Kargil Vijay Diwas 2025: भरनो (गुमला), सुनील-कारगिल युद्ध में शहीद लांस नायक विश्राम मुंडा को शहीद हुए ढाई दशक बीत गए, लेकिन उनका परिवार आज भी तंगहाली में जी रहा है. रहने को पक्का मकान तक नहीं है. अनुकंपा पर नौकरी तक नहीं मिली. कारगिल विजय दिवस पर आश्वासन तो मिलता है, लेकिन फिर उनकी कोई सुध नहीं लेता है. शहीद का पुत्र विक्रम मुंडा गांव में खेतीबाड़ी कर अपना जीवन-यापन करता है. आज भी शहीद का बेटा अबुआ आवास को तरस रहा है.
परिवार तक पहुंची थीं शहीद की सिर्फ अस्थियां
गुमला जिले के भरनो प्रखंड के नवाटोली गांव निवासी लांस नायक विश्राम मुंडा 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. इस युद्ध में उन्होंने पाकिस्तानी सेना के कई जवानों को मार गिराया था. उनका शव भारतीय सेना को नहीं मिल सका था. परिवार तक शहीद की सिर्फ अस्थियां पहुंची थीं. शहीद की पत्नी रीना देवी और पुत्री अंजलि बारला रांची में रहती हैं. शहीद का पुत्र विक्रम मुंडा अपनी पत्नी संजू मुंडा और दो बच्चों के साथ गांव में रहता है. खेतीबाड़ी कर जीवन-यापन करता है. पिता को शहीद हुए ढाई दशक बीत गए, लेकिन शहीद का परिवार आज भी पक्का मकान को तरस रहा है. अबुआ आवास तक नसीब नहीं हुआ है.
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सरकार ने उन्हें भुला दिया-विक्रम मुंडा
शहीद विश्राम मुंडा के पुत्र विक्रम मुंडा ने बताया कि उसके पिता 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. उसका परिवार उनका अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका था. इसके बावजूद सरकार ने उन्हें भुला दिया. अनुकंपा पर नौकरी भी नहीं दी. पक्का मकान तक नहीं मिला. कारगिल विजय दिवस पर सिर्फ आश्वासन मिलता है. हर वर्ष अखबारों में कारगिल विजय दिवस पर उसके पिता और परिवार की खबर छपती है. तब प्रखंड के पदाधिकारी घर पर आते हैं और सरकारी लाभ देने का आश्वासन देकर चले जाते हैं. ब्लॉक में कभी-कभी किसी कार्यक्रम में उसकी मां, बहन और उन्हें बुलाकर शॉल ओढ़ाकर सम्मानित कर दिया जाता है. फिर उसी हाल में छोड़ दिया जाता है.
वर्षों से मांग रहे हैं पक्का मकान-विक्रम मुंडा
शहीद विश्राम मुंडा के बेटे विक्रम मुंडा कहते हैं कि कई वर्षों से बीडीओ को आवेदन देकर पक्का मकान देने की मांग कर रहे हैं, लेकिन आज तक आवास नहीं मिला है. पिछले साल भी बीडीओ अरुण कुमार सिंह, मुखिया ललिता देवी और इंजीनियर मो तारिक घर पर आए थे और परिवार के लोगों से मुलाकात कर उनके शहीद पिता की तस्वीर पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी. उन्हें शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया था. उनकी पत्नी संजू मुंडा के नाम से अबुआ आवास स्वीकृत किया था, लेकिन सालभर बाद भी अबुआ आवास सपना ही रह गया.
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