बिरहोर जनजाति की पहली ग्रेजुएट बिटिया बनी रश्मि, जानें कैसे खींचा देश का ध्यान

PVTG News: झारखंड में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (पीवीटीजी) की संख्या सबसे अधिक है, जिनमें से लगभग 62 प्रतिशत संताल परगना क्षेत्र में रहते हैं. दलमा क्षेत्र में, जो फाउंडेशन के कार्यक्षेत्र के निकट है, 3 प्रमुख समुदाय निवास करते हैं – सबर, बिरहोर और पहाड़िया. अधिकांश पीवीटीजी समुदाय बेहद दुर्गम इलाकों में रहते हैं. विकास की मुख्यधारा से बहुत दूर. जंगलों से मिलने वाले संसाधनों के सहारे जीवन यापन करते हैं. रश्मि बिरहोर रामगढ़ जिले की रहने वाली है, जो अपने समुदाय की पहली ग्रेजुएट है.

By Mithilesh Jha | June 21, 2025 7:21 PM
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PVTG News| जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : रश्मि बिरहोर आज पूरे देश में चर्चा में हैं. आदिम जनजाति की इस बच्ची ने इतिहास रचा है. वह पीवीटीजी समुदाय में आने वाली बिरहोर जनजाति की वह पहली बच्ची है, जिसने स्नातक की परीक्षा पास की है. इसका श्रेय रश्मि के साथ-साथ टाटा स्टील फाउंडेशन की ओर से संचालित ‘आकांक्षा’ को भी जाता है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से प्रेरित रश्मि बिरहोर पढ़ने के लिए ‘आकांक्षा’ से जुड़ी. उसे सही गाइडलाइन और सुविधाएं मिलीं, जिसकी बदौलत उसने पहले 12वीं की परीक्षा पास की. फिर ग्रेजुएशन कम्प्लीट किया.

बिरहोर जनजाति की पहली स्नातक है रश्मि

रश्मि बिरहोर स्नातक की परीक्षा पास करने वाली इस जनजाति की पहली लड़की है. उसने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है. रामगढ़ जिले से शुरू हुआ रश्मि का यह सफर प्रेरणा देने वाला उदाहरण बन गया है. ‘आकांक्षा’ की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी. तब से फाउंडेशन ने 17 स्कूलों के साथ साझेदारी की और लगभग 524 पीवीटीजी समुदाय के बच्चों को बुनियादी एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंचने में मदद की है.

बालिका बिरहोर को मैट्रिक में मिले 82 प्रतिशत अंक

एक और उदाहरण है- पूर्वी सिंहभूम जिले के छोटा बांकी गांव की बालिका बिरहोर का. बालिका बिरहोर ने मैट्रिक की परीक्षा में 82 प्रतिशत अंक हासिल करके अपने समुदाय का नाम रोशन किया. महामारी के चलते 12वीं की परीक्षा में कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, बालिका ने अच्छा प्रदर्शन किया और आगे चलकर भारत के प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक, बेंगलुरु के नारायणा हृदयालय में नर्सिंग की पढ़ाई की. अभी वह अपना पाठ्यक्रम पूरा कर रही है.

बालिका बिरहोर को आगे बढ़ने में भाई ने की मदद

इस सफर में बालिका को उसके भाई का भरपूर समर्थन मिला. इन्होंने न केवल उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया, बल्कि माता-पिता को भी मनाया कि बालिका को घर से दूर पढ़ने का मौका दें. उसके सपनों को साकार करने में मदद करें. बालिका अकेली नहीं है. पिछले एक दशक में रश्मि और उसकी जैसी कई प्रेरणादायक कहानियां सामने आयीं हैं, जो बुनियादी शिक्षा के महत्व को एक बार फिर रेखांकित करती हैं.

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दुर्गम इलाकों में रहते हैं पीवीटीजी समुदाय के लोग

झारखंड में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (पीवीटीजी) की संख्या सबसे अधिक है, जिनमें से लगभग 62 प्रतिशत संताल परगना क्षेत्र में रहते हैं. दलमा क्षेत्र में, जो फाउंडेशन के कार्यक्षेत्र के निकट है, 3 प्रमुख समुदाय निवास करते हैं – सबर, बिरहोर और पहाड़िया. अधिकांश पीवीटीजी समुदाय बेहद दुर्गम इलाकों में रहते हैं. विकास की मुख्यधारा से बहुत दूर. जंगलों से मिलने वाले संसाधनों के सहारे जीवन यापन करते हैं.

पीवीटीजी समुदाय के कछ लोग खनन कार्य से जुड़े

अपनी कमजोर स्थिति के चलते वे अक्सर शराब या अन्य कुप्रथाओं का शिकार हो जाते हैं. आजीविका या विकास के अवसरों का लाभ उन्हें नहीं मिलता. घोर गरीबी से जूझते हुए, झारखंड में रहने वाले पीवीटीजी समुदायों के कई सदस्य विभिन्न संगठनों के साथ खनन क्षेत्र में काम करने लगे. इसी परिवर्तन के बीच, टाटा स्टील फाउंडेशन ने बच्चों और युवाओं को शिक्षा के लाभ से अवगत कराया और उन्हें प्रेरित किया कि वे शिक्षा को अपनी ताकत और आगे बढ़ने का हथियार बनाएं.

