बेहद रमणिक वादियों में लगता है यह मेला
दुमका में शहर से चार किमी की दूरी पर मयूराक्षी नदी के तट व हिजला पहाड़ी के पास 133 साल पहले से हफ्तेभर का मेला लगता आया है. क्षेत्र का यह सबसे बड़ा मेला है. इस वर्ष 24 फरवरी से मेले की शुरूआत हो रही है. मेला अब महोत्सव का रूप भी ले चुका है. दरअसल यह मेला जनजातीय समाज के सांस्कृतिक संकुल की तरह है. जिसमें सिंगा-सकवा, मांदर व मदानभेरी जैसे परंपरागत वाद्ययंत्र की गूंज तो सुनने को मिलती ही है, झारखंडी लोक संस्कृति के अलावा अन्य प्रांतों के कलाकार भी अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने पहुंचते हैं. बदलते समय के साथ इस मेले को भव्यता प्रदान करने की कोशिशें लगातार होती रही हैं. कोरोना की वजह से दो साल यह मेला आयोजित न हो सका था. पर इस बार मेला क्षेत्र में कई आधारभूत संरचनायें विकसित हो गयी हैं, जो मेले के उत्साह को दोगुना करने में सहायक साबित होगा. दुमका के विधायक बसंत सोरेन ने लगभग छह करोड़ के विकास योजनाओं की यहां नींव रखी थी, जिनमें से ज्यादातर काम अंतिम चरण में हैं.
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हिजला मेला को जानिए
1890-तत्कालीन अंग्रेज प्रशासक जॉन राबटर्स कास्टेयर्स के समय हिजला मेला की शुरुआत की गयी थी.
1922-संस्थापक प्रशासक जॉन राबटर्स कास्टेयर्स की स्मृति में जुबली गेट का निर्माण कराया गया.
1975- तत्कालीन आयुक्त जीआर पटवर्धन की पहल पर हिजला मेला के आगे जनजातीय शब्द जोड़ा गया.
2008- राज्य सरकार ने इस मेला को एक महोत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया.
2015- राजकीय मेला का दर्जा दिया गया, जिसके बाद यह मेला राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव कहलाया.
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