चाकुलिया में गरजे चंपाई सोरेन, धर्मांतरण और आदिवासियों के अस्तित्व पर कह दी ये बड़ी बात

Champai Soren in Chakulia: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन चाकुलिया के टाउन हॉल में रविवार को खूब गरजे. उन्होंने कहा कि धर्मांतरण कर चुके लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं लेने देंगे. उन्होंने कहा कि आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि संताल परगना में तेजी से धर्मांतरण हो रहा है, क्योंकि आदिवासी समाज के लोग अपनी परंपरा से दूर हो रहे हैं.

By Mithilesh Jha | April 20, 2025 8:03 PM
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Champai Soren in Chakulia: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता चंपाई सोरेन ने धर्मांतरण करने वालों और आदिवासी समाज के अस्तित्व को लेकर बड़ी बात कह दी है. चाकुलिया के टाउन हॉल में आयोजित आदिवासी महासम्मेलन को संबोधित करते हुए चंपाई सोरेन ने आदिवासी समाज का आह्वान किया कि वे धर्मांतरण के खिलाफ एकजुट हों. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के अस्तित्व और आत्म-सम्मान के आंदोलन को वह मुकाम तक पहुंचाकर रहेंगे. कोल्हान टाईगर ने कहा, ‘जिस आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू, पोटो हो, टाना भगत एवं भगवान बिरसा मुंडा ने बलिदान दिया, उसे हम यूं ही मिटने नहीं देंगे. अगर हम अभी भी नहीं चेते, तो भविष्य में हमारे जाहेर थानों, सरना स्थलों एवं देशाउली में पूजा करने वाला कोई नहीं बचेगा.’

‘संविधान ने आदिवासियों को दिया है आरक्षण का अधिकार’

आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा और भारत जकात मांझी परगना महाल द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चंपाई सोरेन ने कहा कि भारत के संविधान ने आरक्षण का अधिकार आदिवासियों को दिया है. उन्होंने कहा, ‘जो लोग हमारी परंपराओं तथा जीवन शैली को छोड़ चुके हैं, उन्हें इसमें अतिक्रमण करने का कोई अधिकार नहीं है.’ वहां मौजूद हजारों लोगों ने दोनों हाथ उठाकर चंपाई सोरेन का पुरजोर समर्थन किया.

संताल परगना और छोटानागपुर में तेजी से बढ़ रहा है धर्मांतरण – चंपाई सोरेन

चंपाई सोरेन ने आदिवासी समाज के मांझी परगना, पाहन, पड़हा राजा, मानकी-मुंडा आदि को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि आज संताल परगना और छोटानागपुर क्षेत्र में धर्मांतरण तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि आदिवासी समाज की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था ध्वस्त हो रही है. उन्होंने समाज के पारंपरिक ग्राम प्रधानों, अगुवाओं तथा धर्मगुरुओं का आह्वान किया कि वे आगे आकर समाज को बचाने की इस लड़ाई में शामिल हों.

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साहिबगंज, राजमहल, दुमका और पाकुड़ में भूमिपुत्रों की स्थिति दयनीय – कोल्हान टाईगर

संताल परगना के हालात का जिक्र करते हुए कोल्हान टाईगर ने कहा कि साहिबगंज, राजमहल, दुमका और पाकुड़ जैसी जगहों पर भूमिपुत्रों की स्थिति दयनीय है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों के लिए आरक्षित साहिबगंज की जिला परिषद अध्यक्ष सीट से जीती महिला के पति मुस्लिम हैं. उन्होंने कहा, ‘जब दूसरे समाज में शादी के बाद हमारे समाज में बेटियों का जीते-जी अंतिम संस्कार कर दिया जाता है, तो फिर ये लोग हमारे समाज के अधिकारों में अतिक्रमण कैसे कर रहे हैं?’

‘आदिवासियों की छिन गयी डेढ़ सौ एकड़ से अधिक जमीन’

चंपाई सोरेन ने कहा, ‘जब आदिवासी समाज में शादी के बाद बेटियों को पैतृक संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता और उन्हें सारे अधिकार ससुराल में मिलते हैं, तो एसपीटी एक्ट लागू रहने के बावजूद इन बांग्लादेशी घुसपैठियों को जमाई टोला बनाने के लिए जमीन उपलब्ध करवाने वाले कौन लोग हैं?’ उन्होंने सरायकेला-खरसावां जिले के कपाली के बांधगोड़ा गांव का उदाहरण देते हुए कहा कि सीएनटी एक्ट लागू होने के बावजूद वहां भी आदिवासियों की डेढ़ सौ एकड़ से अधिक जमीन छीनी जा चुकी है. इसे रोकना जरूरी है.

कांग्रेस ने सरना कोड हटाया, कार्तिक उरांव के डीलिस्टिंग बिल को ठंडे बस्ते में डाला – चंपाई

हॉल में लगातार गूंज रही तालियों की गड़गड़ाहट के बीच झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि राज्य की तथाकथित अबुआ सरकार जिस कांग्रेस के साथ गठबंधन में है, उसने हमेशा आदिवासियों को धोखा दिया है. सन् 1961 में आदिवासी धर्म कोड हटवाने वाली और झारखंड आंदोलन के दौरान कई बार आदिवासियों पर गोली चलवाने वाली कांग्रेस ने, महान आदिवासी नेता कार्तिक उरांव के डीलिस्टिंग बिल को 322 सांसदों तथा 26 राज्यसभा सांसदों द्वारा लिखित समर्थन के बावजूद, ठंडे बस्ते में डाल दिया था.

पंडित रघुनाथ मुर्मू को चंपाई सोरेन ने दी श्रद्धांजलि

कार्यक्रम से पहले पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने वीर सिदो-कान्हू तथा संताली भाषा के ओलचिकी लिपि के आविष्कारक पंडित रघुनाथ मुर्मू की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित किये. इसके बाद उन्होंने चाकुलिया स्थित दिशोम जाहेर गढ़ में पूजा-अर्चना की. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मांझी परगना, आदिवासी समाज के अगुवा, पारंपरिक ग्राम प्रधान तथा हजारों आम लोग उपस्थित थे.

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