स्वतंत्रता सेनानी और भूदान आंदोलन में प्रणेता ‘गुमला गौरव’ राम प्रसाद की प्रतिमा तक न लगी

Republic Day 2025: आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले गुमला के राम प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाएं नहीं लीं. आजादी के बाद समाजसेवा में जुट गए. आर्थिक तंगी में उनका निधन हुआ. बावजूद इसके आज तक ‘गुमला गौरव’ की एक प्रतिमा भी जिले में नहीं लगी.

By Mithilesh Jha | January 19, 2025 8:23 PM
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Republic Day 2025: अंग्रेजी हुकूमत के कई नियम-कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने के साथ-साथ भूदान जैसे कई आंदोलनों में एक शख्स ने अहम भूमिका निभाई थी. झारखंड प्रांत के गुमला में जन्मे इस शख्स का नाम था राम प्रसाद. राम प्रसाद की देशभक्ति की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है. 7 जून 1910 को गुमला में जन्म लेने वाले राम प्रसाद में राष्ट्र प्रेम की भावना बचपन से ही भरी थी. युवा अवस्था में आते-आते वह स्वतंत्रता सेनानी बन गए. मां भारती को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए क्रांति पथ पर चल पड़े. महज 25 साल की उम्र में वर्ष 1935 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ घर-घर जाकर लोगों को जगाने लगे. कई बार जेल गए, लेकिन देशभक्ति का जज्बा कम न हुआ.

भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए राम प्रसाद

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महात्मा गांधी के संपर्क में आये राम प्रसाद को बापू के साथ जेल भी जाना पड़ा. राम प्रसाद ने अपने मित्र गणपत लाल खंडेलवाल के माध्यम से डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, विनोबा भावे जैसे नेताओं की मदद से गुमला में आजादी की चिंगारी को हवा दी. राम प्रसाद सादगीपूर्ण जीवन जीते थे. मैट्रिक के बाद बैं‍किंग डेवलपमेंट, अकाउंटेंसी और ऑडिटिंग की शिक्षा ग्रहण लेने के बावजूद उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी बनने का निश्चय किया. उन्हें राष्ट्र की चिंता थी. कभी सम्मान पाने की इच्छा प्रकट नहीं की. न ही कभी सम्मान नहीं मिलने पर किसी प्रकार की शिकायत की.

आजादी के बाद समाजसेवा में जुट गए राम प्रसाद

भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने के बाद राम प्रसाद कई संगठनों से जुड़ गए. आम लोगों के हक की आवाज उठाने लगे. बिहार में भूदान आंदोलन हुआ, तो उसमें भी राम प्रसाद ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. 8 नवंबर 1958 को भूदान किसान पुनर्वास समिति के प्रतिनिधियों की बैठक में शामिल हुए. 4 सितंबर 1955 को रांची जिला में हिंदी साहित्य सम्मेलन की साधारण सभा ने उन्हें सक्रिय सदस्य बनाया.

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पेंशन और अन्य सुविधाओं को कभी नहीं किया स्वीकार

राम प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पेंशन एवं अन्य सुविधाओं को स्वीकार नहीं किया. वंशी साव और राजकलिया देवी के घर जन्मे राम प्रसाद की सेहत दिन-ब-दिन गिरती गई, लेकिन उन्होंने किसी से मदद की गुहार नहीं लगाई. 16 जनवरी 1970 को आर्थिक तंगी के कारण रामकृष्ण सेनेटोरियम मिशन हॉस्पिटल रांची में उनका निधन हो गया. मरणोपरांत उन्हें ‘गुमला गौरव’ से अलंकृत किया गया. परिवार के लोग वर्तमान में जीविका के लिए गुमला में प्रिटिंग प्रेस चला रहे हैं. स्वतंत्रता सेनानी के परिजनों की मांग है कि स्व राम प्रसाद की एक प्रतिमा जिले में स्थापित की जाए.

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