1957 के आम चुनाव की कहानी, तब के पीठासीन अधिकारी सरदार गुरुचरण सिंह की जुबानी

चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से आवागमन बाधित हो जाती थी. इसके साथ ही जनता पर चुनाव खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता था.

By Mithilesh Jha | May 23, 2024 7:17 PM
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सिंदरी (धनबाद), अजय उपाध्याय : सरदार गुरुचण सिंह 90 बसंत देख चुके हैं. 20 साल की उम्र में चंडीगढ़ से सिंदरी आए. फर्टिलाइजर कंपनी में फोरमैन थे. 1957 के दूसरे आम चुनाव में पीठासीन अधिकारी की भूमिका निभाई.

चुनाव के बारे में लोगों को पता भी नहीं होता था

कहते हैं कि तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. पहले अधिकतर लोगों को अगले हफ्ते के मतदान का भी पता नहीं होता था. आम लोगों के लिए संचार का कोई साधन नहीं था. नेताओं से ही जनता को पता चलता था कि कब वोट डाले जाना है. प्रभात खबर संवाददाता से बातचीत में उन्होंने पहले और अब के चुनाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

जनता तक संदेश पहुंचाने के लिए नेताओं के पास होता था कम समय

गुरुचरण सिंह ने बताया कि उस वक्त के आम चुनाव में जनता तक नेताओं के संदेश पहुंचाने का एकमात्र जरिया सघन जनसंपर्क अभियान ही था. वोट से पहले अब उम्मीदवार को महीनों समय मिल रहा है, लेकिन पहले 10 दिन का समय काफी रहता था. चुनाव और उसके परिणाम आने में कई दिन लग जाते थे.

एक महीने पहले चुनाव की वजह से बाधित हो जाता था आवागमन

चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से आवागमन बाधित हो जाती थी. इसके साथ ही जनता पर चुनाव खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता था. चुनाव कराने में भी बैलेट पेपर सहित कई मशीनों को सघन दूर स्थानों पर ले जाने और चुनाव कराकर सुरक्षित पहुंचाने तक की प्रक्रिया काफी बोझिल करने वाली थी.

अखबार और टेलीविजन से प्रत्याशियों को प्रचार में हुई सहूलियत

उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे चुनाव प्रचार में अखबार और उसके बाद टेलीविजन ने इस पर अपना कब्जा जमाया. चुनाव प्रचार में प्रत्याशियों को थोड़ी राहत मिली. परंतु इवीएम प्रक्रिया के आने से चुनाव कराने और उसे सुरक्षित पहुंचाने में आसानी हो गई. इसके साथ ही परिणाम जल्द आने लगे. उन्होंने कहा कि डिजिटल प्रक्रिया से देश का समय के साथ आर्थिक फायदा भी हुआ है.

60 के दशक में क्या थे प्रचार के साधन?

प्रचार-प्रसार के लिए आज के दिनों में उमीदवार को लाऊडस्पीकर के साथ वाहन से प्रचार करने की सुविधा मिल रही है, लेकिन 60 के दशक में एक-दूसरे के घर जाकर अपना चुनाव चिन्ह बता कर लोग मतदान के लिए लोगो को अपील करते थे ।

शांतपूर्ण चुनावों के लिए एनसीसी कैडेट की ली जाती थी मदद

अभी पूरे देश में जिला प्रशासन पुलिस बल ,सीआरपीएफ, आर्मी, बलों के प्रयोग से शान्ति पूर्ण चुनाव कराने का प्रयास कर रहा है. फिर भी कहीं न कहीं कुछ घटना घट जा रही है, उस समय शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए एनसीसी कैडेटों की सेवा ली जाती थी.

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