गढ़वाल से गुमला आकर जारी रखा आंदोलन
सीता देवी कहती हैं कि उनके पिता गंगा जी महाराज गढ़वाल के रहनेवाले थे. वह स्वतंत्रता सेनानी थे. अपने कुछ साथियों के साथ उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. इसके बाद अंग्रेज उन्हें पकड़ने के लिए खोजने लगे. अंग्रेजों से बचने के लिए 1945 में वह गढ़वाल से गुमला आ गये. उस समय गुमला जंगली इलाका था. बहुत कम घर थे. वह गुमला के रायडीह प्रखंड स्थित कांसीर गांव में बस गये. वह कांसीर गांव के जंगलों के बीच छिपकर रहने लगे और अंग्रेजों के खिलाफ काम करने लगे. अंग्रेज गुमला तक पहुंचे थे, लेकिन गंगाजी महाराज को पकड़ नहीं पाये थे. अभी जो काली मंदिर के समीप से गुजरनेवाली नदी पर पुल है, उस समय नहीं था. नदी पार करके लोग आते-जाते थे. गंगा जी महाराज अपने कुछ साथियों के साथ कांसीर से गुमला तक 35 किमी पैदल चलकर हर रोज आते थे और नदी के किनारे पूजा-पाठ करते थे. यहां अंग्रेजों के खिलाफ बैठक होती थी और आंदोलन की रणनीति बनती थी. गंगाजी महाराज नदी के किनारे पूजा पाठ करने लगे. बाद में इसी स्थल पर काली मंदिर बना, जो आज एक शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है.
सम्मान के लिए तरस रहा है परिवार
सीता देवी गंगा जी महाराज की इकलौती बेटी हैं. वह काली मंदिर की मुख्य पुजारिन हैं. सीता देवी को बेटा और बेटियां हैं. परिवार के अनुसार, जब तक गंगाजी महाराज जीवित थे, उन्हें पेंशन मिलती रही. लेकिन 1985 में उनके निधन के बाद पेंशन मिलनी बंद हो गयी. कभी भी प्रशासन ने परिवार के किसी सदस्य को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित करने का भी प्रयास नहीं किया.