काठीकुंड.देश जहां एक ओर आधुनिक तकनीक, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी और हाईवे नेटवर्क से विकास की नयी ऊंचाइयों को छू रहा है, वहीं झारखंड के दुमका जिले के काठीकुंड प्रखंड स्थित आदिवासी बहुल गंधर्व गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है. गांव के प्रधान टोला में न पक्की सड़क है और न ही जल निकासी की कोई व्यवस्था. हर बारिश में यह गांव नदी में तब्दील हो जाता है. तेज बारिश के बाद मंगलवार को गांव की कच्ची सड़कों में कमर तक पानी भर गया था. बुधवार तक भी जलस्तर कम नहीं हुआ, जिससे ग्रामीणों को रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने में काफी कठिनाई हुई. बरसात में कच्चे रास्ते दलदल बन जाते हैं और पानी का बहाव इतना तेज होता है कि साइकिल, बाइक या पैदल चलना भी असंभव हो जाता है. सबसे अधिक परेशानी बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को होती है. स्कूल जाने वाले बच्चे घरों में कैद हो जाते हैं और इलाज के लिए अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो जाता है. आपात स्थिति में ग्रामीण लकड़ी या चारपाई के सहारे पानी पार कर मरीजों को बाहर ले जाते हैं. गांव में जलजमाव के कारण गंदगी और मच्छरों का प्रकोप बढ़ रहा है, जिससे संक्रामक बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है. नालियों का अभाव और ऊंचाई पर निकासी की व्यवस्था न होने से पानी दिनों तक गांव में ही ठहर जाता है. ग्रामीण कई वर्षों से पक्की सड़क और सिंचाई नाले की मांग कर रहे हैं. उनका मानना है कि यदि नाले का निर्माण हो जाए तो बारिश का पानी खेतों तक पहुंचाया जा सकेगा, जिससे जलजमाव की समस्या खत्म होगी और सिंचाई का साधन भी मिल जाएगा. गंधर्व गांव की दुर्दशा यह दर्शाती है कि आज भी विकास के बड़े दावों के बीच कई इलाके बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ग्रामीण प्रशासन से जल्द कार्रवाई की उम्मीद कर रहे हैं.
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