निखिल सिन्हा, छतरपुर
छतरपुर प्रखंड के चराई, खजूरी, कवल, पिंडराही, कंचनपुर समेत कई पंचायतों से सैकड़ों मजदूर हर वर्ष धान रोपाई और कटाई के मौसम में बिहार के विभिन्न जिलों में पलायन कर रहे हैं. इन मजदूरों का न कोई पंजीकरण होता है, न ही प्रशासन के पास उनकी कोई जानकारी होती है. धान की खेती के लिए बिहार के लोग यहां पहुंचते हैं और मजदूरों को गाड़ियों में जानवरों की तरह भरकर ले जाया जाता है. खजूरी पंचायत के कैलाश भुइयां ने बताया कि बाहर ले जाये गये मजदूरों के साथ शोषण और दुर्व्यवहार आम बात है. फुसलाकर ले जाने के बाद उन्हें तय मजदूरी से कम भुगतान किया जाता है और वे अपने पूरे परिवार के साथ खानाबदोश जीवन जीने को मजबूर होते हैं.
स्थानीय रोजगार की कमी बनी पलायन की वजह
मजदूरों के साथ गुलामों जैसा होता है व्यवहार
फोटो 21 डालपीएच- 12 प्रखंड क्षेत्र के शिवदयालडीह गांव के सुलेमान अंसारी ने बताया कि धान के खेती के समय बिहार जाकर खेती कार्य करना अत्यंत कष्टकारी होता है, लेकिन रोजगार की कमी और परिवार के भरण पोषण की चिंता में पलायन करना पड़ता है. जिससे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बाहर में मजदूरों के साथ गुलाम जैसा व्यवहार किया जाता है.
दलालों के कारण होती है परेशानी
फोटो 21 डालपीएच-13 खजूरी पंचायत के मुखिया हरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि प्रखंड क्षेत्र में रोजगार की कमी के कारण सैकड़ों मजदूर परिवार के साथ बाहर पलायन करते हैं. जहां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है. अक्सर लोग बाहर से आने वाले दलालों की बातों में फंसकर अपना समय और मेहनत गंवा देते हैं. प्रखंड क्षेत्र में रोजगार मिलता तो मजदूरों का पलायन पर रोक लगता. कई बार हादसों में कई मजदूरों की जान चली गयी. वहीं मजदूरी के दौरान खाने-पीने की भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
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