टाटा स्टील ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अपने नोवामुंडी आयरन ओर माइंस में देश की पहली ऑल वीमेन शिफ्ट की शुरुआत की है. खनन जैसे पुरुष-प्रधान क्षेत्र में महिलाओं को न केवल दिन में, बल्कि नाइट शिफ्ट में भी कार्य करने का अवसर प्रदान किया गया है. यह पहल भारतीय खनन उद्योग में एक मिसाल बन चुकी है.
2100 में से हुआ 24 महिलाओं का चयन
महिलाओं को इस जिम्मेदारी के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया. शुरुआत में महिलाएं इस क्षेत्र में आने में हिचक रहीं थीं, कुछ ही महिलाएं आगे आईं. लेकिन कंपनी की ओर से चलाये गये जागरुकता और प्रशिक्षण अभियानों के बाद बड़ी संख्या में महिलाएं इससे जुड़ने लगीं. नोवामुंडी जैसे अपेक्षाकृत पिछड़े क्षेत्र से 2100 महिलाओं ने आवेदन दिया, जिनमें से 24 का चयन किया गया. चयनित महिलाओं को माइनिंग से संबंधित सभी आवश्यक मशीनों के संचालन की गहन ट्रेनिंग दी गयी.
पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना गर्व की बात : सरोज दिग्गी
सरोज दिग्गी, टाटा स्टील की ”तेजस्विनी” पहल के पहले बैच की सदस्य रहीं हैं. वह बताती हैं कि हमारे लिए यह गर्व की बात है कि हम पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं. नाइट ड्यूटी हमारे लिए कोई चुनौती नहीं है, क्योंकि कंपनी की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं. यहां महिलाओं के लिए जरूरी हर सुविधा उपलब्ध करायी जाती है.
वीमेंस इन माइनिंग की शुरुआत करना चुनौती थी : जीएम
नोवामुंडी माइंस के जीएम अतुल भटनागर ने बताया कि माइनिंग जैसे क्षेत्र में महिलाओं को शामिल करना और उन्हें नाइट शिफ्ट में काम पर लगाना अपने आप में चुनौतीपूर्ण था. लेकिन कंपनी के विजन और महिलाओं की प्रतिबद्धता ने इसे संभव बनाया. अब यह पहल देशभर में एक उदाहरण बन चुकी है.
नोवामुंडी माइंस की यह पहल न केवल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस कदम है, बल्कि यह माइनिंग सेक्टर में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में एक नई शुरुआत भी है.
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