10 छात्रों से हुई थी ‘आकांक्षा’ की शुरुआत

धीरे-धीरे कई युवा छात्र आगे आने लगे, जो नियमित स्कूल जाने, साथियों के साथ खेलने और सीखने के लिए उत्सुक थे. कभी सिर्फ 10 छात्रों से आकांक्षा की शुरुआत हुई. आज इससे 500 से अधिक बच्चे जुड़े हैं. ये बच्चे अपनी तकदीर बदलने और अपने परिवार में पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी बनने का सपना साकार कर रहे हैं.

दुलमी की सरला बिरहोर ने मैट्रिक में प्राप्त किये थे 70% अंक

सरायकेला-खरसावां जिले के घाट दुलमी गांव की सरला बिरहोर ने वर्ष 2023 में होली क्रॉस चौका से मैट्रिक परीक्षा में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किये. सरला उन शुरुआती छात्रों में है, जो ‘आकांक्षा’ पहल से तब जुड़ी थी, जब वह केजी में थीं. वह न केवल अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दृढ़संकल्पित है, बल्कि अपने भाई-बहनों को भी प्रेरित कर रही है कि वे जीवन की राह बदलने और एक नया भविष्य गढ़ने के लिए शिक्षा को अपना हथियार बनाएं.

बिजय सबर ने 60 प्रतिशत अंक से पास की मैट्रिक परीक्षा

पुरुलिया जिले के फूलझोरे गांव के बिजय सबर ने सिदो कान्हू शिक्षा निकेतन से मैट्रिक परीक्षा में 60 प्रतिशत अंक हासिल किये और अब शिक्षक बनने का सपना देख रहा है. वह हालांकि अपने परिवार में पहली पीढ़ी का शिक्षार्थी नहीं है. उसकी बहन ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर ली है और अब सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही है.

महावीर सबर बेहतरीन फुटबॉल भी खेलते हैं

पूर्वी सिंहभूम के धूसरा गांव के महावीर सबर अपने परिवार में पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं, जो फुटबॉल के प्रति अपने जुनून के साथ-साथ पढ़ाई में भी आगे बढ़ रहा है. उसके भाई बेहद गरीबी के चलते पांचवीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके थे. मगर महावीर सभी मुश्किलों का सामना कर आगे बढ़ने और शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है.

बढ़ई की बेटी शकुंतला अपोलो स्कूल ऑफ नर्सिंग में कर रही पढ़ाई

छोटा बांकी गांव की शकुंतला बिरहोर ने अपनी शैक्षणिक यात्रा की शुरुआत भारत सेवा संघ आश्रम से की, जो धीरे-धीरे ‘आकांक्षा’ पहल तक पहुंची, जब उन्होंने चक्रधरपुर के कार्मेल स्कूल में दाखिला लिया. उनके पिता बढ़ई हैं. शकुंतला ने बायो साइंस को अपना प्रमुख विषय चुना, जिससे उसे अंततः चेन्नई के अपोलो स्कूल ऑफ नर्सिंग में प्रवेश मिल गया. भाषा संबंधी शुरुआती मुश्किलों के बावजूद शकुंतला ने हिम्मत नहीं हारी और अब वह जनरल नर्सिंग और मेडिसिन के अपने दूसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही है.

सेना में भर्ती होना चाहता है दिहाड़ी मजदूर परिवार का सुशील सबर

सरायकेला-खरसावां जिले के लुपुंगडीह गांव के सुशील सबर एक दिहाड़ी मजदूर परिवार से है. इतिहास विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त कर आगे चलकर सेना में भर्ती होना चाहता है. सुशील के इस प्रयास से प्रेरित होकर उनके भाई-बहन भी पढ़ाई को प्राथमिकता दे रहे हैं. उसी के नक्श-ए-कदम पर चलने का प्रयास कर रहे हैं.

आदिवासी बच्चों को आंकांक्षा से जोड़ने में लगे कई साल

ये सभी उपलब्धियां एक या दो साल में हासिल नहीं हुईं. इसके लिए कई साल लगे. झिझक तोड़ने, विश्वास स्थापित करने और जीवन में बदलाव लाने वाले विचारों का आदान-प्रदान करने में. शुरुआत में अधिकांश छात्र भाग जाते थे या बात करने से इंकार कर देते थे, क्योंकि भाषा भी एक बाधा थी. मगर धीरे-धीरे वे छात्रावास के माहौल में ढलने लगे, पढ़ाई में मन लगाने लगा और अपने सहपाठियों के साथ सीखने लगे, जिससे यह अनुभव और भी समृद्ध एवं रोमांचक बन गया.

बच्चों के विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाता है ‘आकांक्षा’

टाटा स्टील फाउंडेशन ‘आकांक्षा’ पहल में समग्र दृष्टिकोण अपनाता है, जिसमें बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन, सुरक्षित आवास और सुगम परिवहन जैसी मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित की जाती हैं. इससे वे पूरी तल्लीनता के साथ व्यक्तिगत विकास और शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल कर अपने सपनों को साकार कर पाते हैं. रश्मि बिरहोर ‘आकांक्षा’ परियोजना से मैट्रिक पास करने वाली पहली पीवीटीजी छात्रा रही. अब उसने इतिहास में स्नातक की डिग्री पूरी कर ली है. वह सरकारी नौकरी करना चाहती है और गरीबी एवं सामाजिक उपेक्षा के चक्र को तोड़ना चाहती है.

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