Sarhul 2024: जमशेदपुर में सरहुल पर दिखी आदिवासियों की एकता व समृद्ध संस्कृति

Sarhul 2024: झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में सरहुल पर आदिवासियों की एकता व समृद्ध संस्कृति दिखी. इस मौके पर समाज के लोगों ने अपनी बस्ती व गांवों से निकलकर अपनी परंपराओं को याद किया.

By Guru Swarup Mishra | April 11, 2024 10:15 PM
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Sarhul 2024: जमशेदपुर: सरहुल पर्व आदिवासियों की परंपरा, संस्कृति और समृद्धि का प्रतीक है. गुरुवार को सरहुल पर्व पर समाज के लोगों ने अपनी बस्ती व गांवों से निकलकर अपनी परंपराओं को याद किया और उत्सव मनाया. जनजातीय समुदाय के लोगों ने अपने परंपरागत गानों और नृत्यों के माध्यम से अपनी धरोहर को जीवंत किया. केंद्रीय सरहुल पूजा समिति के मुख्य लाइसेंसधारी गंगाराम तिर्की के नेतृत्व में सीतारामडेरा आदिवासी उरांव समाज भवन प्रांगण से शोभायात्रा निकाली गयी. इसमें बिरसानगर, बागुनहातु, उलीडीह, बागबेड़ा समेत अन्य जगहों के श्रद्धालुओं का जत्था भी शामिल हुआ.

ढोल-नगाड़ों पर किया नृत्य
उरांव, मुंडा, हो समेत अन्य जनजातीय समुदाय के लोगों ने भी इस अवसर पर शोभायात्रा निकाली. इस यात्रा में उन्होंने अपने परंपरागत वस्त्र पहने और ढोल-नगाड़ा की ध्वनि के साथ नृत्य किया. इस यात्रा ने केवल समाज की एकता और समरसता को बढ़ाया, बल्कि सामाजिक धरोहर को भी समर्थन प्रदान किया. यह एक ऐसा मौका था, जब लोग अपनी परंपराओं को मानते हुए एक साथ आत्मीयता से दिखे.

अन्य समुदायों ने भी पर्व को समझा
सरहुल पर्व के बहाने जनजातीय समुदायों के लोगों ने न केवल अपनी परंपराओं को जीवंत किया, बल्कि अपने समूह को और भी सशक्त और संगठित बनाने के लिए प्रयास किया. इसके अलावा यह एक अवसर था, जब अन्य समुदायों के लोगों को भी इस महत्वपूर्ण त्योहार को समझने और समर्थन करने का मौका प्राप्त हुआ.

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इन जगहों से होकर निकली सरहुल शोभायात्रा
सरहुल शोभायात्रा पुराना सीतारामडेरा से शुरू होकर लाको बोदरा चौक, सीतारामडेरा थाना, एग्रिको लाइट सिग्नल चौक, भालुबासा, कुम्हार पाड़ा, रामलीला मैदान, साकची मुख्य गोलचक्कर, बसंत सिनेमा रोड, कालीमाटी रोड, टुइलाडुंगरी गोलचक्कर, गोलमुरी होते हुए पुनः सीतारामडेरा आदिवासी उरांव समाज भवन प्रांगण पहुंचकर एक सभा में तब्दील हो गयी.

सरना स्थलों में हुई पूजा-अर्चना
शोभायात्रा से पहले गुरुवार को शहर के विभिन्न सरना स्थलों पर सरहुल पूजा की गयी. इसमें सीतारामडेरा में बुधु भूमिज, बिरसानगर में महावीर कुजुर, बागबेड़ा में बुधराम टोप्पो, उलीडीह में गोपाल टोपनो, शंकोसाई में लक्ष्मण मिंज व लक्ष्मीनगर में अनादि उरांव के नेतृत्व में चाला आयो की पूजा-अर्चना की गयी. सुबह 7 बजे से ही सरना स्थलों में श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी हुई थी. श्रद्धालुओं ने चाला आयो से अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य, उन्नति व प्रगति का आशीष मांगा. सरना स्थल में कई लोगों ने परिवार समेत इष्ट देवताओं के चरणों में माथा टेका.

महिलाओं ने सरई फूल को अपने जूड़े में खोंसा
सरहुल पर्व पर महिलाओं ने सरई फूल को अपने जूड़े में खोंसकर न केवल अपने समुदाय की परंपरा को जारी रखा, बल्कि उन्होंने अपनी समाज की विशेषता को भी अभिव्यक्त किया. उनके द्वारा सरई फूल को जूड़े में खोंसना उनकी समृद्धि और उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक होता है. सरहुल शोभायात्रा में बूढ़े बुजुर्ग, युवा व बच्चों ने भी सरई फूल को अपने कानों में सजाया था. सरई फूल को अपने कानों में सजाकर पारंपरिक नृत्य किया.

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