
गुमला. गुमला में शुक्रवार को रथयात्रा मेला है. मौके पर कई गांवों में मेला लगेगा और रथयात्रा निकाली जायेगी. गुमला में रथयात्रा मेला लगाने की प्राचीन परंपरा है, जो आज भी अनवरत जारी है. 1700 ईस्वी के आसपास गुमला में नागवंशी राजाओं का शासन था. नागवंशी राजा उस समय अपनी शक्ति व राज्य विस्तार के लिए मेला लगाते थे. कलांतर में यह मेला रथयात्रा का रूप धारण कर लिया. नागवंशी राजाओं द्वारा शुरू की गयी रथयात्रा की परंपरा आज वृहत रूप ले लिया है. यहीं वजह है कि जनजातीय बहुल गुमला जिले में रथयात्रा मेला लगाने की प्राचीन परंपरा है. समय के साथ मेला का स्वरूप बदला है. लेकिन आज भी लोगों का विश्वास भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के प्रति है. आज के दिन में गुमला जिले के सभी 12 प्रखंडों में रथयात्रा मेला लगाया जाता है. बसिया प्रखंड के पोकटा, रामजड़ी, लोंगा, बसिया, गुमला के करौंदी, सिसई के नागफेनी रथयात्रा मेला, रायडीह प्रखंड के हीरादह का इतिहास सबसे पुराना है. बसिया प्रखंड में हिंदी क्लेंडर के अनुसार विक्रम संवत 1731 में रथयात्रा मेला की शुरुआत हुई थी. गुमला के करौंदी में विक्रम संवत 1775 व नागफेनी में विक्रम संवत 1761 में रथयात्रा मेला की शुरुआत की गयी. गुमला जिले में 27 जून को विभिन्न स्थानों में रथयात्रा मेला का आयोजन किया गया है.
जिले में इन स्थानों पर लगता है मेला
गुमला जिले के रायडीह प्रखंड अंतर्गत हीरादह, सरांगपुर, कोंडरा, पुड़ी, कुलमुंडा, कांसीर, केमटे, हीरादह, सिसई के नागफेनी, बसिया के पोकटा, रामजड़ी, लोंगा, बसिया, कामडारा प्रखंड के रायकेरा, भरनो प्रखंड के समसेरा धाम, करौंदाजोर, बिशुनपुर प्रखंड के बिशुनपुर, बनारी, घाघरा प्रखंड के आदर व घाघरा, चैनपुर प्रखंड, डुमरी, जारी व पालकोट प्रखंड में कई स्थानों पर मेला लगता है.
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