बिना प्रशिक्षक सूना है मिनी स्टेडियम, कुड़ू की खेल प्रतिभाएं रह गयीं उपेक्षित

बिना प्रशिक्षक सूना है मिनी स्टेडियम, कुड़ू की खेल प्रतिभाएं रह गयीं उपेक्षित

By SHAILESH AMBASHTHA | July 29, 2025 9:29 PM
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कुड़ू़ खेल प्रतिभाओं को निखारने के उद्देश्य से प्रखंड के दो स्थानों पर लगभग दो करोड़ रुपये की लागत से मिनी स्टेडियम का निर्माण कराया गया था. निर्माण के बाद दोनों स्थानों पर खेल कीट तो प्रदान किये गये, लेकिन प्रशिक्षक की प्रतिनियुक्ति नहीं होने के कारण प्रतिभाएं सामने नहीं आ पा रहीं हैं. साथ ही देखरेख के अभाव में दोनों स्टेडियम जर्जर होते जा रहे हैं. बताया गया कि वर्ष 2021 में प्रखंड के माराडीह गांव में लगभग 98 लाख रुपये की लागत से एक मिनी स्टेडियम का निर्माण कराया गया था. इसमें खेल मैदान, दर्शकों के लिए गैलरी, एक पवेलियन, बास्केटबॉल और वॉलीबॉल का मैदान बनाया गया था. सभी प्रकार के खेल कीट भी दिये गये थे. लेकिन न तो प्रशिक्षक की प्रतिनियुक्ति हुई और न ही देखरेख के लिए केयरटेकर की. दो वर्ष बाद ब्लॉक मोड़ स्थित संत विनोबा भावे खेल मैदान में लगभग 96 लाख रुपये की लागत से दूसरा मिनी स्टेडियम बनाया गया. इस मैदान में पहले कई प्रखंड, जिला और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं आयोजित होती थीं. इसी को ध्यान में रखते हुए यहां स्टेडियम का निर्माण हुआ. खेल कीट भी उपलब्ध कराये गये, लेकिन एक वर्ष के भीतर ही कई कीट चोरी हो गये और कुछ अभाव में क्षतिग्रस्त हो गये. माराडीह स्थित मिनी स्टेडियम विद्यालय को हैंडओवर नहीं किया गया : गांधी मेमोरियल टेन प्लस टू उच्च विद्यालय, माराडीह के खेल शिक्षक ने बताया कि माराडीह स्थित मिनी स्टेडियम विद्यालय को हैंडओवर नहीं किया गया. नतीजतन यह स्पष्ट नहीं है कि किन खेल सामग्रियों की आपूर्ति की गयी थी और वे अब कहां हैं. इसी तरह स्टेडियम निर्माण कराने वाली क्रियान्वयन एजेंसी को ही खेल सामग्री सौंपी गयी थी. विभाग द्वारा जिला प्रशासन को प्रशिक्षक की प्रतिनियुक्ति के लिए अवगत कराया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. गांवों में छिपी प्रतिभाओं को आगे लाने वाला कोई नहीं : गुरु के बिना खिलाड़ियों को तराशने का प्रयास अधूरा रह गया है. जिला प्रशासन का उद्देश्य था कि प्रखंड के गांवों में छिपी प्रतिभाओं को तराशकर जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया जाये. लेकिन देखरेख और योजना के अभाव में यह सपना अधूरा ही रह गया. आज खिलाड़ी कीचड़ भरे मैदानों में अभ्यास करने को मजबूर हैं, जबकि करोड़ों की लागत से बने स्टेडियम बदहाली का शिकार हैं.

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