साहित्य समाज का आइना और संस्कृति का संवाहक, नयी पीढ़ी को इन गतिविधियों से जोड़ने की जरूरत: डॉ लोईस

सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में संताली साहित्य दिवस व मूर्धन्य साहित्यकार डॉ डोमन साहू 'समीर' की जन्मशताब्दी पर भव्य समारोह का आयोजन किया गया. कार्यक्रम भाषा, साहित्य, संस्कृति और अस्मिता के विभिन्न पहलुओं को समर्पित रहा, जिसमें प्रतिष्ठित साहित्यकार, शोधार्थी, छात्र एवं विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सम्मिलित हुए.

By ANAND JASWAL | April 11, 2025 7:37 PM
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आयोजन. एसकेएमयू में मना संताली साहित्य दिवस, डॉ डोमन साहू ”समीर” किये गये याद

कुलपति डॉ बिमल प्रसाद सिंह ने कहा कि यह आयोजन मात्र एक भाषिक उत्सव नहीं, बल्कि मानसिक और सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है. संताली भाषा आदिवासी अस्मिता, भाषाई पहचान और जनजीवन से गहराई से जुड़ी है. भाषा प्रकृति के निकट जीवन की सुंदर अभिव्यक्ति है. डॉ डोमन साहू “समीर ” ने भाषा को न केवल जिया बल्कि उसे गहराई से समझा. साहित्य में उसका यथार्थ चित्रण किया. डॉ सिंह ने कहा कि संताली भाषा अपनी मौखिक परंपरा से निकलकर अब एक समृद्ध लेखन भाषा के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कर चुकी है. यह न केवल झारखंड, बल्कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत कई राज्यों में बोली और समझी जाती है. उन्होंने कहा कि भाषा को केवल पुस्तकों में संजोना पर्याप्त नहीं, उसे जीवन से जोड़ते हुए उसे व्यवहार में लाना आवश्यक है. कुलपति ने नये साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने व इस प्रकार के आयोजन के जरिये पूर्वज साहित्यकारों के योगदान को स्मरण करने और उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने का संकल्प लेने पर भी बल दिया.

संताली की पढ़ाई की मांग को लेकर आंदोलन में जाना पड़ा था जेल: मुलमिन

मुलमिन टुडू ने संघर्षों की चर्चा करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने तत्कालीन भागलपुर विश्वविद्यालय में संताली विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी और सामाजिक आंदोलनों में भाग लेने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा. साहित्यकार निर्मला पुतुल ने संताली भाषा, संस्कृति और सभ्यता पर संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली वक्तव्य देते हुए कहा कि साहित्य किसी भी समाज की आत्मा है. इसकी रक्षा करना हम सभी का दायित्व है. विजय टुडू ने भाषा और साहित्य को पीढ़ियों से संचित ज्ञान का भंडार बताया और कहा कि संताल परगना में संताली भाषा का विशेष महत्व है. उन्होंने कहा कि यह भाषा अपने भौगोलिक इतिहास को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है. सिद्धोर हांसदा ने बंगाली पत्रिकाओं में संताली भाषा की उपस्थिति पर चर्चा की. उन्होंने डॉ समीर के कार्यों को स्मरण करते हुए भाषा-संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया. वहीं सनातन मुर्मू ने संताली लोककथा और लिपि के महत्व पर प्रकाश डाला.

पहली बार विश्वविद्यालय के नये परिसर में आयोजित हुआ कार्यक्रम

प्रथम सत्र का समापन सहायक प्राध्यापक डॉ शर्मिला सोरेन के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने सभी आमंत्रित अतिथियों, विश्वविद्यालय प्रशासन, छात्रों और आयोजन समिति के सदस्यों का आभार व्यक्त किया. द्वितीय सत्र की शुरुआत संताली विभाग के विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत स्वागत गीत से हुई, जिसने पूरे वातावरण को सांस्कृतिक ऊर्जा से भर दिया. सत्र की अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ विमल कुमार सिंह ने की. इसमें विविध वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए डॉ डोमन साहू “समीर ” के प्रपौत्र कौशल किशोर ने उनके रचनात्मक जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि कैसे डॉ समीर ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को दिशा दी. उन्होंने 1997 में साहित्य अकादमी द्वारा दिल्ली में आयोजित सम्मान समारोह की स्मृतियों को साझा किया, जिसमें वे स्वयं भी उपस्थित थे. संथाली विभाग के विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ सुशील टुडू ने स्वागत भाषण में बताया कि 11 अप्रैल 1979 को ही विश्वविद्यालय में संथाली भाषा एवं साहित्य की औपचारिक पढ़ाई की शुरुआत हुई थी. उन्होंने बताया कि यह पहली बार है जब यह आयोजन विश्वविद्यालय के नए परिसर में आयोजित किया जा रहा है. डॉ टुडू ने इस आयोजन को संताली भाषा-साहित्य के गौरवपूर्ण इतिहास से जोड़ते हुए बताया कि यह वर्ष डॉ डोमन साहू “समीर ” की जन्मशताब्दी का वर्ष भी है, जिनका योगदान संताली साहित्य को नई ऊंचाइयों तक ले गया. इस अवसर पर स्मारिका का विमोचन किया गया, जिसमें संथाली साहित्य के विविध पहलुओं पर शोध आधारित लेख संकलित हैं.

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