्थिति की जानकारी अपने जिला के डीसी, एसडीओ एसपी और संबंधित थाना को देनी चाहिए. इससे आपके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित हो जायेगी. इसके बाद भी अगर आपको अपना हक नहीं मिलता है, तो आप एक बेहतर वकील के मदद से सिविल कोर्ट में अपने देवर को पार्टी बनाते हुए बंटवारे के लिए केस फाइल करें.
निरसा से अशोक मुखर्जी का सवाल : सात माह पहले मैंने जमशेदपुर में अपनी बेटी शादी की थी. शादी के कुछ दिनों के बाद ही मेरी बेटी वापस आ गयी. तब-तक सब कुछ ठीक था. लेकिन अब ना उसका पति और ना ही उसके ससुराल के लोग संपर्क कर रहे हैं. फोन करने पर भी कोई रिसीव नहीं कर रहा है. हमें इस मसले पर क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता की सलाह : आप सबसे पहले स्पीड पोस्ट या रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से बेटी के पति और ससुराल वालों को एक लिखित पत्र भेजें. इसमें उनसे बेटी को वापस बुलाने पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग करें. इस पर उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, तब आपके पास दूसरा विकल्प होगा. तब आप इस पर कानूनी कदम उठा सकते हैं. जैसे आप दहेज की मांग, प्रताड़ना, या विवाहिता को छोड़ने जैसी बात को लेकर केस कर सकते हैं. इसके साथ ही अगर वह नहीं मानते हैं, तो विदाई के लिए फैमिली कोर्ट में केस कर सकते हैं.
गिरिडीह से सागर राय का सवाल : इसी वर्ष जनवरी में बेटी की शादी के कुछ ही दिनों बाद पता चला कि दामाद की दोनों किडनी खराब है. वह गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. ससुराल वालों ने इस तथ्य को छिपाकर धोखे में विवाह कराया. मेरी बेटी अब उस परिवार में नहीं रहना चाहती है. कृपया बताएं कि इस विवाह को कानूनी रूप से कैसे भंग किया जा सकता है?
अधिवक्ता की सलाह : हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत, यदि विवाह धोखे या गलत जानकारी पर आधारित है, तो विवाह को अमान्य घोषित कराने की याचिका दाखिल की जा सकती है. आपकी बेटी को परिवार न्यायालय में शादी के निरस्तीकरण के लिए याचिका दाखिल करना चाहिए. याचिका में स्पष्ट रूप से धोखे, बीमारी की जानकारी छुपाने के तथ्य को साक्ष्य के साथ शामिल करें. यदि इसके बाद भी विवाह निरस्त नहीं होता है, तो आप तलाक का विकल्प भी चुन सकते हैं.

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