आस्था व मान्यता से जुड़ी है बाबा खोन्हरनाथ मंदिर का इतिहास

गढ़वा जिले में स्थित हैं बाबा खोन्हरनाथ मंदिर. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है.

By DEEPAK | July 12, 2025 10:20 PM
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जितेंद्र सिंह, गढ़वा

गढ़वा जिले में स्थित हैं बाबा खोन्हरनाथ मंदिर. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. इस मंदिर से स्थानीय लोगों की गहरी धार्मिक आस्था और मान्यता जुड़ी हैं. यह शिव भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है.इसका धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक विशिष्ट धार्मिक पर्यटन तीर्थ स्थल भी बनाते हैं, इस स्थल पर प्रत्येक साल हजारों श्रद्धालु आस्था और भक्तिभाव के साथ आते हैं. खोन्हर नाथ मंदिर काफी प्रसिद्ध है. इसके पीछे कारण यह है कि सभी शिवलिंगों में शिवलिंग का अर्घ्य उत्तरमुखी होता है, जानकारों की माने तो दुनिया में केवल तीन ही ऐसे मंदिर हैं, जिनका अर्घ्य पूर्वमुखी है. मानसरोवर और अमरनाथ के बाद तीसरे बाबा खोन्हर नाथ मंदिर में ऐसा अद्भुत शिवलिंग स्थापित है. सावन में भगवान शंकर के जलाभिषेक के लिए भी भक्त यहां पहुंचते हैं

मंदिर में प्राकृतिक रूप से निर्मित है शिवलिंग

गढ़वा के खोन्हर नाथ मंदिर का इतिहास बहुत वर्षों पुराना है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे झारखंड के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है. यह मंदिर प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है, जो पूर्वमुखी है. यह मंदिर पलामू और गढ़वा जिले की सीमा पर स्थित है और यहां हर साल शिवरात्रि पर मेला का आयोजन किया जाता है. सावन के महीने में एक माह तक जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं भीड़ उमड़ी रहती है.

यह मंदिर धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र रहा है.यहां हर साल शिवरात्रि के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है.सरकार के स्तर से सक्रिय पहल की गयी हैं. मंदिर तक सड़क निर्माण, चहारदीवारी, तालाब का जीर्णोद्धार और अन्य विकास कार्य कराया गया है. मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए भी प्रयास किया जा रहा हैं. मंदिर में पूजा करने के लिए दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, छत्तीसगढ़, बिहार और अन्य स्थानों से भी श्रद्धालु आते हैं. मंदिर के पुजारी के अनुसार, उनके पूर्वज 500 साल पहले ताली गांव से आकर इस मंदिर की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. मंदिर परिसर में मां ग्राम देवी और हनुमान जी भी दरबार हैं. इसके अलावा तत्कालीन पर्यटन मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने यहां भगवान परशुराम की प्रतिमा भी स्थापित कराया है.यहां शादी-विवाह के लिए विवाह मंडप भी है.

यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक भाईचारे का भी प्रतीक हैं .हिंदू-मुस्लिम एकता की भी मिसाल भी पेश करता है. मुस्लिम लोग भले ही यहां पूजा नहीं करते, लेकिन यहां के हिंदू श्रद्धालुओं की मुसीबत और उनकी आस्था का सम्मान करते हुए उन्होंने एक बेहतरीन प्रयास किया. मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा किया गया प्रयास ही है कि आज लोगों को मंदिर तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होती. दरअसल, मंदिर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं था और भोलेनाथ के भक्तों को खेतों और पगडंडियों से गुजरना पड़ता था. इस बारे में गांव के मुसलमानों ने आपस में बैठक कर सड़क के लिए जमीन देने का फैसला लिया. खुद पहल कर उन्होंने जो जमीन दान की उसी पर सड़क बन गयी, जिससे लोगों को आसानी हुई. मुसलमानों द्वारा दान की गयी जमीन से गुजर कर हिंदू श्रद्धालु अपने भगवान का दर्शन करते हैं.

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