Home झारखण्ड पूर्वी सिंहभूम East Singhbhum News : घाटशिला में सुवर्णरेखा नदी की बदहाली से छिन रहा मछुआरों का रोजगार, कर रहे पलायन

East Singhbhum News : घाटशिला में सुवर्णरेखा नदी की बदहाली से छिन रहा मछुआरों का रोजगार, कर रहे पलायन

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East Singhbhum News : घाटशिला में सुवर्णरेखा नदी की बदहाली से छिन रहा मछुआरों का रोजगार, कर रहे पलायन

गालूडीह. मछुआरों की बस्ती गालूडीह के दिगड़ी गांव में रविवार को ‘प्रभात खबर आपके द्वार’ कार्यक्रम हुआ. यहां मछुआरों ने अपनी समस्याएं रखीं. सुवर्णरेखा नदी किनारे के गांवों में रहने वाले मछुआरों की जिंदगी नदी से शुरू होकर नदी में खत्म हो जाती है. हालांकि, जलवायु परिवर्तन से नदी की कोख सूख रही है. गर्मी शुरू होने से पहले नदी की स्थिति नाले जैसी हो गयी है. इससे मछुआरों का रोजगार छिनता जा रहा है. पीढ़ी दर पीढ़ी मछली पकड़ कर अपनी जीविका चलाने वाले मछुआरे अब रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में पलायन करने लगे हैं. सुवर्णरेखा नदी किनारे दिगड़ी, रुआम, कुमीरमुढ़ी, गाजूडीह, धाधकीडीह, काशीडीह, चिटाघुटू, धोरासाई आदि दर्जनों गांव हैं, जहां मछुआरों की आबादी है. इन लोगों को क्षेत्र में कैवर्त, धोरा, धीवर आदि से जाना जाता है. मछुआरा समाज के लोग कहते हैं कि नदी जीविका देती है, पर अब समय के पहले सूख जाती है. पानी प्रदूषित होने से मछलियां मर जाती हैं. ऊपर से कभी सुवर्णरेखा बराज के अभियंता, तो कभी प्रशासन मछली पकड़ने पर रोक लगाता है. इससे रोजगार छिनता जा रहा है. अब समाज के बच्चे मछली पकड़ना नहीं चाहते हैं. मजदूरी के लिए युवा पलायन कर रहे हैं.

आवास योजना से वंचित, झोपड़ी में कट रही जिंदगी

मछुआ आवास योजना से अधिकतर मछुआरे वंचित हैं. ये झोपड़ी में रहने को विवश हैं. उलदा पंचायत के दिगड़ी गांव के मछुआरों आवास नहीं मिला है. बस्ती के आधे लोग मछलियों से जीविकोपार्जन कर रहे हैं. आधे लोग दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं.

क्या कहते हैं मछुआरे

मछली पकड़कर बहुत कम आय के साथ मछुआरे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋण लेने के लिए विवश हैं.

– लालचंद कैवर्त, ग्रामीण

————————————-हम मछुआरों की स्थिति बहुत खराब है. मछुआरों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य समस्याएं और खराब जीवनशैली.

– अर्जुन कैवर्त, ग्रामीण——————————–

सुवर्णरेखा नदी में पानी सूख रहा है. मछलियों की मात्रा कम हो गयी है. युवा बेरोजगार हैं. रोजगार की तलाश में राज्य के बाहर पलायन करने के लिए विवश हैं.

– महादेव कैवर्त, ग्रामीण

—————————————ग्रामीणों के पास मछली पकड़ने के अलावा रोजगार का अन्य विकल्प नहीं है. आय की कमी से बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं. खाने के लिए पैसे नहीं हैं.

– बनमाली कैवर्त, ग्रामीण———————————–

मछली पकड़कर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. अब मजदूरी करते हैं. बरसात में बराज से मछली पकड़ते हैं. अभी नदी में पानी की कमी के कारण मछली पकड़ना बंद है.

– जयचांद कैवर्त, ग्रामीण

———————————सरकार को मछुआरों के बारे में सोचने की आवश्यकता है. हमें मछुआरों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है. हम जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं.

– रूपेंद्र कैवर्त, ग्रामीण———————————-

नदी और मछली के भरोसे जिंदगी कट रही है. मछली पकड़ने पर घर का चूल्हा जलता है. कई बार भूखे पेट सोना पड़ता है. हमारे पास रोजगार का और कोई विकल्प नहीं है.

– मंजू कैवर्त, ग्रामीण

——————————मछली पकड़कर घर चलाना मुश्किल हो जाता है. बच्चों को सही से शिक्षा नहीं दे पाते हैं. ठीक से भरण पोषण नहीं कर पाते हैं. पोष्टिक आहार जुटा नहीं पाते है.

-बेबी कैवर्त, ग्रामीण——————————-

मछुआरों की जिंदगी आसान नहीं होती है. हमें कड़ी धूप में भी मछली पकड़ना पड़ता है. रात को नदी में जाना पड़ता है. मछली बेचने के बाद ही हमारा घर का चूल्हा जलता है.

– बॉबी कैवर्त, ग्रामीण

———————————बरसात में जान जोखिम में डालकर उफनाई नदी में जाना पड़ता है. बरसात में मछलियां पकड़ना मुश्किल हो जाता है. कई बार पानी के बहाव में जाल बह जाता है.

– रेखा कैवर्त, ग्रामीण

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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