कोल्हान की 14 सीटों पर परिवारवाद : अधिकतर नेता ने रिश्तेदार को बनाया उत्तराधिकारी

Jharkhand Assembly Election 2024: झारखंड के कोल्हान की 14 सीटों में से अधिकतर पर परिवारवाद हावी है. जानें किस सीट पर किस परिवार का रहा है दबदबा.

By Mithilesh Jha | November 8, 2024 7:39 AM
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Jharkhand Assembly Election 2024|जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : झारखंड के कोल्हान की राजनीति में परिवार का दबदबा काफी पुराना है. राष्ट्रीय पार्टी हो या क्षेत्रीय दल, सभी ने परिवारवाद को बढ़ावा दिया है. अपने परिवार के सदस्य को या किसी रिश्तेदार को अपना उत्तराधिकारी बनाया या बनाने की कोशिश की. लोकसभा की चाईबासा-जमशेदपुर सीट और कोल्हान की 14 विधानसभा सीट भी परिवारवाद की राजनीति से अछूती नहीं रही है.

जमशेदपुर से पति की जगह पत्नी बनी सांसद

जमशेदपुर लोकसभा सीट पर सांसद पति-पत्नी के रूप में शैलेंद्र महतो-आभा महतो और सुनील महतो-सुमन महतो का नाम दर्ज है. झामुमो से शैलेंद्र महतो ने 1989-91, भाजपा से आभा महतो 1998-99 में जीत हासिल की थी. 2004 में आभा महतो को झामुमो के सुनील महतो ने पराजित किया. 2007 में सुनील महतो की बाघुड़िया में हत्या के बाद उनकी पत्नी सुमन महतो जमशेदपुर से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनीं.

पूर्वी सिंहभूम की 6 में 3 सीटें परिवारवाद से अछूती

पूर्वी सिंहभूम जिले की 6 में से 3 जमशेदपुर पश्चिमी, पोटका और जुगसलाई विधानसभा सीट अब तक परिवारवाद से अछूती रही है. बहरागोड़ा और घाटशिला में इसका असर दिखता है. कमोबेस यही हाल पश्चिमी सिंहभूम की 5 और सरायकेला-खरसावां की 3 सीटों पर देखने को मिलता है. जमशेदपुर पूर्वी भी परिवारवाद से अछूती सीट थी, लेकिन इस बार रघुवर दास की पुत्रवधु पूर्णिमा साहू को टिकट मिलने के बाद इस सूची से यह सीट बाहर हो गयी.

भाजपा के टिकट पर 5 बार विधायक बने एमपी सिंह

जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा में परिवारवाद नहीं रहा है. भाजपा से पांच बार विधायक रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं वित्त मंत्री रहे एमपी सिंह के भाई एपी सिंह ने 1991 में जमशेदपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर दूसरी बार चुनाव लड़ रहे शैलेंद्र महतो से हार का सामना करना पड़ा था.

घाटशिला से चुनाव लड़ रहे हैं चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन

घाटशिला सीट से 1967 में झारखंड पार्टी से विधायक बने श्याम मुर्मू के पुत्र बैजू मुर्मू ने वर्ष 2000 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा. हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली. बैजू मुर्मू को भाजपा से टिकट दिलाने में झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने अहम भूमिका निभाई थी. इस बार के चुनाव में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अपने पुत्र बाबूलाल सोरेन को टिकट दिलाने में सफल रहे.

पोटका में विधायकों के परिवार को नहीं मिला चुनाव लड़ने का मौका

पोटका विधानसभा से पूर्व विधायक हाड़ीराम सरदार के पुत्र मनोज सरदार (भाजपा) और विधायक सनातन माझी के पुत्र बाबू माझी (झामुमो) राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन उन्हें फिलहाल चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला.

निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं दुलाल भुइयां के पुत्र विप्लव भुइयां

जुगसलाई विधानसभा से झामुमो के विधायक रहे मंगल राम की बेटी चुनाव लड़ना चाहतीं थीं, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. इस बार पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां के पुत्र विप्लव भुइयां निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

बहरागोड़ा में लंबे समय से परिवारवाद रहा है हावी

बहरागोड़ा सीट पर पारिवारिक राजनीति को बढ़ावा देने का दौर सबसे लंबा रहा है. बहरागोड़ा से झारखंड पार्टी के विधायक किशोर मोहन उपाध्याय ने अपने भतीजे देवीपदो उपाध्याय को प्रमोट कर विधायक बनाया. इसके बाद वर्ष 1998 में समता पार्टी से भाजपा में शामिल हुए और वर्ष 2000 और वर्ष 2005 में लगातार 2 बार चुनाव जीतने वाले झारखंड के पहले स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ दिनेश षाड़ंगी ने अपने पुत्र कुणाल षाड़ंगी को वर्ष 2014 में प्रमोट किया. झामुमो से पहली बार झारखंड विधानसभा भेजा. डॉ षाड़ंगी ने लगातार 2 चुनाव में झामुमो प्रत्याशी विद्युत वरण महतो को पराजित किया, लेकिन वर्ष 2009 में विद्युत वरण महतो ने उन्हें हराकर अपनी हार का बदला ले लिया.

सरायकेला जिले की 3 सीट में से 2 पर परिवार करता रहा है नेतृत्व

सरायकेला-खरसावां जिले में 3 विधानसभा सीटें हैं. इसमें खरसावां की सीट पर परिवारवाद हावी नहीं रहा है. खरसावां (एसटी) विधानसभा से भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे अर्जुन मुंडा ने प्रतिनिधित्व किया. उनके सीट छोड़ने के बाद चर्चा रही कि उनकी पत्नी मीरा मुंडा वहां से चुनाव लड़ेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मीरा मुंडा भाजपा के टिकट पर पोटका (एसटी) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहीं हैं.

ईचागढ़ (एसटी) विधानसभा सीट जो चांडिल के नाम से जानी जाती थी, वहां से 1957 में धनंजय महतो ने चुनाव जीता था. इसके बाद 2000 में उनके पुत्र कार्तिक महतो ने आजसू पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें निराशा हाथ लगी. इस सीट पर पहले निर्मल महतो ने चुनाव लड़ा. उसके बाद छोटे भाई सुधीर महतो ने. सुधीर महतो के निधन के बाद उनकी पत्नी सविता महतो ने जीत हासिल की.

सरायकेला विधानसभा (एसटी) सीट पर कृष्णा मार्डी ने चुनाव जीतने के बाद 1991 में चाईबासा लोकसभा सीट के लिए पर्चा दाखिल किया. झामुमो प्रत्याशी के रूप में वे जीत गये. इसके बाद उन्होंने पत्नी मोती मार्डी को प्रत्याशी बनाने का प्रयास किया. मोती मार्डी और चंपाई सोरेन में सिंबल को लेकर विवाद हो गया. चंपाई सोरेन जीत गये और मोती मार्डी को हार का सामना करना पड़ा. इस बार चंपाई सोरेन सरायकेला (एसटी) विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

पश्चिमी सिंहभूम जिले की 5 सीटों पर दिखता है असर

पश्चिमी सिंहभूम में विधानसभा की 5 सीटें हैं. सभी 5 सीटें सुरक्षित हैं. मझगांव (एसटी) सीट पर परिवार की विरासत को आगे ले जाने की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि अब तक के जनप्रतिनिधियों में नहीं दिखी है.

चाईबासा (एसटी) सीट पर वर्ष 1977 में लोकसभा का चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल करने के बाद बागुन सुंब्रुई ने पत्नी मुक्तिदानी सुंब्रुई को वर्ष 1980 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाकर विधायक बनाया. वे बिहार की तत्कालीन डॉ जगन्नाथ मिश्रा की सरकार में मंत्री रहीं. बागुन के बेटे हिटलर ने भी चुनाव लड़ा.

जगन्नाथपुर (एसटी) सीट से विधायक रहे मधु कोड़ा ने सांसद बनने के बाद अपनी पत्नी गीता कोड़ा को विधायक बनाया. इसके बाद गीता कोड़ा ने लोकसभा चुनाव चाईबासा से लड़ा और जीत गयीं. मधु कोड़ा ने भी मझगांव से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गये थे.

चक्रधरपुर (एसटी) सीट से झारखंड आंदोलनकारी देवेंद्र माझी ने चुनाव लड़ा और विधायक बने. उनकी शहादत के बाद पत्नी जोबा माझी मनोहरपुर (एसटी) विधानसभा से चुनाव लड़ीं और जीत हासिल करती रहीं. लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उनके स्थान पर अब उनके पुत्र जगत माझी चुनाव लड़ रहे हैं.

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