झारखंड के इस सबसे पुराने कैंसर अस्पताल के 50 साल पूरे, अब यहां इस नयी तकनीक से होगा कैंसर का इलाज

झारखंड के सबसे पुराने कैंसर अस्पताल (मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल) एमटीएमएच के आज 50 साल पूरे हो रहे हैं. अब यहां सर्जरी से कैंसर का इलाज किया जाएगा.

By Guru Swarup Mishra | February 4, 2025 6:05 AM
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जमशेदपुर-झारखंड का सबसे पुराना कैंसर अस्पताल मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल (एमटीएमएच) 4 फरवरी 2025 को अपनी स्थापना के 50 साल पूरा करने जा रहा है. जमशेदपुर कैंसर सोसाइटी (पहले इंडियन कैंसर सोसाइटी) द्वारा इसकी स्थापना की गयी थी. टाटा संस के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा ने इसका उद्घाटन किया था. यह टाटा संस के पूर्व चेयरमैन सर दोरबाजी टाटा की पत्नी लेडी मेहरबाई टाटा के नाम पर संचालित हो रहा है. इस अस्पताल की शुरुआत मात्र 10 लाख रुपये में की गयी थी. इसमें 3 लाख रुपये सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट ने चंदा दिया था. टाउन प्लानर और चीफ आर्किटेक्ट आरएन मास्टर ने इसका डिजाइन किया था. 1975 में स्थापना के बाद से अस्पताल की उपचार सुविधाओं का विस्तार जारी है. इस अस्पताल में झारखंड के अलावा यूपी, बिहार, बंगाल, ओडिशा, मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों से मरीज इलाज कराने आते हैं. हर साल यहां ओपीडी में लगभग 25 हजार मरीजों का इलाज होता है. इंडोर पेशेंट के तौर पर 11 हजार मरीज आते हैं जबकि डे केयर के लिए करीब चार हजार मरीज आते हैं. 50 साल पूरा होने पर यहां एक और सुविधा शुरू की जा रही है. अब सर्जरी के जरिए कैंसर का इलाज संभव हो सकेगा. इसके अलावा प्रिवेंशन पर भी फोकस होगा.

2018 के बाद टाटा समूह ने अस्पताल को किया था अपग्रेड


टाटा ट्रस्ट ने 2018 में अस्पताल को अपग्रेड करने में मदद की थी. एमटीएमएच में कैंसर के लिए स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय दिशा निर्देशों के अनुरूप मानक उपचार उपलब्ध है. मरीज की देखभाल के लिए एमटीएमच और टीएमएच दोनों के डाक्टरों, नर्सिंग स्टाफ और स्वास्थ्य कर्मियों की समर्पित टीम है. एमटीएमएच अस्पताल का बुनियादी ढांचा आधुनिक है. कई कैंसर रोगी जमशेदपुर से बाहर जाने के बजाय स्थानीय स्तर पर इलाज कराने का विकल्प चुनते हैं. यहां एनएबीएच से एमटीएमएच को एक्रेडेशन किया गया है, जिसमें 130 बेड की क्षमता है. एनएबीएल से मान्यता प्राप्त लेबोरेटोरी के जरिये यहां टेस्टिंग का कार्य होता है, जबकि पीइटी और सीटी का भी तकनीक के जरिये इलाज होता है. प्रीतपाल पेलियेटिव केयर सेंटर (सुरी सेवा फाउंडेशन के सहयोग से संचालित) के सहयोग से कैंसर के मरीजों को उनके घरों तक सेवा दी जाती है. इस अस्पताल में मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी योजना, आयुष्मान भारत योजना जैसी तमाम योजनाओं का लाभ मिलता है.

अस्पताल की नयी सुविधाएं

डे केयर वार्ड
58 बेड वाले इस वार्ड में मरीजों को अस्पताल में दाखिला लेने की जरूरत नहीं है. वे सुबह आकर इलाज करायें और शाम को घर जा सकते हैं.
मेडिकल ऑनक्योलॉजी वार्ड
महिला व पुरुष के लिए 12-12 बेड का वार्ड. यहां भर्ती मरीजों को स्पेशल केयर के लिए व्यवस्था की गयी है.
रेडिएशन वार्ड
28 बेड के इस वार्ड में जिन कर्मचारियों को रेडिएशन थेरेपी द्वारा इलाज होता है, उनका यहां इलाज हो सकता है.
केबिन
अस्पताल के नये ब्लॉक में आठ केबिन बनाये गये हैं. मरीज चाहे तो अपने परिजनों के साथ भी यहां रह सकते हैं.
पेलिएटिव केयर वार्ड
आठ बेड के इस वार्ड में एडवांस स्टेज पर आ चुके कैंसर मरीजों के इलाज और उनकी विशेष रूप से देखभाल की व्यवस्था है.
पेट्स सिटी
झारखंड की एकमात्र मशीन यहां है. यह मशीन बतायेगी कि मरीज के शरीर में कहां-कहां कैंसर के सेल्स फैल चुके हैं. ये मशीन शरीर के सभी हिस्से का डायग्नोस्टिक कर कैंसर सेल्स की पहचान बतायेगा. इस मशीन की कीमत लगभग आठ करोड़ रुपये है. यहां लाये जाने वाले मरीज को फ्लोरो ऑक्सी फ्लोरो दवा देकर उसके कैंसर सेल्स को एक्टिव किया जायेगा. फिर पेट्स सिटी मशीन उन सेल्स को खत्म कर देगा.
ट्रू बिंब रेडिएशन मशीन
सिमेंस कंपनी द्वारा निर्मित रेडिएशन लिनेक्स एक्सीलेटर मशीन की कीमत लगभग 11 करोड़ रुपये है. पूर्वी भारत की यह एकमात्र मशीन है. इस मशीन के लिए अलग से आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है, जिसकी दीवार लगभग 18 इंच मोटी है. मरीज को इलाज के बाद यहीं बने वार्ड में एक घंटा बिताना होगा. यह मशीन शरीर के किसी भी हिस्से में कैंसर क्यों न हो? रेडिएशन द्वारा सीधे उस पर अटैक कर खत्म कर देगा.

लगातार बढ़ रहे हैं मरीज, सुविधा में होगी बढ़ोतरी : डायरेक्टर

एमटीएमएच के डायरेक्टर डॉ कोषी वर्गीस ने बताया कि एमटीएमएच में प्रतिवर्ष 30 हजार मरीज ओपीडी में आते हैं. इनमें से लगभग 11 हजार अस्पताल में भर्ती होते हैं. यहां प्रतिवर्ष चार हजार कैंसर के नये मरीज ओडिसा, नेपाल, पश्चिम बंगाल, जमशेदपुर, सरायकेला-खरसावां, रांची व हजारीबाग से आते हैं. वहीं, उन्होंने बताया कि इस अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों और नर्सिग स्टॉफ की संख्या दोगुनी की गयी है. इसके अलावा आठ विशेषज्ञ कंसल्टेंट डॉक्टर ओपीडी में मरीजों को देखेंगे. अस्पताल रिसर्च के लिए भी आइसीएमआर का प्रोग्राम लिया है. एमटीएमएच को और बेहतर बनाने की दिशा में सर्जरी की शुरुआत होगी, जिससे मरीजों का इलाज यहां संभव हो सकेगा.

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