AJSU Foundation Day| जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) की स्थापना 1986 में जमशेदपुर में हुआ था. इसने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को एक नयी दिशा दी. 1989 में आजसू के 72 घंटे का झारखंड बंद और आर्थिक नाकेबंदी आज भी लोगों के जेहन में है. इस ऐतिहासिक आंदोलन को अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ माना जाता है. आजसू का उद्गम स्थल जमशेदपुर था, इसलिए स्वाभाविक रूप से आजसू के अलग झारखंड आंदोलन का केंद्र यहीं था.
जमशेदपुर में फूंका था अलग झारखंड के संघर्ष का बिगुल
जमशेदपुर में ही आजसू के अगुवा नेताओं ने आंदोलन की रणनीतियां बनायीं और यहीं से संघर्ष का बिगुल फूंका. इसकी गूंज पूरे झारखंड में सुनी गयी. हर तरफ आंदोलन की आग फैल गयी. जमशेदपुर ने झारखंड राज्य के सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. इस संगठन का उद्देश्य झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना था, जो बिहार से अलग होकर एक स्वतंत्र रूप से अपनी पहचान बना सके.
आजसू के गठन ने झारखंड आंदोलन को दी नयी ऊर्जा
आजसू के गठन के साथ ही झारखंड आंदोलन को एक नयी ऊर्जा और दिशा मिली. छात्रों और युवाओं ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिससे इसे व्यापक जनाधार मिला. आजसू ने अपने शुरुआती दिनों से ही आक्रामक और रणनीतिक तरीके से आंदोलन को आगे बढ़ाया. इसके नेताओं ने न केवल सभाएं और रैलियां आयोजित कीं, बल्कि आम जनता को भी इस आंदोलन से जोड़ा.
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आजसू के आह्वान पर होने लगे बंद-प्रदर्शन
उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता ने आंदोलन को एक जन-आंदोलन में तब्दील कर दिया. आजसू के आह्वान पर होने वाले बंद और प्रदर्शन झारखंड की सड़कों पर आम बात हो थी. इसने तत्कालीन सरकारों पर दबाव बनाने का काम किया.
आर्थिक नाकेबंदी ने देश का ध्यान अपनी ओर खींचा
आजसू के इतिहास में वर्ष 1989 का 72 घंटे का झारखंड बंद और आर्थिक नाकेबंदी मील का पत्थर साबित हुए. इस अभूतपूर्व आंदोलन ने पूरे देश का ध्यान झारखंड की तरफ खींचा. 72 घंटे के बंद के दौरान, झारखंड के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों में जनजीवन पूरी तरह ठप हो गया था. सड़कों पर वाहनों की आवाजाही बंद थी, दुकानें बंद थीं और सरकारी कार्यालयों में सन्नाटा पसरा था.
आर्थिक नाकेबंदी ने सरकार को हिलाकर रख दिया
आंदोलन का उद्देश्य झारखंड से बाहर जाने वाले खनिज संसाधनों और अन्य उत्पादों के प्रवाह को रोकना था. इस नाकेबंदी ने सरकार को हिलाकर रख दिया, क्योंकि इससे राज्य और केंद्र दोनों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा था. यह आंदोलन इतना प्रभावी था कि इसे अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में एक निर्णायक लड़ाई के रूप में याद किया जाता है. इसने सरकार को झारखंड राज्य के गठन की दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया.
एक नजर : आजसू संगठन पर
- शहीद निर्मल कुमार महतो, आजसू के संरक्षक थे.
- सूर्यसिंह बेसरा, आजसू के संस्थापक
- प्रभाकर तिर्की, आजसू के संस्थापक अध्यक्ष थे
- हरिशंकर महतो, संस्थापक सदस्य, आजसू
- स्व बबलू मुर्मू, पूर्व महासचिव, संस्थापक सदस्य, आजसू
- कुंती बेसरा, संस्थापक सदस्य, आजसू
- स्व. सुसेन महतो, संस्थापक अध्यक्ष, सिंहभूम जिला
- गोपाल बनर्जी, संस्थापक महासचिव, आजसू सिंहभूम जिला
- सुरेश चंद्र मुर्मू, संस्थापक सदस्य, आजसू घाटशिला
- आस्तिक महतो, आजसू के संस्थापक सदस्य जमशेदपुर
आजसू के सलाहकार (थिंक टैंक )
- स्व पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा, पूर्व कुलपति, रांची विश्वविद्यालय
- स्व बीपी केशरी, पूर्व चेयरमैन, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा
- स्व पशुपति प्रसाद महतो, पूर्व डायरेक्टर , एंथ्रोपोलोजी सर्वे ऑफ इंडिया
- स्व निर्मल मिंज, पूर्व प्राचार्य, गोसनर कॉलेज रांची
- डॉ संजय बसु मलिक
- अधिवक्ता रश्मि कात्यान समेत अन्य
कोल्हान प्रमंडल (पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला) के लीडर
- प्रो श्याम चरण मुर्मू
- कान्हू सामंत
- फारुख आजम
- प्रो नजम अंसारी
- मंगल सिंह बोबोंगा, पूर्व विधायक
- दीपक बिरूआ, मंत्री झारखंड सरकार
- नरेश कुमार मुर्मू
- सागेन हांसदा
- बुधराम सोय
- रवींद्रनाथ मुर्मू
- बीरसिंह सुरेन
- दामु बानरा
- ज्योत्सना तिर्की
- शकुंतला कंडुलना
- पंकज मंडल
- शहीद सुनील कुमार महतो, पूर्व सांसद समेत अन्य
ओडिशा के मयूरभंज से
- खेलाराम माहली, पूर्व विधायक, आजसू
- सुदाम मरांडी, पूर्व विधायक
- सायबा सुशील कुमार हांसदा, पूर्व विधायक
- रामचंद्र हांसदा, पूर्व सांसद
- श्याम चरण हांसदा, पूर्व विधायक
- नवचरण माझी, वर्तमान सांसद
- बिडार माझी, आजसू नेतृत्वकर्ता
- शिवाजी मलिक, आजसू नेतृत्वकर्ता
- हरे कृष्णा मंडल, आजसू फाइटर
पश्चिम बंगाल से
- बादल महतो
- प्रीति महतो
- लुसा मुर्मू
- रीना राणा
- मानस सरकार समेत अन्य
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