महज सात साल में निर्मल महतो ने JMM को किया मजबूत, शिबू सोरेन के साथ कैसे थे उनके रिश्ते ?

Nirmal Mahto: शिबू सोरेन नर्मल महतो को अपने छोटे भाई की तरह मानते थे. 1980 में वे झामुमो में शामिल हुए और संगठन को मजबूत किया. बुधवार को उनकी 75वीं जयंती है.

By Sameer Oraon | December 25, 2024 12:43 PM
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Nirmal Mahto Birth Anniversary, जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : झारखंड अलग राज्य के नायक शहीद निर्मल महतो की जयंती आज है. उनकी जयंती उनके पैतृक गांव कदमा उलियान में ही नहीं, बल्कि समूचे झारखंड में धूमधाम से मनाया जा रहा है. लोग उन्हें सूदखोरी, वसूली, शोषण, अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए याद करेंगे. इसके साथ-साथ राज्य में गरीब-गुरबों की आवाज बनने व अलग पहचान वाले निर्मल महतो के बताये रास्तों पर चलने का संकल्प भी लेंगे. उनके सपनों का झारखंड बनाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देंगे. इधर, प्रभात खबर ने शहीद निर्मल महतो के आंदोलन के साथी, उनके करीबी व उनकी इकलौती बहन से बात की, जिन्होंने उनके संघर्ष के दिनों की यादें साझा कीं.

मधुर थे निर्मल महतो और शिबू सोरेन के बीच संबंध

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और झारखंड आंदोलनकारी रहे शहीद निर्मल महतो के बीच काफी मधुर संबंध थे. गुरुजी निर्मल महतो को अपने छोटे भाई के समान प्रेम व सम्मान करते थे. गुरुजी से निर्मल महतो छह साल छोटे थे. यही कारण था कि वे हमेशा सम्मान से उन्हें ”निर्मल बाबू” कहकर ही पुकारते थे. निर्मल महतो 1980 में झामुमो में शामिल हुए थे. महज सात साल में उन्होंने न केवल संगठन को मजबूत किया, बल्कि अपनी शहादत देकर उन्होंने झारखंड अलग राज्य का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया. भले ही उनकी शहादत के 13 साल बाद राज्य का गठन हुआ.

शिबू सोरेन ने रीगल मैदान में कहा था- निर्मल महतो का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा

निर्मल महतो की शहादत के दो दिनों बाद बिष्टुपुर रीगल मैदान (अब गोपाल) में आयोजित सभा में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने कहा था कि निर्मल महतो का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा, यह झारखंडियों को हमेशा याद रहेगा. यही कारण है कि न केवल केंद्रीय नेता, बल्कि जयंती समारोह और शहादत दिवस पर दूर-दराज से कार्यकर्ता, सामान्य जन मानस भी उनकी समाधि पर नमन के लिए पहुंचता है. बुधवार को शहीद निर्मल महतो की 75वीं जयंती पर भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचेंगे.

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पहली मुलाकात में एक-दूसरे की कद्र और बढ़ गयी : शैलेंद्र महतो

झारखंड आंदोलनकारी शैलेंद्र महतो ने बताया कि निर्मल महतो का झामुमो और शिबू सोरेन से जुड़ने का एक आधार गुवा गोलीकांड रहा. आठ सितंबर 1980 को गुवा में हुई पुलिस फायरिंग में 11 आदिवासी मारे गये थे. घटना में भुवनेश्वर महतो गिरफ्तार हो गये. पुलिस को बहादुर उरांव और उनकी (शैलेंद्र महतो) तलाश थी. तय हुआ कि चाईबासा में पुलिस कार्रवाई के विरोध में 28 अक्तूबर 1980 को एक बड़ी सभा होगी. जिसमें शिबू सोरेन, एके राय और विनोद बिहारी महतो को बुलाया जायेगा. श्री महतो ने कहा कि पंपलेट छपवाने की जिम्मेदारी उन्हें प्रदान की गयी. वे चक्रधरपुर से जमशेदपुर आये. निर्मल महतो ने दो-तीन दिन शैलेंद्र महतो को अपने घर पर रखा और पंपलेट छपवा कर दिये.

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खुद के लिए नहीं, दूसरों के लिए हर वक्त खड़े रहते थे निर्मल दा : सूर्य सिंह बेसरा

झारखंड आंदोलनकारी सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि जिस तरह शिबू सोरेन ने निर्मल महतो को आगे बढ़ाने का काम किया, उसी लाइन पर चलते हुए निर्मल दा ने उन्हें भी आगे बढ़ाया. उन्हें आजसू का अध्यक्ष बनाया. आंदोलन को धार देने के लिए असम भेजा. 1984 के अधिवेशन में शिबू सोरेन चाहते, तो अध्यक्ष बन सकते थे, लेकिन उन्होंने निर्मल दा को आगे बढ़ाया. निर्मल दा की सबसे बड़ी खासियत थी कि वे अपने लिए कभी कुछ नहीं बोलते थे, लेकिन दूसरों के लिए हमेशा खड़े रहते थे. इस दौरान आजसू का भी गठन हो चुका था.

शिबू सोरेन चाहते थे निर्मल महतो को सांसद विधायक बनाना

शिबू सोरेन चाहते थे कि निर्मल महतो भी सांसद-विधायक बनें. 1984 में रांची संसदीय क्षेत्र से निर्मल महतो को उतारा गया. वे चुनाव हार गये. 1985 के विधानसभा चुनाव में निर्मल महतो को ईचागढ़ से उतारा, वहां भी हार गये. निर्मल महतो को इसमें कोई रुचि नहीं थी, लेकिन शिबू सोरेन की इच्छा थी कि निर्मल महतो सांसद-विधायक बनें. बिहार में एक पद एमएलसी का खाली हुआ. शिबू सोरेन ने निर्मल दा से नामांकन को कहा. निर्मल महतो ने अपनी जगह छत्रपति शाही मुंडा को एमएलसी बनवा दिया था.

मां की निशानी देकर निर्मल दा ने एक बेटी की शादी टूटने से बचायी थी

जमशेदपुर और आसपास के इलाके में किसी पर अगर कोई मुसीबत में पड़ती थी, तो निर्मल महतो उसकी मदद के लिए आगे आते थे. विधायक सविता महतो ने एक वाक्या का जिक्र करते हुए कहा कि कदमा में एक बेटी की शादी टूटने से निर्मल दा ने बचा ली थी. परिवार के लोगों ने उन्हें बताया था कि एक बार पश्चिम बंगाल से बारात आयी थी. विवाह से पहले लड़का पक्ष के लोगों ने सोने की चेन की मांग कर दी. लड़के वालों ने साफ कह दिया कि शादी से पहले सोने की चेन नहीं मिली, तो विवाह नहीं होगा और बारात लौट जायेगी. निर्मल महतो को इसकी खबर मिली, तो वह तुरंत वहां पहुंचे. लड़की के पिता से कहा कि आप लड़के वालों से कह दें कि आपको सोने की चेन मिलेगी. निर्मल महतो ने अपने गले से सोने की चेन उतारी और लड़की के पिता को देते हुए कहा कि आप लड़के वालों को इसे दे दें. निर्मल दा ने जो सोने की चेन लड़की के पिता को दी, वह चेन उनकी मां (मेरी सास) ने उन्हें दी थी. इस सोने की चेन को वह हमेशा पहनते थे. मां की निशानी देकर किसी की बेटी की शादी कराने वाला किसी मसीहा से कम नहीं होता है.

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