पाकुड़. हरिणडंगा हाई स्कूल मैदान में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन भरत चरित्र की कथा का वर्णन किया गया. अयोध्या से आए पारसमणि महाराज ने वर्णन किया. भरत चरित्र की कथा सुनकर श्रोता भावविभोर हो गए. कथावाचक पारसमणि महाराज ने भरत चरित्र की कथा सुनाते हुए कहा कि भरत चरित्र की कथा, जिसे रामचरितमानस में भी वर्णित किया गया है, भगवान राम के प्रति भरत के अटूट प्रेम, समर्पण और त्याग की कहानी है. इस कथा में, भरत को एक आदर्श भाई और भक्त के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने बड़े भाई राम के प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखते हैं. भरत, भगवान राम के प्रति गहरी भक्ति रखते थे और उनके प्रति समर्पित थे. जब राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ, तो भरत ने अपनी मां कैकेयी के कहने पर राज्य स्वीकार करने से इनकार कर दिया और राम की चरण पादुका लेकर 14 वर्षों तक उनकी ओर से राज्य का संचालन किया. भरत ने अपने भाई राम के प्रति इतना प्रेम प्रदर्शित किया कि उन्होंने अपने सुख-दुख को भी राम की खुशी के अधीन कर दिया. यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम, समर्पण और त्याग क्या होता है. भरत का चरित्र हमें सिखाता है कि हमें अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के प्रति प्रेम और सम्मान रखना चाहिए.
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