अश्लीलता के दुष्प्रभाव और उसकी रोकथाम पर प्रभात खबर संवाद में महिलाओं ने बुलंद की आवाज

Prabhat Khabar Samvad: धनबाद में प्रभात खबर संवाद में महिलाओं ने अश्लीलता को समाज का अभिशाप करार दिया. उन्होंने इसके दुष्परिणाम पर चर्चा की, तो इसके समाधान भी बताये. आप भी पढ़ें.

By Mithilesh Jha | February 22, 2025 10:36 PM
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Prabhat Khabar Samvad: प्रभात खबर की ओर से शनिवार को धनबाद के गीताश्री बैंक्वेट हॉल दुर्गा मंदिर रोड हीरापुर में संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. संवाद की इस कड़ी में सखी बहिनपा मैथिलानी समूह की महिलाएं शामिल हुईं. संवाद का विषय था ‘समाज में फैलती अश्लीलता, दोषी कौन?’. इस पर महिलाओं ने खुलकर अपने विचार रखे. सबने एक सुर में कहा कि अश्लीलता समाज के लिए अभिशाप है. समय रहते इसे नहीं रोका गया, तो आने वाले समय में इसके भयंकर दुष्परिणाम सभी को झेलने होंगे. महिलाओं ने कहा कि महिलाएं परिवार की धुरी होती हैं. हमें ही इस कोढ़ को समाज से मिटाना होगा. समय रहते इसका इलाज करना होगा. अपने बच्चों को परंपरा और संस्कृति के साथ सामंजस्य बिठाना सिखाना होगा. गौण होती रिश्तों की अहमियत समझानी होगी. उन्हें सोशल मीडिया, इंटरनेट, ओटीटी एवं अन्य सोशल साइट्स के गुण-दोष बताने होंगे. उनके साथ समय बिताकर सामाजिक, पारिवारिक मूल्यों की जानकारी देना जरूरी है. उनका मार्गदर्शन करना होगा. अभिभावक के साथ बेस्ट फ्रेंड भी बनें, तभी काफी हद तक अश्लीलता पर अंकुश लगा सकते हैं.

समाज व परिवार में जितना बिखराव आया है इसका कारण एकल परिवार का चलन व संयुक्त परिवार का विघटन है. हमें बच्चों को परंपरा से भी अवगत करना होगा. सोशल साइट्स पर बच्चे क्या सर्च कर रहे हैं, इस पर नजर रखनी होगी.

कल्पना झा

संस्कार की नींव बचपन में डाली जाती है. आजकल की माताएं बच्चों को खिलौने की जगह मोबाइल पकड़ा कर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो जाती हैं. ऐसे में बच्चे संस्कार और परंपरा से कैसे परिचित हो पायेंगे.

उमा झा

समाज में बढ़ती अश्लीलता का कारण वर्तमान परिवेश में समाज में बढ़ते तकनीकीकरण, शहरीकरण को मान सकते हैं. अपनी मिट्टी गांव को तो हम भूल ही गये हैं. बच्चों में नैतिक मूल्य की कमी होती जा रही है.

कंचन झा

सनातन धर्म में सोलह संस्कार माने जाते हैं. उसे कहां फॉलो किया जा रहा है. मां बच्चों की पहली गुरु होती हैं. संस्कार की शुरुआत घर से होती है. हमें बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के साथ ही रिश्तों का सम्मान करना भी सिखाना होगा.

स्वाति झा

मौजूदा परिवेश में अश्लीलता हमारे परिवार, समाज, देश की विकट समस्या बनती जा रही है. महिलाओं की यह जिम्मेवारी बनती है कि अपनी परंपरा, संस्कृति व संबंधों की अहमियत बच्चों को बतायें. उन्हें देर तक मोबाइल नहीं दें.

सुभद्रा झा

आजकल के बच्चे एकल परिवार में पल रहे है. उन्हें माता-पिता, भाई-बहन के अलावा अन्य रिश्तों की जानकारी नहीं मिल पाती. जरूरी है कि बच्चों को परंपरा व संबंधों की जानकारी दें. छुट्टियों में उन्हें गांव भी लेकर जायें.

रूबी खां

वर्तमान समय में सभी अपनी लाइफ में व्यस्त हो गये हैं. रिश्तों में एडजस्टमेंट बहुत जरूरी है. आजकल के बच्चों का मानसिक विकास समय से पहले हो जा रहा है. घर का वातावरण फ्रेंडली रखना जरूरी है.

रीता चौधरी

एक घर में रहकर भी लोग एक-दूसरे की दिनचर्या नहीं जानते. अजनबी की तरह जी रहे हैं. सब मोबाइल की दुनिया में व्यस्त हैं. घर के अभिभावक भी बच्चों की मांग पूरी करना ही अपना कर्तव्य समझ लेते हैं.

रंजू झा

भारतीय संस्कृति को सहेजने की जरूरत है. हमें जो विरासत में मिली है, उसे संभालना है. सोशल साइट्स से अश्लीलता भी परोसी जा रही है. इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. बच्चे स्मार्ट फोन का मिसयूज कर रहे हैं.

डेजी कश्यप

बढ़ते बच्चों में कुछ बातों को लेकर क्यूरियोसिटी होती है. उनकी जिज्ञासा दूर करना पेरेंटस, टीचर के लिए जरूरी है. अन्यथा वे सोशल साइट्स का सहारा लेंगे. संबंधों में दूरी के कारण त्योहार फीके होते जा रहे हैं. उनमें जीवंतता लाने की जरूरत है.

विनीता चौधरी

अति हर चीज की बुरी होती है. अभिभावक बच्चों की हर मांग पूरी ना करें. जब घर में कोई सही-गलत की जानकारी देनेवाला नहीं होगा, तब हम मान-मर्यादा की बात कैसे कर सकते हैं. पहला फर्ज बच्चों के लिए है, हम महिलाओं को समझना होगा.

पूनम झा

समाज में बढ़ती अश्लीलता के लिए सोशल मीडिया भी जिम्मेवार है. ये अच्छी बात है कि बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार होना चाहिए, लेकिन उम्र का लिहाज जरूरी है. जो मां ही छोटे कपड़े पहनेंगी, वह बेटी को क्या सीख देंगी.

रीता मिश्रा

आधुनिकता की दौड़ में शामिल होकर हम क्या हासिल कर लेंगे, इसे समझना होगा. अपनी संस्कृति को सहेजना होगा. बिखरते रिश्तों के बीच बच्चों को ना तो दादी-नानी की लोरी सुनने को मिलती है और ना ही संदेश देती कहानियां.

प्रीति चौधरी

पहल, जो करनी होगी

  • बिखरते परिवार को समेटने की है जरूरत.
  • बच्चों को रिश्तों का मान-सम्मान करना सिखाना होगा.
  • सोशल साइट्स एवं अन्य सोशल प्लेटफार्म का साइड इफेक्ट बताने होंगे.
  • भावनाओं को सहेजना, समझना और बताना होगा.
  • धूमिल होते रिश्तों के साथ संस्कार से सींचने की जरूरत.

समाधान, जो सामने आये

  • घर का वातावरण फ्रेंडली हो, जहां इमोशन शेयर हो सके.
  • अनावश्यक डिमांड पर कंट्रोल हो.
  • बच्चों की परवरिश आया के भरोसे न छोड़ें.
  • समय की मांग है फिर से संयुक्त परिवार.

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